नई दिल्ली (यथार्थ गोस्वामी): दुर्गा पूजा (Durga Puja) के चौथे दिन माँ के स्वरूप को कूष्मांडा (Kushmanda) रूप में पूजा जाता है। समस्त चराचर, त्रिभुवनों और दिशाओं में स्थावर जंगम सभी प्रणियों में माँ कूष्मांडा तेज अवस्थित है। दुर्गा सप्तशती में माँ कूष्मांडा का विवरण सम्पूर्ण ब्रह्मांड के चराचर प्राणियों की अधिष्ठात्री देवी के रूप में की गयी है। इन दिन भक्तों दुर्गा सप्तशती में माँ का विवरण कुछ इस प्रकार आता है।
कुत्सित: कूष्मा कूष्मा-त्रिविधतापयुत: संसार: ।
स अण्डे मांसपेश्यामुदररूपायां यस्या: सा कूष्मांडा ।।
जब सृष्टि की उत्पत्ति नहीं हुई थी। जिस कालखंड में अंधकार का साम्राज्य था। तब माँ कूष्मांडा के गर्भ (उदर) में त्रिविध तापयुक्त ब्रह्मांड स्थिति था। महामाई कूष्मांडा इस चराचर जगत की अधिष्ठात्री देवी हैं। माँ के नाम का शब्दिक अर्थ है कि वो महाशक्ति जिसकी मंद मुस्कान से कोटि-कोटि ब्रह्मांड (Universe) का निर्माण हो जाये। माँ का निवास स्थान सूर्यमंडल के भीतर के लोक में स्थित है। माँ का तेज, कांति और प्रभा अत्यन्त तीव्र हो जिसका दैदीप्यमान प्रभाव सूर्यमंडल हो संभाल सकता है। मां कूष्मांडा को बलियों में कुम्हड़े (कोहड़ा/कद्दू) की बलि अत्यंत प्रिय है।
माँ दुर्गा के चौथे स्वरूप कूष्मांडा की पूजा विधि
पूजा विधि प्रारम्भ करने से पहले सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च | दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे || मंत्र का जाप करके संकल्प ले। गंगाजल से पूजास्थल और स्वयं की शुद्धि करें। ग्राम देवता, पितृदेवता, कुलदेवता, दिग्पालों और समस्त ग्रहों नक्षत्रों का आवाह्न करते हुए पूजा आरम्भ करें। लकड़ी के चौके पर माँ की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित करे। माँ की हरी चुनरी अर्पित करें। तांबे के कलश में शुद्ध जल भरकर उस पर आम के पत्ते रखे। कलश पर मौली बांधे। या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। पूजा विधि की शुरूआत करे। पूजा के दौरान हरे वस्त्र धारण करे। हरा रंग माँ को अत्यन्त प्रिय है। पूजा के दौरान मां को लाल रंग के पुष्प, गुड़हल या गुलाब, सिंदूर, धूप, गंध, ताम्बुल,अक्षत् आदि अर्पित करें। ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कूष्मांडायै नम:।’ और ॐ देवी कुष्मांडाये नमः मंत्र का जाप 108 बार करे। कद्दू की बलि देकर और मालपुये भोग लगाकर माँ को प्रसन्न करें। आरती के बाद भंडारा वितरित करें।
मां कूष्मांडा का स्रोत पाठ
दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्।
जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहिदुःख शोक निवारिणीम्।
परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाभ्यहम्॥
मां कूष्मांडा का ध्यान करने के लिए जाप मंत्र
वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥
भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु, चाप, बाण, पदमसुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥
पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल, मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कांत कपोलां तुंग कुचाम्।
कोमलांगी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
मां कूष्मांडा कवच
हंसरै में शिर पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्।
हसलकरीं नेत्रेच, हसरौश्च ललाटकम्॥
कौमारी पातु सर्वगात्रे, वाराही उत्तरे तथा,पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम।
दिगिव्दिक्षु सर्वत्रेव कूं बीजं सर्वदावतु॥