Bihar Election 2020: लालू की संभावित वापसी, पासवान का जाना, क्या कहता है बिहार इस बार?

नई दिल्ली (शौर्य यादव): बिहार चुनावों (Bihar Election) की सरगर्मियों के बीच कुछ बड़ी और अहम घटनाये हुई है, जिससे आने वाले चुनावी समीकरणों पर बड़ा असर पड़ सकता है। पहली तस्वीर में राजनीतिक मौसम विशेषज्ञ राम विलास पासवान की असामायिक मृत्यु और लोक जनशक्ति पार्टी (Lok Janshakti Party) का मौजूदा रवैया है तो दूसरी ओर लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) की संभावित वापसी। बिहार की जनता दोनों ही तस्वीरों का आकलन अपनी समझ से कर रही है। अब लोक जनशक्ति पार्टी की कमान चिराग पासवान के हाथों में है। NDA से अलग होकर चुनाव लड़ने की हठधर्मिता और राम विलास पासवान के जाने के बाद मिलने वाले भावनात्मक वोट इन दोनों के बीच फिलहाल पार्टी अधर में लटकी हुई है। चिराग फिलहाल राजनीति के अखाड़े में नये है। ऐसे उनका ये फैसला आत्मघाती भी साबित हो सकता है।

एनडीए के खेमे में दलित चेहरे के नाम पर जीतनराम मांझी है। कौन कितने दलित वोटों में सेंध लगा पायेगा। इसके लिए 10 नवंबर का इंतज़ार सभी को है। कयास ये भी लगाये जा रहे है कि चिराग चुनावी नतीज़े आने पर राष्ट्रीय जनता दल का भी दामन थाम सकते है। हाल ही में चिराग ने तेजस्वी यादव और तेजप्रताप यादव (Tejaswi Yadav and Tej Pratap Yadav) को भाई बताकर इस संभावना का जन्म दे दिया है। बिहार चुनावों के मद्देनज़र एनडीए गठबंधन ने भी चिराग को करारा झटका देते हुए पीएम मोदी की तस्वीर और उनका नाम लेने पर रोक लगा दी है। इससे कहीं ना कहीं उन्हें निराशा तो हाथ लगी ही होगी। बिहार राजनीति की प्रयोगशाला (Laboratory of politics) है। कब क्या नया ईजाद हो जाये इसका अन्दाज़ा लगाना मुश्किल है। चिराग का मौजूदा रूख़ यादव परिवार की ओर काफी नर्म है। रामविलास पासवान और लालू प्रसाद यादव दोनों ही जेपी आंदोलन की उपज है। कुछ लोग इसे चिराग की भूल और राजनीतिक मनमानी भी मान रहे है।

ऐसे में लालू प्रसाद की रिहाई के कयास से चिराग अपने लिये नया पॉलिटिकल एक्सपेरिमेंट (Political experiment) कर खुद को सूबे की राजनीति में स्थापित करने पर जोर दे सकते है। अगर वो कामयाब रहे तो अपनी अलग पहचान कायम कर पायेगें। दूसरी ओर लालू प्रसाद की वापसी हुई तो वे बिहार की राजनीति समेत केन्द्र सरकार को झटका दे सकती है। मौजूदा दौर लालू ही एकमात्र व्यक्ति है जो मोदी सरकार के खिलाफ उत्तर से दक्षिण तक एक मजबूत गठबंधन की दीवार खड़ी कर सकते है। इस काम में वो काफी माहिर है। हिन्दुत्व राजनीति और धुर दक्षिणपंथी ताकतों (Right wing forces) की काट वो अच्छे से जानते है। भले ही वो बिहार विधानसभा चुनावों में प्रचार ना कर पाये लेकिन अगर वो बाहर आते है तो स्वतन्त्र रूप से लोगों से मिलकर और रणनीति तैयार करके वो एनडीए के लिए परेशानी का सब़ब जरूर बन सकते है।

तीसरी तरफ बैठी बिहार की जनता लालू की संभावित वापसी और पासवान जी की विदाई को गौर से देख रही है। नीतीश सरकार को लेकर जनता की मिली जुली राय है। अब देखना दिलचस्प रहेगा कि चिराग के बागी तेवर और लालू प्रसाद यादव के बाहर आने के कयास बिहार की जनता को कितना रास आता है। ये दोनों फैक्टर सीएम नीतीश कुमार के पक्ष में जायेगें या विपक्ष में इसे बिहार की जनता ही तय करेगी। फिलहाल रोजगार और प्रवासी मजदूर के समस्या सूबे की नियति में बने हुए है।

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