कानून बनाने वालों की ओर से एक बेहद शर्मनाक बयान सामने आया है। सबसे पहले तो उन्हें आतंकवादी शब्द का अर्थ समझाना होगा। अगर अरविन्द केजरीवाल आंतकी है तो 99.9% फीसदी सियासी लोग आंतकवादी है। लगता है उनके दिमाग को चलाने के लिए गाय का गोबर पूरी तरह से काम कर रहा है। इसके सीधे और साफ मायने ये है कि अगर समाज के लिए कोई कुछ अच्छा करने की कुव्वत रखता है तो सिस्टम में बैठी जोकें उसे उखाड़ फेंकने की ताकत रखती है। और उन पर आतंकवादी या नक्सल होने का ठप्पा लगा दिया जाता है। ये लोग रहम के लायक है, जो आव़ाम से मांगी वोटों की भीख पर मुल्क चला रहे है। यहीं लोग हिन्दुस्तान की एकता, अखंडता प्रगतिशीलता और जीवन्तता के सपने दिखाते है। पर जैसे ही सत्ता के सिंहासन पर काब़िज होते है तो संविधान के मूल ताने-बाने को धर्म, जाति, और पंथ के नाम पर दागदार करते है। और साथ ही खास एजेन्ड़ों जैसे भुखमरी, गरीबी, बेरोजगारी और समग्र विकास को सत्ता के लिए कूड़े के ढ़ेर में फेंक देते है। उठिये और इनसे सवाल पूछिये इससे पहले की बहुत देर हो जाये।