Diwali 2020: 499 साल बाद बना दुर्लभ ज्योतिषीय संयोग, इस विधि से चौघड़िया मुहूर्त और निशिता वंदना कर उठाये पूरा लाभ

न्यूज़ डेस्क (यथार्थ गोस्वामी): भारतीय परम्परा में त्यौहार ऋतु चक्रों से जुड़े हुए है। इसी मान्यता के अन्तर्गत दीवाली (Diwali) का त्यौहार आता है। जब किसान धान और गन्ने की फसल की कटाई करते है। ऐसे में ये त्यौहार धन-धान्य और समृद्धि से जुड़ा हुआ है। जिससे कई मान्यतायें, विधान, लोककथायें और किंदवतियां जुड़ी हुई है। इस दिन मां श्रीमहालक्ष्मी, भगवान गणेश, श्रीकुबेर, आद्या शक्ति महाकाली (Adya Shakti Mahakali), ग्राम देवता और कुलदेवता का ध्यान पूजन करते है। गुप्त तांत्रिक विधानों में इस दिन तामसी शक्तियों के आवाह्न का दिन होता है। हिन्दूओं के साथ-साथ सिखों और जैन सम्प्रदाय के लोगों के लिए भी ये दिन काफी महत्त्तव रखता है। इस दिन गुरू श्री हरगोविंद जी (Guru Sri Hargovind Ji) सहित 52 हिन्दू राजाओं को जहांगीर की कैद से मुक्ति मिली थी। इसलिए सिख सम्प्रदाय में इस बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाया जाता है।

इसी दिन 24 वें तीर्थंकर भगवान महावीर (Tirthankara lord mahaveer) को मोक्ष/कैवल्य की प्राप्ति हुई थी। इसके साथ ही गौतम गणधर को भी आत्मिक ज्ञान का साक्षात्कार हुआ था। पश्चिम बंगाल में इस दिन परांबा महाकाली के पूजन का पावन विधान जुड़ा हुआ है। इस वर्ष दिवाली का त्यौहार 14 नवंबर को पड़ रहा है। ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार इस साल दीपावली के पावन अवसर गुरु, शनि और शुक्र ग्रह अपनी-अपनी मूल राशियों में निवास करेगें। जिसका सीधा लाभ जातक उठा सकेगें। ये दुलर्भ ज्योतिषीय संयोग 2020 से पहले साल 1521 में बना था। यानि कि ये संयोग 499 साल बाद बन रहा है। ऐसे में शुक्र ग्रह कन्या राशि में, गुरु धनु राशि में और शनि मकर राशि में रहेगें। वैदिक मान्यताओं के अनुसार गुरु और शनि यदि अपनी राशियों में स्थित रहते है तो, ये साधकों के लिए आर्थिक सबलता के प्रबल कारकों को तैयार करते है। इस मौके पर माँ परांबा महालक्ष्मी (Maa Paramba Mahalakshmi) की साधना अत्यन्त अमोघ मानी जाती है।

दीवाली पूजन मुहूर्त

लक्ष्मी पूजा मुहूर्त- 17:28 से 19:23

प्रदोष काल- 17:23 से 20:04

वृषभ काल- 17:28 से 19:23

अमावस्या तिथि आरंभ- 14:17 (14 नवंबर)

लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त: 14 नवंबर गोधूलि बेला में 5 बजकर 28 मिनट से सांय 7 बजकर 24 मिनट तक

प्रदोष काल में लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त: 14 नवंबर की गोधूलि बेला में 5 बजकर 28 मिनट से रात्रि 8 बजकर 07 मिनट तक

वृषभ काल में लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त: 14 नवंबर की गोधूलि बेला में 5 बजकर 28 मिनट से रात्रि 7 बजकर 24 मिनट तक

चौघड़िया मुहूर्त में लक्ष्मी पूजन का समय

अपराह्न में लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त- 14 नवंबर का अपराह्न 02 बजकर 17 मिनट से गोधूलि बेला को 04 बजकर 07 मिनट तक

गोधूलि बेला में लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त- 14 नवंबर की गोधूलि बेला में 05 बजकर 28 मिनट से सांय 07 बजकर 07 मिनट तक

रात्रि में लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त- 14 नवंबर की रात्रि 08 बजकर 47 मिनट से मध्य रात्रि 01 बजकर 45 मिनट तक

अगले दिन ब्रह्मकाल में लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त- 15 नवंबर को 05 बजकर 04 मिनट से 06 बजकर 44 मिनट तक

लक्ष्मी पूजन विधि

  • काष्ठ के आसन पर पीताम्बरी या लाल कपड़ा बिछाकर मां लक्ष्मी, सरस्वती व गणेश जी की छवि या विग्रह को स्थापित करें। छवि या विग्रह की दिशा पूर्व या पश्चिम दिशा की ओर होनी चाहिए।
  • ऊँ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: वाह्याभंतर: शुचि:।। इस मंत्र का जाप करते हुए गंगाजल लेकर पूजन स्थल को पवित्र करें। आसन पर बैठकर पृथ्वी माँ का स्मरण करते हुए हाथों में गंगाजल लेकर इन मंत्रों के साथ लक्ष्मी पूजन का संकल्प लें। ऊं विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ऊं तत्सदद्य श्री पुराणपुरुषोत्तमस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय पराद्र्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गत ब्रह्मवर्तैकदेशे पुण्य (जातक अपने नगर/ग्राम का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : 2077, तमेऽब्दे परिधावी नाम संवत्सरे दक्षिणायने हेमंत ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे कार्तिक मासे कृष्ण पक्षे अमावस तिथौ रविवासरे चित्रा नक्षत्रे आयुष्मान योगे विष्कुंभ चतुष्पद करणादिसत्सुशुभे योग (जातक अपने गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (जातक अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया– श्रुतिस्मृत्यो- क्तफलप्राप्तर्थं— निमित्त महागणपति नवग्रहप्रणव सहितं कुलदेवतानां पूजनसहितं स्थिर लक्ष्मी महालक्ष्मी देवी पूजन निमित्तं एतत्सर्वं शुभ-पूजोपचारविधि सम्पादयिष्ये।
  • ग्राम देवता, कुल देवता, नवग्रह, दिग्पालों, पितृ देवता का आवाह्न करते हुए, उन्हें पूजन स्थल पर आसीन होने की मानस याचना करें। ताम्र कलश में स्वच्छ जल भर, माँ लक्ष्मी की छवि या विग्रह के पास अक्षत रख उस पर स्थापित करे। कलश पर कलावा बांधकर उस पर आम की पत्त्तियां रखे। कलश के ऊपर ताम्बुल, दूर्वा और चांदी का सिक्का रखे।
  • स्थापित कलश साक्षात् भगवान वरूण का रूप है। कलश पूजन के लिए इस मंत्र का इस्तेमाल करे। ओ३म् त्तत्वायामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविभि:। अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशंस मान आयु: प्रमोषी:। (अस्मिन कलशे वरुणं सांग सपरिवारं सायुध सशक्तिकमावाहयामि, ओ३म्भूर्भुव: स्व:भो वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ। स्थापयामि पूजयामि॥) इसके बाद वैदिक सम्मत रूप से माँ लक्ष्मी और विघ्नहर्ता गजानन की आराधना इस मंत्र से करें गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्। उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्। गजानन को अक्षत अपर्ति करते हुए इस मंत्र का जाप करे- ऊं गं गणपतये इहागच्छ इह तिष्ठ। इसके बाद माँ सरस्वती, मां काली, भगवान विष्णु, और यक्षराज कुबेर का भी पूजन करें।
  • भगवान गणेश को भोग लगाते हुए इन मंत्रों का जाप करे। इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं गं गणपतये समर्पयामि:। मिठाई अर्पित करने के लिए मंत्र: – इदं शर्करा घृत युक्त नैवेद्यं ऊं गं गणपतये समर्पयामि:। अब आचमन कराएं। इदं आचमनयं ऊं गं गणपतये नम:। इसके बाद पान सुपारी दें: इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ऊं गं गणपतये समर्पयामि:। अब एक फूल लेकर गणपति पर चढ़ाएं और बोलें: एष: पुष्पान्जलि ऊं गं गणपतये नम:।
  • हाथों में अक्षत और पुष्प लेकर इस मंत्र से माँ लक्ष्मी का आवाह्न करें- ॐ या सा पद्मासनस्था, विपुल-कटि-तटी, पद्म-दलायताक्षी। गम्भीरावर्त-नाभिः, स्तन-भर-नमिता, शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया।। लक्ष्मी दिव्यैर्गजेन्द्रैः। ज-खचितैः, स्नापिता हेम-कुम्भैः। नित्यं सा पद्म-हस्ता, मम वसतु गृहे, सर्व-मांगल्य-युक्ता।। मंत्रोच्चारण के बाद अक्षत और पुष्प माँ को अर्पित करें।
  • माँ लक्ष्मी को शुभ्रावस्त्र और पुष्प अर्पित करने से पहले उन्हें प्रसन्न करने के लिए इस मंत्र का जाप करें- ॐ भूर्भुवः स्वः महालक्ष्मी, इहागच्छ इह तिष्ठ, एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम्।” प्रतिष्ठा के बाद स्नान कराएं: ॐ मन्दाकिन्या समानीतैः, हेमाम्भोरुह-वासितैः स्नानं कुरुष्व देवेशि, सलिलं च सुगन्धिभिः।। ॐ लक्ष्म्यै नमः।। इदं रक्त चंदनम् लेपनम् से रक्त चंदन लगाएं। इदं सिन्दूराभरणं से सिन्दूर लगाएं। ‘ॐ मन्दार-पारिजाताद्यैः, अनेकैः कुसुमैः शुभैः। पूजयामि शिवे, भक्तया, कमलायै नमो नमः।। ॐ लक्ष्म्यै नमः, पुष्पाणि समर्पयामि।’ अब माँ को पुष्प समर्पित करें। इदं रक्त वस्त्र समर्पयामि कहकर माँ को शुभ्रावस्त्र चढ़ा दे।
  • माँ के शुभांगमों का स्मरण करते हुए इन मंत्रों का जाप करें- ऊं चपलायै नम: पादौ पूजयामि ऊं चंचलायै नम: जानूं पूजयामि, ऊं कमलायै नम: कटि पूजयामि, ऊं कात्यायिन्यै नम: नाभि पूजयामि, ऊं जगन्मातरे नम: जठरं पूजयामि, ऊं विश्ववल्लभायै नम: वक्षस्थल पूजयामि, ऊं कमलवासिन्यै नम: भुजौ पूजयामि, ऊं कमल पत्राक्ष्य नम: नेत्रत्रयं पूजयामि, ऊं श्रियै नम: शिरं: पूजयामि।
  • माँ के शुभांगमों पूजन के बाद हाथों में अक्षत धारण करते हुए जातक इन मंत्रों का जाप कर श्रीविग्रह का अक्षत चढ़ायें- ऊं अणिम्ने नम:, ओं महिम्ने नम:, ऊं गरिम्णे नम:, ओं लघिम्ने नम:, ऊं प्राप्त्यै नम: ऊं प्राकाम्यै नम:, ऊं ईशितायै नम: ओं वशितायै नम:।
  • माँ लक्ष्मी के आठ रूप आठ सिद्धियों को प्रदान करते है। ऐसे में अष्ट सिद्धि पूजन के लिए इन मंत्रों का जाप करते हुए माँ लक्ष्मी को अक्षत समर्पित करें- ऊं आद्ये लक्ष्म्यै नम:, ओं विद्यालक्ष्म्यै नम:, ऊं सौभाग्य लक्ष्म्यै नम:, ओं अमृत लक्ष्म्यै नम:, ऊं लक्ष्म्यै नम:, ऊं सत्य लक्ष्म्यै नम:, ऊं भोगलक्ष्म्यै नम:, ऊं योग लक्ष्म्यै नम:
  • पूजन करते समय 21 या 11 दीये का प्रयोग करें। दीयों में सरसों का तेल या शुद्ध गाय के घी का प्रयोग करें। दीयों को दायीं से बायीं ओर रखे। आसन के दोनों तरफ दीये जलाये। फूल, अक्षत, जल, गंध, धूप और मिठाई अर्पित करें। आखिर में भगवान विनायक और माता लक्ष्मी की आरती उतार कर उन्हें भोग लगाकर पूजा को सम्पन्न की ओर ले जाये।
  • पूजा के दौरान जलाये गये सभी दीयों को घर के सभी मुख्य हिस्सों में रख दें। ध्यान रखे कि घर में पूरी रात एक घी का दीया लगातार जलता रहे। पूजन के दौरान घर के सभी दरवाज़े और खिड़कियां खुली रखे।

या रक्ताम्बुजवासिनी विलासिनी चण्डांशु तेजस्विनी।

या रक्ता रुधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोल्हादिनी।।

या रत्नाकरमन्थनात्प्रगंटीता विष्णोस्वया गेहिनी।

सा मां पातु मनोरमा भगवती लक्ष्मीश्च पद्मावती।।

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