पिछले साल सितम्बर में अमेरिकी शहर ह्यूस्टन हाउडी मोदी रंग रंगा कार्यक्रम हुआ था। जहाँ पीएम मोदी को सुनने के लिए तकरीबन 50,000 लोगों की भीड़ उमड़ी थी। इस रंगारंग कार्यक्रम को दुनिया भर में देखा गया। आज इसी शहर में मोदी सरकार के संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ आवाज़े बुलन्द हो रही है। भारतीय मूल के अमेरिकी लोगों ने इस कानून के खिल़ाफ मोर्चा खोल दिया है। बीते कई महीनों से हार्वर्ड से लेकर सैन फ्रांसिस्को तक यहीं तस्वीर देखने को मिल रही है। टेक्सास प्रान्त में भी कुछ ऐसा देखने को मिला, प्रदर्शनकारियों के मुताबिक ये कानून विभाजनकारी राजनीति से प्रभावित है।
आगे प्रदर्शनकारी अपनी बात रखते हुए कहते है- जिस तरह से इस कानून को ये कहकर वजूद में लाया गया है कि, इससे पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के उन अल्पसंख्यकों की रक्षा होगी जिनका धार्मिक आधार पर उत्पीड़न हुआ है। ये कानून प्रदर्शन कर रहे मुस्लिमों और भारत के संविधान की मूल आत्मा के खिल़ाफ है। मोदी सरकार से लोगों का मोह भंग हुआ है। ऐसे हालातों में अगर भारतीय मूल के लोग आव़ाज बुलन्द नहीं करेगें तो, ये नैतिक रूप से गलत होगा।
गौरतलब है कि गणतन्त्र दिवस के अवसर पर भारतीय दूतावास के सामने संशोधित नागरिकता कानून के खिल़ाफ भारी प्रदर्शन देखने को मिला था। इसमें छात्र, अकादमिक जगत के लोग, बुद्धिजीवी और अल्पंसख्यक वर्ग के लोग शामिल थे।
दिलचस्प ये है कि साल 2014 के दौरान जब पीएम मोदी ने यहां का दौरा किया था, तो लोगों में काफी उत्साह देखने को मिला था। भारतीय मूल के लोगों ने मोदी के स्वागत में पालक पांवड़े बिछा दिये थे। तब लोगों का मानना था कि मोदी की अगुवाई में भारत महाशक्ति के रूप में उभरेगा। न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप और संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में सदस्यता मिलेगी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। बल्कि कई अन्तर्राष्ट्रीय एजेन्सियों जैसे मूडीज, आईएमएफ ने भारतीय अर्थव्यवस्था के लड़खड़ाने की बात कहीं। इकनॉमिस्ट पत्रिका के मुताबिक लोकतान्त्रिक माहौल कायम रखने के मामले में भारत की रैकिंग में 10 पायदान की गिरावट दर्ज की है। ऐसे में लोगों के बीच मोदी की विश्वसनीयता पर गहरा सवालिया निशान लगा है।