नई दिल्ली (यथार्थ गोस्वामी): दुर्गा पूजा (Durga Puja) के दूसरे दिन माँ के स्वरूप को ब्रह्मचारिणी (Maa Brahmacharini) रूप में पूजा जाता है। माँ ब्रह्मचारिणी की आराधना से सर्वत्र सिद्धि और वैराग्य, सदाचार, संयम में वृद्धि होती है। माँ के नाम का अर्थ है तप का आचरण करने वाली। माँ को तपश्चारिणी, अपर्णा और उमा नामों से भी जाना जाता है। मां ब्रह्मचारिणी की कथा जीवन के कठिन क्षणों में भक्तों को आलंबन देती है। माँ ब्रह्मचारिणी के एक हाथ में जप की माला और दूसरे में कमंडल रहता है। माँ किसी वाहन पर सवार नहीं होती बल्कि पैदल धरती पर विचरण करती हैं। सिर पर मुकुट शोभित है। माँ के कंगन, हार, कुंडल और बाजूबंद सभी में कमल के फूलों का प्रयोग होता है।
माँ दुर्गा के द्वितीय स्वरूप ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा विद्यार्थियों के लिए विशेष लाभकारी मानी गयी है। पूजा के लिए भक्त सफेद या पीले वस्त्रों को धारण करें। लकड़ी के आसन पर पीताम्बरी बिछाकर चावल की ढेरी के बीच माँ की तस्वीर स्थापित करे। घी का दीया माँ की तस्वीर के दाहिनी ओर और सामने ताम्र कलश में गंगाजल भर नारियल स्थापित करें। सबसे पहले सफेद या लाल पुष्प माँ के चरणों में अर्पित करते हुए इस मंत्र का जाप करें “दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा” मिश्री, शक्कर या पंचामृत का भोग माँ को लगाये। माँ के श्री चरणों का ध्यान करते हुए तुलसी की माला के साथ “ऊं ऐं नमः” का जाप 1100 बार करें। फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दूर अर्पित कर पूजास्थल की प्रदक्षिणा करें। अन्त में ग्राम देवता, कुल देवता, दिग्पाल और नवग्रह की पूजा करे। अन्त में आवाहनं न जानामि न जानामि वसर्जनं, पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरी का उच्चारण करके पूजा के दौरान अन्ज़ाने में हुई त्रुटि के लिए माँ से क्षमायाचना कर ले।
मां ब्रह्मचारिणी का स्रोत पाठ
तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥
“मां ब्रह्मचारिणी का कवच”
त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी।
अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥
पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे पातुमहेश्वरी॥
षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।
अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।
माँ ब्रह्मचारिणी का ध्यान करने के लिए जाप मंत्र
वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलु धराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम।
धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम्॥
परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन।
पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
मां ब्रह्मचारिणी कवच
त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी।
अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥
पंचदशी कण्ठे पातु मध्यदेशे पातु महेश्वरी॥
षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।
अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।