नई दिल्ली (यर्थाथ गोस्वामी): अधिकमास, पुरुषोत्तममास या मलमास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को परमा (Parama Ekadashi) एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की आराधना करने से जातकों को विशेष कृपा और दुर्लभ सिद्धियों की प्राप्ति होती है। ये एकादशी के अमोघ फल और दुर्लभ सिद्धियों की दाता है इसलिए इसे परमा एकादशी कहा जाता है। इस दिन स्वर्ण दान, विद्या दान, अन्न दान, भूमि दान और गौदान करने का विशेष महात्मय है। इस व्रत के विधान अत्यंत दुष्कर है जिसमें पंचरात्रि व्रत का अखंड प्रावधान है। इस दौरान व्रती पांच दिनों तक यानि कि एकादशी से अमावस्या तक जल का परित्याग कर भगवत चरणामृत (Bhagwat Charanamrit) का सेवन करते है। इस पंचरात्रि व्रत से अक्षय पुण्यों की प्राप्ति होती है। परमा एकादशी कथा का चिंतन-मनन-श्रवण करने से हज़ारों गायों के दान देने जितना पुण्य जातकों को मिलता है।
परमा एकादशी व्रत का मांगलिक मुहूर्त
एकादशी तिथि का आरंभ: उषाकाल 04 बजकर 38 मिनट से (12 अक्टूबर 2020)
एकादशी तिथि का समापन: अपराह्न 02 बजकर 35 मिनट तक (13 अक्टूबर 2020)
परमा एकादशी व्रत पारायण मुहूर्त: प्रात: 06:21:33 से 08:39:39 तक (14 अक्टूबर 2020)
व्रत-विधान
- परमा एकादशी वाले दिन बह्ममुहूर्त में शौच-स्नानादि नित्य कर्मों से निवृत होकर भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए और व्रत करने का मानस संकल्प लें। साथ ही इस भगवान विष्णु के शेषशायी रूप (Sheshashai form of Lord Vishnu) का स्मरण करते हुए उनसे व्रत के सफलतापूर्वक पूर्ण होने की याचना करें।
- आसन पर पीतांबर बिछाकर उस पर भगवान विष्णु की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित करें। गंध, अक्षत और पुष्प (श्वेत पुष्प) अर्पित कर भगवान को चंदन का तिलक करें। घी का दीया जलाकर भगवान से जाने-अन्ज़ाने में हुए अपराधों के लिए क्षमा याचना करें।
- इसके बाद 5 दिनों तक श्री विष्णु का ध्यान करते हुए अन्य एकादशियों की भांति व्रत का पालन करना चाहिए। पांचवें दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाकर यथासंभव दान-दक्षिणा सहित विदा करने के पश्चात् व्रती को स्वयं भोजन करना चाहिए।
परमा एकादशी की व्रत कथा
द्वापर काल में ये कथा स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को सुनाई थी। भगवान कृष्ण ने अर्जुन को बताया था कि परमा एकादशी का व्रत करने वाले भक्तों को समस्त तीर्थों व यज्ञों आदि का पुण्य फल मिलता है। जो मनुष्य इस व्रत का पालन विधि-विधान से करता है, उसके सभी पाप श्री प्रभाव से नष्ट हो जाते हैं और उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। कथा कुछ इस प्रकार है- प्राचीन काल में काम्पिल्य नगर में सुमोध नाम का एक निर्धन ब्राह्मण था। पूर्व जन्मों के पाप के कारणवह काफी दरिद्र था। अन्नाभाव में वो अक्सर भूखे ही सो जाता था। एक दिन सुमोध अपनी पत्नी से परदेश में काम करने के बारे में पूछता है। जिसके लिए ब्राह्मणी मना कर देती है। ब्राह्मणी कहती है कि जो भाग्य में निर्धारित होगा, उसी की प्राप्ति होगी। ऐसे में कहीं भी बाहर जाकर काम करने का कोई औचित्य नहीं है। ब्राह्मणी की बात सुनकर ब्राह्मण अपना मन बदल लेता है। कालान्तर में एक दिन उनके यहां कौण्डिन्य मुनि (Kundinya Muni) आते है। सुमोध और उसकी पत्नी यथासंभव उनका आदर सत्कार करते है। ब्राह्मणी सीमित संसाधनों में कौण्डिन्य मुनि के लिए सुस्वादिष्ट भोजन तैयार करती है।
उनकी दरिद्रता देखकर कौण्डिण्य मुनि उन्हें पुरूषोत्तम मास में पड़ने वाली परमा एकादशी का व्रत विधि-विधान से करने का परामर्श देते है। जिससे सभी पाप, दुख और दरिद्रता का क्षय हो जाता है। कौण्डिण्य मुनि के जाने के बाद दोनों परमा एकदशी का व्रत पूरे मनोयोग से करते है, जिससे उनकी दरिद्रता का नाश हो जाता है। कुबेर ने इसी व्रत का पालन किया था, जिसके फलस्वरूप भगवान महादेव ने उन्हें धन का अधिपति देव बनाकर अलकपुरी का सिंहासन दे दिया था।
आगामी एकादशी की तिथियां
पापांकुशा एकादशी – 27 अक्टूबर 2020
रमा एकादशी – 11 नवंबर 2020
देव उठनी एकादशी – 25 नवंबर 2020
उत्पन्ना एकादशी – 11 दिसंबर 2020
मोक्षदा एकादशी – 25 दिसंबर 2020