Smog कथाएं

Smog कथा नंबर एक-

स्माग से मंत्री

एक समय की बात है कि एक राज्य में भारी स्माग यानी धुंध यानी जहरीला कोहरा पड़ने लगा।

एक नेता ने कही-यह तो घणी साजिश है। मैं इसके खिलाफ लड़ूंगा।

पब्लिक ने कही-कैसे लड़ोगे भईया, तुम यह तो बताओ लड़ोगे कैसे।

नेता स्पीचा-यह स्माग हमारा दुश्मन है। हमारे बच्चों का  दुश्मन है। इसे हटाकर मानेंगे हटा ही देंगे। मै सत्ता में आते ही स्मागपाल नियुक्त करुंगा। स्मागपाल (Smogpal) के आते ही स्माग खत्म हो लेगा। आप तो बस मुझे जितवा दो जी।

पब्लिक बहुत परेशान थी स्माग से, नेता को जितवा दिया।

नेता अब विदेश में रहता है। उनने अपने दफ्तर में भारी विराट एयर प्यूरीफायर (air purifiers) लगवा लिया है। पब्लिक उससे मिलने जाती है, तो भाई मिलता ही नहीं है।

इस तरह से स्माग बहुत ही पाजिटिव साबित हुआ-नेता के लिए।

जैसे नेता को सुखी किया स्माग ने वैसे ही सबको सुखी बनाये स्माग।

पर पर पर जो नेता नहीं हैं, वो क्या करें।

तो वो भी नेता बन जाये, नेता  बनने की मनाही थोड़े ही है। थोड़े दिनों में पानी जहरीला हो जायेगा तब वाटर स्माग पर नेतागिरी कर लें।

शिक्षा-इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि नेता हर हाल में मजे में रहता है।

Smog कथा नंबर दो-

स्विटजरलैंड में एनजीओ

उसी वक्त शहर में एनजीओ वाला था। उनने कुत्ता संरक्षण, आतंकी संरक्षण, मानवाधिकार आदि आदि विषयों पर एनजीओ चलाकर बहुत मोटी रकम खडी कर ली थी। पर वह और भी ज्यादा मोटी रकम खड़ी करना चाहता था। स्माग, जहरीला धुआं-यह विषय अभी खाया जाना बाकी था।

एनजीओ वाले ने भीषण भीषण फोटुएं लगा दीं अपनी वेबसाइट पर स्माग में बच्चे दम तोड़ते हुए, स्माग में मजदूर पछाड़ खाकर गिरते हुए। ऐसी बारी करुणा पैदा हुई फोटुओं को देखकर कि करोड़ों डालर का चंदा एनजीओ वाले के  खाते में आ गिरा। एनजीओ वाला टीवी चैनलों पर भी ध्यान देने लगा कि स्माग का इलाज यह है कि उसके  एनजीओ को इतना चंदा दिया जाये।

मोटा चंदा खाया एनजीओ वाले ने, इतना कमाया कि उसने अपने बच्चों को दिल्ली आबोहवा से बचाकर स्विटजरलैंड (Switzerland) के स्कूलों में एडमिट करा दिया।

खुद एनजीओ वाला आठ महीने स्विटजरलैंड में गुजारने लगा।

इस  तरह से स्माग एनजीओ वाले को खूब फला।

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि स्माग हरेक को नुकसान ना पहुंचाता, एनजीओ वाले को तो खूब फलता है स्माग। तो हम सबको एनजीओ वाला बन जाना चाहिए।

पर पर जो एनजीओ वाले नहीं हैं, वो क्या करें।

अरे जो एनजीओ वाले नहीं हैं, तो बन जायें एनजीओ वाले। संविधान ने नागिन वाले सीरियलों और एनजीओ पर कोई पाबंदी नहीं लगायी है।

Smog कथा-तीन

आम आदमी होने की आफत

एक्सपर्ट लोगों ने समझाईश दी कि प्रदूषण स्माग से बचना हो, तो घऱ से ही ना निकलो।

ओ के जी पर घर से निकलने के लिए एक घऱ का होना जरुरी होता है।

जिसके पास घर ही ना हो, वह कहां से निकले और कहां  जायेगा।

देखिये, एक्सपर्ट लोग मोटी मोटी बात कह देते हैं, उनका पालन कैसे होगा, यह देखना उनका जिम्मा नहीं है।

तो एक आम आदमी था, वह खास आदमी की कोठी के सामने रहता था। खास आदमी की कोठी में बिजली ना आने की वजह से जनरेटर चलता था। आम आदमी का बच्चा दिन भर खुले में खेलता था, दिन भर जनरेटर का धुआं और स्माग खाता था फेफड़े बहुत मजबूत हो गये।

खास आदमी का बच्चा एक दिन घर से बाहर बिना एयरकंडीशंड कार के निकला, तो उसका तो खांसते खांसते बुरा हाल हो गया, बच्चे को अस्पताल में भरती कराना पड़ा।

खास आदमी ने आम से पूछा-तेरा बच्चा तो एकदम तंदुरुस्त है, ऐसे धूल धक्कड़ में। कैसे।

आम ने कहा-इसके लिए गरीब होना पड़ता है।

स्माग ने अमीर को भी चक्कर में डाल दिया है कि अब आम आदमी वाले फेफड़े वह कहां से लाये।

साभार- आलोक पुराणिक

Photo Courtesy- National Geographic

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