नई दिल्ली (यथार्थ गोस्वामी): अगाध प्रेम और स्नेह की नींव पर टिका है भाई दूज (Bhai Dooj) का त्यौहार। ये पर्व दीपावली से ठीक दो दिन बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इसे यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है। पश्चिम बंगाल में इसे फोटा पर्व, महाराष्ट्र में भाऊ बीज, नेपाल में इसे भाई तिहार आदि नामों से जाना जाता है। इस त्यौहार पर बहनें अपने भाई का तिलक कर ईश्वर से उनकी लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। दूसरी ओर भाई भी बहनों के प्रति कर्तव्यों को पूर्ण करने का मानस संकल्प लेते हैं। लोक मान्यताओं के अनुसार इस त्यौहार के साथ भगवान श्री कृष्ण और सुभद्रा, यम और यमुना का जुड़ाव बना हुआ है।
पद्म पुराण के अनुसार कार्तिक शुक्लपक्ष की द्वितीया (Second Date Of Kartik Shukla Paksha) को पूर्वाह्न (दिन का पहला भाग) में यमदेव की पूजा करके कालिंदी यमुना में स्नान करने वाले मनुष्य को यमलोक की त्रास नहीं भोगनी पड़ता अर्थात उसे कैवल्य की प्राप्ति होती है। इस दिन मथुरा के विश्राम घाट पर स्नान करने का विशेष महात्मय होता है।
भाईदूज पर तिलक का शुभ मुहूर्त
भाई दूज पर तिलक मुहूर्त- 01:10 बजे से 03:18 बजे तक
तिलक मुहूर्त की शुभ अवधि- 2 घंटा 8 मिनट
द्वितीया तिथि आरम्भ-16 नवंबर 2020 को प्रात: 07:06 बजे से
द्वितीया तिथि का समापन- 17 नवंबर 2020 को प्रात: 03:56 बजे तक
भाईदूज की पौराणिक कथायें
भाईदूज की एक कथा द्वापरयुग से जुड़ी हुई है। भगवान कृष्ण जब राक्षस नरकासुर (Demon Narakasura) का वध करके वापस द्वारका लौटे तो उनका स्वागत उनकी बहन (सुभद्रा) ने फल, फूल और मिष्ठान से किया। देवी सुभद्रा ने दीप जलाकर भगवान कृष्ण की आरती उतारी और उन्हें तिलक किया। साथ ही उन्होनें भगवान कृष्ण की दीर्घायु की कामना भी की, जिसके बाद से भाईदूज मनाने की परपंरा स्थापित हुई।
इस त्यौहार से जुड़ी दूसरी कथा सूर्यदेव और छाया के पुत्र पुत्री यमराज तथा यमुना से जुड़ी हुई। यमुना कई अवसरों पर अपने ज्येष्ठ भ्राता यमराज से स्नेहवश निवेदन करती थी कि वे उनके घर आकर भोजन करके उन्हें कृतार्थ करें। अत्याधिक व्यस्तताओं के कारण यमराज उनके घर जाने में नाकाम रहते है, हर बार उन्हें यमुना के निवेदन टालना पड़ता है। आखिरकर समय निकाल यमराज कार्तिक माह के शुक्ल द्वितीया को अपनी बहन यमुना के गर पहुँचते है। भाई को अपने द्वार पर खड़ा देखकर यमुना भाव-विभोर हो जाती है। वे उनका भली-भांति स्वागत करते हुए आदर-सत्कार के साथ उन्हें भोजन करवाती है। यमुना के अगाध प्रेम और स्नेह को देखकर यमराज अत्याधिक प्रसन्न होते है। यमुना उनसे प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल द्वितीया तिथि अपने घर आने का वचन मांगती है। जिसे यमराज तथास्तु कहकर स्वीकारते है। साथ ही ये भी कहते है कि भाई दूज के दिन यदि भाई और बहन संयुक्त रूप से कालिन्दी (यमुना) स्नान करे तो उन्हें यमलोक की त्रास से मुक्ति मिलेगी। अकाल मृत्यु के संयोग नहीं बनेगें। साथ उस पर यमराज की कृपा बरसेगी।
भाई दूज के रिवाज़ और विधि
- इस दिन बहनें तिलक रस्म अदायगी के लिए आरती सजाती है। इसमें, श्रीफल अक्षत, गंध, पुष्प, कुमकुम, फल, सिंदूर, मिष्ठान सुपारी और ताम्बुल आदि सामान होना आवश्यक है।
- तिलक की रस्म से पहले चावल के आटे से चौक बनायें। इस चौक में भाई को बैठाकर श्रेष्ठ मुहूर्त में बहनें उनका तिलक करें।
- तिलक के पश्चात् आरती की थाली में रखे फूल, पान, सुपारी, बताशे और श्रीफल भाई को दें और उनकी आरती उतारे। इसके बाद भाई अपनी बहनों को उपहार स्वरूप कुछ भेंट दे। तिलक रस्म अदायगी के बाद बहनें यथा शक्ति भाई को सुस्वादु भोजन परोसे।