न्यूज़ डेस्क (शौर्य यादव): दुनिया भर की निगाहें कोरोना वैक्सीन (Corona Vaccine) की ओर लगी हुई है, लेकिन विशेषज्ञों खासतौर से ट्रांसपोर्टेशन और लॉजिस्टिक (Transportation and Logistics) जानकारों का मानना है कि असली चुनौती वैक्सीन बनने के बाद सामने आयेगी। फिलहाल कई वैक्सीन अपने ट्रायल के अन्तिम दौर से गुजर रही है। अगले महीने के आखिरी तक किसी ना किसी वैक्सीन की औपचारिक घोषणा भी कर दी जायेगी। जिसके बाद इसे लोगों तक पहुँचाने की मुश्किल कवायद को शुरू किया जायेगा। जिसके लिए कारगर ट्रांसपोर्टेशन और लॉजिस्टिक चैन की आवश्यकता होगी। इससे विकासशील और तीसरी दुनिया के देश (Developing and Third World Countries) खासा प्रभावित होगें।
सशक्त और मजबूत अर्थव्यवस्था वाले देशों को भी ट्रांसपोर्टेशन और लॉजिस्टिक चैन का ढांचा तैयार करने में ठीक-ठाक समय लग जायेगा। कोरोना वायरस के टीका का असर बनाये रखने के लिए उसे एक खास तापमान पर बरकरार रखने की जरूरत होगी। जिसमें कोल्ड स्टोरेज श्रृंखला का निर्माण (Construction of cold storage chain) और उसी खास तापमान पर वैक्सीन की खुराकों को ढोकर दूरदराज इलाकों में पहुँचाना बड़ा काम माना जा रहा है। अफ्रीकी देशों में इस काम को अन्ज़ाम देना बड़ी चुनौती रहेगा। कयास लगाये जा रहे है कि जितना समय वैक्सीन विकसित करने में लगा, उतना ही समय उसे लोगों तक पहुँचाने में भी लग जायेगा।
रेफ्रीजरेशन की चुनौतियों (Challenges of refrigeration) के कारण दुनिया भर की तकरीबन तीन अरब लोगों के बड़ी आबादी प्रभावित होगी। जहां कारगर रेफ्रिजरेशन और कोल्ड स्टोरेज सहित परिवहन की सुविधा उपलब्ध नहीं है। गौरतलब ये भी है कि विकसित देश इस काम को खुद चुनौती मान रहे है, ऐसे में विकासशील देशों के लिए ये चिंता का सब़ब है। वैक्सीन को स्टोर करने और उसे लाने-ले जाने के लिए लगातार -70 डिग्री सेल्सियस वाली अल्ट्राकोल्ड स्टोरेज प्रणाली (Ultracold storage system) की जरूरत होती है। इसका चुनौती का सामना भारत सहित कई दक्षिण एशियाई देश और अफ्रीकी देशों को है। अल्ट्राकोल्ड स्टोरेज और रेफ्रिजरेशन का सशक्त ढ़ांचा खड़ा करने में लंबा समय लगेगा। ऐसा में कोरोना से बचाव में अभी भी लंबा समय लगेगा।