नई दिल्ली (यर्थाथ गोस्वामी): Padmini Ekadashi- पुरूषोत्तम मास (अधिकमास/मलमास) लगने के कारण एक वर्ष 24 की बजाय 26 एकदशियों का पावन संयोग बन रहा है। ऐसा ज्योतिषीय संयोग प्रत्येक तीन साल में बनता है, जब पद्मिनी एकादशी शुक्ल पक्ष में और परमा एकादशी कृष्ण पक्ष में आती है। सभी स्मार्त और वैष्णव भक्त उचित विधि-विधान से व्रत कर कथा सुनते है। इसे कमला एकादशी या पुरूषोत्तम एकादशी (Kamala Ekadashi or Purushottami Ekadashi) के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की आराधना करने की विशेष विधान होता है। व्रत के प्रभाव से संतान प्राप्ति के प्रबल संयोग बनते है साथ ही भक्तों पर आये संकटों का निदान भी होता है। इस वर्ष ये एकादशी 27 सितम्बर को पड़ रही है। द्वापरयुग में स्वयं भगवान योगेश्वर ने इसका महात्मय अर्जुन और युधिष्ठिर को बताया था।
पद्मिनी एकादशी व्रत का पावन मुहूर्त
एकादशी तिथि का आरम्भ: 27 सितंबर 2020 को उषाकाल 06 बजकर 12 मिनट
एकादशी तिथि का समापन: 28 सितंबर 2020 को प्रात: 08 बजकर बजे तक.
पद्मिनी एकादशी व्रत पारायण मुहूर्त: 28 सितंबर 2020 को उषाकाल 06 बजकर 12 मिनट 41 सेकेंड से प्रात: 08 बजकर 36 मिनट 09 सेकेंड तक
व्रत विधि
- व्रत का मानस संकल्प वचन लेते हुए दशमी के दिन कांसे के बर्तन (Bronze utensils) में जौ-चावल आदि का भोजन करें। भोजन में नमक का प्रयोग वर्जित है। ब्रह्मचर्य व्रत का पालन कर भू-शयन करें। अगले दिन (एकादशी वाले दिन) प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में शौच आदि दैनिक नित्य क्रिया से निवृत होकर दतुअन (नीम या आंवले की) कर शुद्ध जल से 12 बार कुल्ला कर मुख शुद्धि करें।
- निर्जला व्रत रखकर विष्णु पुराण का श्रवण-मनन या पाठ करें। हर प्रहर में भगवान विष्णु को अलग-अलग भेंट अर्पित करें जैसे- पहले प्रहर में श्रीफल, दूसरे प्रहर में बेल, तीसरे प्रहर में कंदलीफल और चौथे प्रहर में संतरा और ताम्बुल इत्यादि। पीपल की पूजा कर दुग्धदान करें।
- गोधूलि बेला में मां तुलसी के आगे घी का दीपक जलाकर ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र का जाप करते हुए, 11 बार मां तुलसी की प्रदक्षिणा करें। ऐसा करने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी संयुक्त आशीष भक्त को प्राप्त होता है। व्रत के दौरान माँ लक्ष्मी को सौंफ अर्पित करना यश और लाभ की दृष्टि से अहम माना गया है।
- जरूरतमंदो और गरीबों को भोजन करवाये। भगवान विष्णु को खीर का भोग लगाकर उसे धर्मस्थल पर ले जाकर बांट दे। दूध और केसर मिलाकर भगवान विष्णु को अभिषेक करवाये। व्रत की समाप्ति पर ब्रह्माण को वस्त्र,दक्षिणा देकर भोजन करवाये।
पद्मिनी एकादशी की व्रत कथा
पद्मिनी एकादशी की व्रत कथा स्वयं भगवान योगेश्वर श्री कृष्ण ने अर्जुन के विशेष अनुरोध पर सुनाई थी। कथा कुछ इस प्रकार है- त्रेता युग में पराक्रमी राजा कीतृवीर्य के शासन में प्रजा धन-धान्य से परिपूर्ण थी। राजा के न्याय प्रिय शासन की ख्याति और कीर्ति समस्त भूमंडल पर व्याप्त थी। अन्त:पुर में कई रानियों का वास था लेकिन राजा को संतान रत्न की प्राप्ति नहीं हुई थी। इस कारणवश राजा और सभी पटरानी क्षुब्ध रहते थे। सक्षम आचार्यों का परामर्श मानते हुए राजा और रानी महल का परित्याग करके तपस्या करने हेतु वनगमन करते है। कई हज़ारों वर्षों की तपस्या के उपरान्त भी उनकी तपस्या फलीभूत नहीं हो पाती है। उग्र तपस्या करने के कारण राजा का शरीर अस्थिपंजर मात्र रह जाता है। जिससे सभी रानियां और भी दुखी हो जाती है।
कालान्तर में वन में देवी अनुसूया का अनुगमन होता है। रानी भक्तिभाव से उनका आदर सत्कार करती है। तंदोपरान्त अपनी मनोव्यथा उनसे कहा बैठती है। महारानी के आदर सत्कार और सम्मान से अभिभूत होकर देवी अनुसूया उन्हें पुरूषोत्तम मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी का व्रत करने का निर्देश देते हुए रानी को व्रत के सम्पूर्ण विधान से अवगत कराती है। देवी अनुसूया के कहने पर रानी पद्मिनी एकादशी का व्रत रखती है। व्रत का पारायण होने पर भगवान विष्णु स्वयं उन्हें चर्तुभुज रूप में दर्शन देते है। राजा और रानी ह्दयागार याचना (Heartfelt solicitation) करते हुए उनसे सर्वगुण सम्पन्न, यशस्वी, पराक्रमी, शौर्यवान और बलशाली पुत्र का वर मांगते है। भगवान विष्णु उन्हें मनोवांछित वर देकर अर्न्तध्यान हो जाते है। कालान्तर में रानी के गर्भ से बलशाली पुत्र कार्तवीर्य अर्जुन का जन्म होता है। चौदह भुवन और दसों दिशायें कार्तवीर्य अर्जुन यश से जगमगा उठते है। राजा-रानी दोनों शेषशायी भगवान विष्णु (Seshasayee Lord Vishnu) को धन्यवाद देते है। कालान्तर में कार्तवीर्य अर्जुन ने अपने पराक्रम के बल रावण को बंदी बना लिया था। इस कथा का श्रवण करने वाले श्रद्धालु मोहमाया के बंधनों से छूट बैकुंठलोक (Baikunth Lok) को प्राप्त होते है।