नई दिल्ली (यथार्थ गोस्वामी): दुर्गा पूजा (Durga Puja) के छठे दिन माँ के स्वरूप को कात्यायनी (Katyayani) रूप में पूजा जाता है। आदिशक्ति माँ पराम्बा ने स्वयं महर्षि कात्यायन की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर उनके घर पुत्री स्वरूप में जन्म लिया था। इस कारण वे कात्यायनी कहलाई। माँ कात्यायनी को त्रिदेवों ने अपने तेज और अंश से उत्पन्न किया था। माँ ने महिषासुर और शुम्भ-निशम्भ का वध करके देवताओं को अभयदान दिया था। गोकुल और वृन्दावन की निश्छल गोपियों को माँ के वरदान के कारण पति स्वरूप में भगवान योगेश्वर श्रीकृष्ण की प्राप्ति हुई थी। इस कारण महामाई कात्यायनी समस्त ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी मानी गयी है। जिन कन्याओं के विवाह में बाधा आ रही हो या फिर गृहस्थ जीवन तनाव और क्लेशपूर्ण हो तो माँ को प्रसन्न करने से गृहक्लेश समाप्त हो जाता है। कन्याओं को मनोवाछिंत वर की प्राप्ति होती है।
माँ दुर्गा के छठे स्वरूप कात्यायनी की पूजा विधि
काठ की चौकी गंगाजल शुद्ध करके उस पर वस्त्रासन बिछाकर माता की तस्वीर और श्रीविग्रह को स्थापित करें। माँ की पूजा का मानस संकल्प लेते हुए माँ के इन मंत्रों का जाप करें ‘ॐ ह्रीं नम:’ और ॐ देवी कात्यायन्यै नमः तदोपरान्त पूजा स्थल की शुद्धि गंगा जल या गोमूत्र से करें। ग्राम देवता, कुलदेवता, नवग्रह, नक्षत्रों और दिग्पालों का आवाह्न करें। चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दूलवर वाहना। कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानव घातिनि।। मन्त्र का जाप करते हुए पूजा आरम्भ करें। तांबे या मिट्टी के घड़े में स्वच्छ जल भरकर उस पर नारियल स्थापित करें। दुर्गा सप्तशती के ग्यारहवें अध्याय का पाठ करें। पुष्प, गंध, फल और नैवेध के अतिरिक्त माँ को शहद, हल्दी की गांठे और जायफल विशेष रूप से अर्पित करें। ये तीनों चीज़े माँ को अत्यन्त प्रिय है। जिन कन्याओं के विवाह में बाधायें आती है वे 108 बार इस मंत्र का जाप करें। “कात्यायनी महामाये , महायोगिन्यधीश्वरी। नन्दगोपसुतं देवी, पति मे कुरु ते नमः।।” माँ की पूजा के लिए गोधूलि बेला (प्रदोषकाल) अत्यन्त शुभकारी मानी गयी है। अतएव बताये गये समस्त विधानों को गोधूलि बेला में सम्पन्न करे। माँ के बीज़ मंत्र का 51 बार जाप करना भी फलदायी माना गया है।
ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ऊं कात्यायनी देव्यै नम:’
माँ कात्यायनी का स्रोत पाठ
कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
माँ कात्यायनी का ध्यान करने के लिए जाप मंत्र
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
माँ कात्यायनी कवच
कात्यायनी मुखं पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥