न्यूज़ डेस्क (नई दिल्ली): उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने बुधवार को केंद्र सरकार के 2 करोड़ रुपये तक के ऋण पर ब्याज माफी को लागू करने के लिए एक महीने का समय मांगा अनुरोध को अस्वीकार कर दिया औरकहा कि यह सरकार द्वारा अपने निर्णय के कार्यान्वयन में देरी करना उचित नहीं है।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि केंद्र ने कर्जदारों को राहत देने के लिए अपनी अधिसूचना के कार्यान्वयन के लिए क्या किया है?
तुषार मेहता द्वारा, कर्जदारों को राहत देने के लिए, एक महीने का और समय मांगे जाने पर पीठ ने कहा, “क्या आपने (केंद्र) कुछ भी किया है? यह उचित नही है कि निर्णय को लागू करने में एक महीने का समय और लगेगा।” तुषार मेहता के अनुरोध को अस्वीकार करते हुए पीठ ने कहा, “कृपया, आम लोगों की दुर्दशा देखें, जब आप पहले ही मदद करने का फैसला कर चुके हैं कार्यान्वयन में देरी करना उचित नहीं है। अब आम आदमी की दीवाली (Diwali) सरकार के हाथ में है।”
इस मामले को 2 नवंबर को पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए रखा गया था। मामले के वकील विशाल तिवारी ने शीर्ष अदालत से कहा कि बैंक अपने विवेक से काम कर रहे हैं और उन्हें किसी आदेश या निर्देश की परवाह नहीं है, इस मामले में अंतरिम आदेश होने चाहिए।
तिवारी ने कहा कि उन्होंने मामले में लिखित याचिका दायर की है अदालत को 9 अक्टूबर को भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा दायर समेकित हलफनामे (consolidated affidavit) पर विचार करना चाहिए।
RBI ने दायर हलफनामे में कहा कि COVID-19 के चलते आर्थिक गिरावट के कारण loan moratorium को छह महीने तक बढ़ाना उधारकर्ताओं के क्रेडिट व्यवहार को प्रभावित कर सकता है और निर्धारित भुगतानों को समय से ख़त्म होने के जोखिमों को बढ़ा सकता है।
शीर्ष अदालत दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जिसमें गजेंदर शर्मा और विशाल तिवारी द्वारा ऋण की अदायगी पर स्थगन अवधि बढ़ाने और COVID-19 महामारी को ध्यान में रखते हुए ऋण राशि के पुनर्भुगतान पर ब्याज माफ करने की मांग की गई है।