Sharad Purnima: धन-धान्य और भक्ति को परिपूर्णता देने वाली रात, जाने शरद् पूर्णिमा के विधि-विधान और मंत्र

नई दिल्ली (यथार्थ गोस्वामी): आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) नाम से जाना जाता है। कोजागरी पूर्णिमा, रास पूर्णिमा, कौमुदी उत्‍सव, कुमार उत्सव, शरदोत्सव, एवं कमला पूर्णिमा इस पावन रात्रि के अन्य नाम है। इस पावन बेला में चन्द्रमा अपनी सोलह कलाओं से युक्त होकर धरती पर अमृतमयी किरणों की वर्षा करता है। भारतीय सनातन परम्पराओं (Indian sanatan traditions) इस दिन के बाद से ही शरद् ऋतु का आरम्भ माना जाता है। इसी बेला में माँ लक्ष्मी रात्रि भ्रमण करती है तो देखती है कि कौन-कौन भागवद् चिंतन में लगा हुआ है। उस पर माँ अपनी कृपा वर्षा करती है। इसी दिन कोजागरी लक्ष्मी पूजा के विशेष प्रावधान है। कोजागरी का शाब्दिक अर्थ है- कौन जाग रहा है? अर्थात् कौन सा साधक जागृत अवस्था में है।

पश्चिम बंगाल में इस दिन लक्ष्मी पूजा की जाती है। इस दिन उत्तर भारत में रतजगा करके माँ लक्ष्मी का ध्यान किया जाता है। साथ ही इस दिन गोवर्धन (श्री गिरिराज महाराज), राधाकुंड और वृन्दावन की रात्रि परिक्रमा का विशेष महात्मय है। ब्रज की स्थापित मान्यताओं के अनुसार इस दिन ठाकुर श्री बांके बिहारी अपनी आराध्या आनंदमयी ठाकुरानी राधारानी (Aaradhya Anandamayi Thakurani Radharani) के साथ रास रचाते है। जिनमें सभी सखा और सखियां भी शामिल होते है। इस परमपावन अवसर पर खीर प्रसाद का विधान है। जिसमें चन्द्रमा की छीनी रोशनी में खीर बनाकर रख दी जाती है। सुबह इसका वितरण किया जाता है। जिसके बाद ये खीर अत्यन्त प्रभावकारी हो जाती है। पित्त का प्रकोप और प्रतिरोधक क्षमता में बढ़ोत्तरी भी होती है। खीर प्रसाद को ग्रहण करने वाले साधक की आंखों की रोशनी भी बढ़ती है।

शरद/कोजागरी पूर्णिमा 2020 का पावन मुहूर्त

पूर्णिमा तिथि का आरंभ- 30 अक्टूबर 2020 गोधूलि बेला 17:45 से

पूर्णिमा तिथि का समापन- 31 अक्टूबर 2020 रात्रि 20:18 बजे तक

शरद पूर्णिमा या कोजागरी पूजा की विधि

  • प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में शयन का परित्याग कर किसी पवित्र नदी में जाकर स्नान करें। मौजूदा कोरोना संकट को देखते हुए अगर ऐसा संभव ना हो पाये तो घर में ही पानी में गंगाजल डालकर स्नान करे।
  • जल से भरा कलश स्थापित कर, उस पर कांसे के गिलास में गेंहू भरकर रखे। दोने में रोली, चंदन और अक्षत ले। दोने में दक्षिणा रखते हुए कलश पूजन आरम्भ करे। माँ लक्ष्मी सहित माँ पार्वती, कार्तिकेय, और बाबा भोलेनाथ का भी पूजन करे।
  • लकड़ी के आसन पर लाल शुभ्र वस्त्र बिछाएं। इस पर माँ लक्ष्मी की प्रतिमा या उनकी छवि स्थापित करें। माँ का सम्पूर्ण श्रृंगार करते हुए उन्हें फल-फूल, नैवेद्य, इत्र, ताम्बुल, और आभूषण इत्यादि अर्पित करे।
  • माँ लक्ष्मी का आवाह्न करते हुए सामर्थ्यवान आचार्यों की उपस्थिति में लक्ष्मी माता के बीज़ मंत्रों का जाप और लक्ष्मी चालीसा का पाठ करे। आरती में धूप, दीप, गंध, पुष्प का प्रयोग करते हुए माँ को अन्त में खीर का भोग लगाये।
  • ध्यान रहे माँ को भोग लगाने के लिए तैयार की गयी खीर गाय के दूध से ही बनी हुई हो। अगले दिन खीर का प्रसाद वितरित करे।

सौभाग्य वृद्धि मंत्र

पुत्रपौत्रं धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवेरथम् प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु में।

यशराज कुबेर को प्रसन्न करने का मंत्र

ऊं यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन धान्याधिपतये धन धान्य समृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा।।

मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने का मंत्र

ऊं श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः

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