Paigambar Hazrat Muhammad: पैगम्बर हज़रत मुहम्मद – एक सनातनी हिन्दू के नज़रिए से

एक सनातनी हिन्दू के नज़रिए से पैगम्बर हज़रत मुहम्मद (Paigambar Hazrat Muhammad) के बारे में जानिए

अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् ।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥

(अर्थात, यह मेरा है, यह उसका है; ऐसी सोच संकीर्ण विचार वाले लोगों की होती है। उदारचरित लोगों के लिए तो यह सम्पूर्ण धरती ही एक परिवार जैसी होती है।)

महोपनिषद् का यह श्लोक सनातन परंपरा की मूल आत्मा को परिलक्षित करता है। यह सारा विश्व हमारे लिए एक परिवार है और इस संसार के सारे महापुरुष हमारे लिए आदरणीय और प्रेरणा के स्रोत हैं चाहे उन्होंने पृथ्वी के किसी भी हिस्से में जन्म लिया हो। इस्लाम धर्म के संस्थापक पैगम्बर हज़रत मुहम्मद भी एक ऐसे ही व्यक्तित्व हैं जिनके जीवन से काफी प्रेरणा ली जा सकती है। महान संत होना एक बात है, सफल सेनापति होना एक अलग चीज है और कुशल प्रशासक होना दूसरी चीज है लेकिन इन तीनों का समन्वय एक ही व्यक्ति में मिलना बहुत ही दुर्लभ है। पैगंबर मुहम्मद एक ऐसे ही दुर्लभ व्यक्तित्व थे।

मुहम्मद एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने बचपन में गरीबी और अनाथ होने का दर्द झेला। वे एक ऐसे समय में पैदा हुए जब उनके चारों तरफ की दुनिया (अरब) घोर हिंसा और कबीलाई बर्बरता में डूबी हुई थी। धर्म,कर्मकांडों में डूब कर व्यापार बन चुका था। महिलाएं बुरी दशा में थीं और गुलाम तो इंसान माने ही नहीं जाते थे।

ऐसी परिस्थिति में पैदा हुए मुहम्मद शुरू से ही एक ईमानदार और नेकदिल इंसान माने जाते थे । उनके विरोधी भी उनकी ईमानदारी के कायल थे। उनकी आध्यात्मिक बेचैनी (Spiritual discomfort) उन्हें अक्सर मक्का के पास की एक पहाड़ी (जबल ए नूर / रोशनी का पर्वत) पर खींच ले जाती थी जहां की एक गुफा (हीरा गुफा) में वे घंटों और कई बार कई-कई दिनों तक ध्यान में लीन रहते। यहीं उन्हें पहली बार अल्लाह/ईश्वर की अनुभूति हुई। उन्होंने एक निराकार सर्वशक्तिमान अल्लाह/ईश्वर की बात कही। ‘अल्लाह’ एक अरबी शब्द है जिसके लिये हिन्दी में ‘ईश्वर’ और अंग्रेजी में ‘गॉड’ शब्द का प्रयोग होता है। उनके अनुसार समूचे ब्रह्मांड में केवल एक अल्लाह/ईश्वर है जो सर्वशक्तिमान है और सब जगह मौजूद है। उन्होंने मूर्तिपूजा, धार्मिक कर्मकांडों और धर्म के व्यापारीकरण (Commercialization of religion) का विरोध किया। उन्होंने समानता का उपदेश दिया और जाति, क्षेत्र ,कबीला, रंग और लिंग के आधार पर किसी भी प्रकार के भेद-भाव का विरोध किया। मदीना में जब पहली मस्जिद बनी तो अजान देने की सम्मानपूर्ण ज़िम्मेदारी हज़रत बिलाल को सौंपी गई जो कि एक मुक्त कराये गए अफ्रीकी गुलाम थे। उन्होंने उस समय प्रचलित लड़कियों को रेत में दबा कर मार देने की प्रथा का विरोध किया, गुलामों को अधिकार दिये और यहाँ तक कि ऊंटों के भी अधिकारों की बात की।

ये सारी बातें उस समय उस समाज के लिए काफी क्रांतिकारी थीं। उनकी बातों ने मक्का में लोगों को आकर्षित करना शुरू किया। शोषित तबका और प्रगतिशील युवा वर्ग मुहम्मद की ओर जाने लगा, लेकिन मक्का का शासक वर्ग इससे बहुत क्रुद्ध था। मक्का पर जिस कबीले (क़ुरैश) का नियंत्रण था, मुहम्मद भी उसी कबीले से आते थे। शासक वर्ग ने पैगंबर को धन और पद दोनों का लालच दिया लेकिन उन्होंने दोनों को ही ठुकरा दिया। फिर अत्याचारों का सिलसिला शुरू हुआ। पैगंबर के अनुयायियों पर बर्बरतापूर्ण अत्याचार किए गए और उनका पूर्ण सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया। अंततः उनके अनुयायियों को मक्का छोड़ कर आज के इथोपिया के एक राज्य में शरण लेनी पड़ी। पैगंबर को भी मार डालने की तैयारी थी इसलिए अंततः उन्हें अपना शहर छोड़ मदीना आना पड़ा। मक्का का शासक वर्ग निरंतर मुहम्मद और उनके अनुयायियों को ख़त्म कर देने की कोशिश करता रहा और इस संदर्भ में कई लड़ाइयाँ भी हुईं।

बाद में कई वर्षों बाद जब पैगंबर के अनुयायियों की संख्या पूरे अरब में काफी अधिक हो गई तो वे मक्का लौटे और उन्होंने उन मक्का वासियों को भी क्षमा कर दिया जिन्होंने वर्षों तक उनके अनुयायियों पर अत्याचार किए और स्वयं उनको भी मार डालने की पूरी कोशिश की। मक्का के शासक अबू सूफियान की पत्नी हिन्दा की घटना पैगंबर के हृदय की विशालता की एक झलक देती है। हिंदा मुहम्मद साहब के अनुयायियों पर अत्याचार के मामलों में सबसे आगे रही थी । उसने एक युद्ध में मुहम्मद साहब के प्रिय चाचा हज़रत हमज़ा के मृत शरीर का कलेजा तक खाया था जिससे पैगंबर काफी आहात हुए थे, लेकिन मक्का पर विजय के बाद उन्होंने उसे भी क्षमा कर दिया।

मुहम्मद साहब के व्यक्तित्व की एक बड़ी खूबी उनकी सादगी भी थी। अपने जीवन काल में ही वे समूचे अरब जगत के धार्मिक और राजनैतिक मुखिया बन चुके थे, लेकिन उनका जीवन तब भी संतों की तरह सादगीपूर्ण ही रहा। उन्होंने हमेशा सीधे, सच्चे और सादगीपूर्ण जीवन का उपदेश दिया। अपने को कभी एक इंसान से ज्यादा कुछ नहीं माना। कभी किसी चमत्कारिक शक्ति का दावा नहीं किया।

और हाँ, ‘बुद्ध ने कहा कुछ और.., और बुद्धुओं ने समझा कुछ और…’ के शिकार केवल बुद्ध ही नहीं हुए, इसके शिकार दुनिया के सभी महापुरुष हुए हैं। और दुनिया के बाकी महापुरुषों की तरह मुहम्मद साहब भी कई बार अपने कुछ अनुयायियों की संकीर्ण सोच और कमअक्ली के शिकार हुए जिन्होंने उनकी शिक्षा को बदनाम किया। लेकिन उसमें पैगंबर की कोई गलती नहीं। किसी भी घटना या उपदेश को सही तरीके से समझने के लिए उसे उसके सही संदर्भ में देखने की जरूरत होती है नहीं तो अर्थ का अनर्थ हो सकता है।

मैं एक सनातनी हिन्दू हूँ और मेरे लिए पूरी पृथ्वी मेरा परिवार है। मैं यह जानता हूँ कि ‘एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति’ (सत्य एक ही है जिसे विद्वान लोग अलग-अलग नामों से बुलाते हैं)। मेरे लिए इस विश्व की हर अच्छी चीज साझी है चाहे वह कहीं से भी आई हो, हर महपुरुष आदरणीय हैं चाहे वह कहीं भी जन्में हों :

राम भी मेरे, कृष्ण भी मेरे

अल्लाह के सब नबी भी मेरे

बुद्ध औ ईसा मेरी जान

चाहूँ सबकी दुआ औ ज्ञान मैं हूँ इक अदना इंसान ।

नोट- ये लेखक के अपने निजी विचार है।

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