विश्व में पहली बार हुआ ये Competition, ऑनलाइन भी लोग हुए शामिल

नई दिल्ली (राम अजोर यादव): दुनिया भर में कई खेल प्रतियोगितायें (Competition), क्विज़ कॉम्पीटिशन होते है। जिनका मकसद मनोरंजन करने के साथ प्रतिस्पर्धी माहौल तैयार करने का होता है। हाल ही में हरियाणा के सोनीपत (Sonipat of Haryana) जिले की तहसील खऱखौदा के पिपली गांव में ऐसी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। जिसका मकसद हरियाणवी संस्कृति को वैश्विक पहचान दिलाने के साथ चूरमा के बारे में युवाओं को अवगत कराने का था। आज की भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में  फास्ट-फूड के चलते लोग अपने परम्परागत खानपान (Conventional Catering) से दूर होते जा रहे है। इसी को मद्देनज़र रखते हुए ज़्यादा चूरमा खाओ ईनाम पाओ प्रतियोगिता आयोजित की गयी।

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प्रतियोगिता के मुख्य आयोजक (Chief organizer) धमल फौजी (शमशेर सिंह) के मुताबिक- इस तरह की प्रतियोगिता विश्व में पहली आयोजित की गयी है। चूरमा आमतौर पर हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खाया जाता है। ये शुद्ध देसी घी से बनी मिठाई है। आज के दौर में ये कहीं ना कहीं अपनी पहचान खोती जा रही है। इसकी पहचान को दुबारा कायम करने के लिए इस कॉम्पीटिशन को आयोजित किया गया। इसकी मदद से प्रदेश के युवा और अन्य लोगों को रूझान एक बार फिर से इस ओर होगा।

मुख्य आयोजन स्थल पर तकरीबन 45 लोगों ने कॉम्पीटिशन में हिस्सा लिया। कोरोना महामारी को देखते हुए कॉम्पीटिशन में विश्व भर से कई लोगों ने ऑनलाइन भी हिस्सा लिया। कॉम्पीटिशन के दौरान दर्शकों और प्रतियोगियों का हौंसला देखते बना रहा था। प्रदेश से दूर बैठे लोगों के लिए प्रतियोगिता के लाइव की व्यवस्था भी की गयी थी। लगातार होने वाली लाइव कमेन्ट्री (Live commentary) की मदद से हिस्सा लेने वाले प्रतिभागियों का हौंसला चरम पर देखा गया। प्रतियोगिता में सभी आयु वर्ग के लोगों ने शिरकत की।

रोहणा के सुरेश ने तकरीबन 2 किलो चूरमा खाकर प्रतियोगिता में जीत अपने नाम दर्ज की, उन्हें स्मृति चिन्ह देकर 15 हज़ार रूपये की इनामी राशि दी गयी। सोनीपत के कृष्ण कोन्न दूसरे और मटिण्डू के हना सिंह तीसरे पायदान पर काब़िज रहे। सभ्यता, संस्कृति और देसी खान-पान का दुबारा पहचान दिलाने के लिए इस तरह की कवायद वाकई काबिले तारीफ है। आसपास के इलाकों में मुख्य आयोजनकर्ता धमल फौजी (शमशेर सिंह) और सिसाना निवासी आशीष दहिया (Sisana resident Ashish Dahiya) की पहल को जमकर सराहा जा रहा है। ऐसे में युवाओं का ये कर्तव्य बनता है कि, खान-पान और रहन-सहन के तौर तरीकों में पश्चिमी शैली की अंधानुकरण करने से बचे, और पलटकर वापस अपनी मूल जड़ो की ओर वापस लौटे।

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