प्रधानमंत्री मोदी तथा उनकी बांग्लादेशी समकक्ष के पीछे जो तस्वीर लगी है, वो 30 मिनट (30 Minutes) में लिए गए एक ऐसे फैसले की गवाह है, जिसने पूरे विश्व में भारत का लोहा मनवा दिया!
भारतीय सेना इसी उपलक्ष्य में हर साल 16 दिसंबर को “विजय दिवस” के रूप में मनाती है!
दिसम्बर 1971 में पाकिस्तान के पूर्वी हिस्से (पूर्वी पाकिस्तान) को तोड़कर बांग्लादेश बनाया गया! …और उस वक्त देश की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी (Prime Minister Mrs. Indira Gandhi) थीं जिनका आज जन्मदिन है!
पहले तो उन्हें भर भर के नमन रहेगा!
1971 के इस युद्ध के दौरान भारत के पुराने दोस्त रूस ने भारत को इस बात का भरोसा दिया था कि यदि इस दरम्यान चीन या अमेरिका की तरफ से कोई दखलंदाजी होगी तो रूस की सेना इसका माकूल जवाब देगी!
नतीजतन, चीन तमाशबीन बना बैठा रहा और पाकिस्तान की मदद को निकला अमरीकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन (US President Richard Nixon) की नेवी का आठवां बेड़ा मुंह ताकता रह गया!
इस युद्ध में भारत की तीनों सेनाओं ने अपना रौद्र रूप दिखाया, जिनपर कई फिल्में बनी! भारतीय नौसेना पर बनी फिल्म ‘The Ghazi Attack’ काफी लोकप्रिय हुई है!
पाकिस्तानी वायुसेना ने “ऑपरेशन चंगेज खान” लांच किया था! इसमें भारत के 11 एयरबेसों पर बमबारी की गयी! सैन्य ठिकानों के साथ साथ रिहायशी इलाकों पर भी बम गिराए गए थे!
इन्ही एयरबेसों में एक एयरबेस आगरा भी था जो भारत-पाक सीमा से 480 km की दूरी पर था! इतिहास में यह शायद पहला मौका था जब आगरा स्थित ताजमहल को पूरी तरह से ढंकना पड़ गया था क्यों कि यह रात में दूधिया रौशनी से नहा उठता था!
अब जवाब देने की बारी भारत की थी!
3 दिसम्बर 1971 को भारतीय वायुसेना पाकिस्तानी वायुसेना व सिविल हवाई अड्डों पर कहर बनकर टूट पड़ी! ….और इसी के साथ 1971 भारत-पाक युद्ध की आधिकारिक घोषणा हो गयी!
उधर भारतीय नौसेना “ऑपरेशन ट्राइडेंट” के नाम से अपने विजय अभियान की तरफ निकल चुकी थी! इतना बारूद बरसाया गया कि पाकिस्तान की तीन पनडुब्बियां पूरी तरह तबाह हो गयीं और कराची बंदरगाह धू धू कर जलने लगा!
पूर्वी तट पर आईएनएस विक्रांत जल्लाद की तरह 8 मालवाहक जहाजों के साथ साथ दो पाकिस्तानी लड़ाकू पनडुब्बियों का रास्ता रोके खड़ा था!
INS विक्रांत से निपटने के लिए पाकिस्तान ने अपनी सबसे अत्याधुनिक पनडुब्बी PNS गाज़ी को भेजा! वह संदेहास्पद परिस्थितियों में बीच में ही डूब गया!
भारतीय थलसेना जो हाल ही में चीन से युद्ध लड़कर आयी थी, उसे पाकिस्तान ने ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया था! जबकि पूर्वी पाकिस्तान में मुक्तिवाहिनी के साथ सबसे ज्यादा तांडव भारतीय सेना ने ही मचाया!
14 दिसम्बर की दोपहर को भारतीय वायुसेना के MiGs ने ढाका स्थित उस सरकारी भवन के मेन हॉल को ही उड़ा दिया जहाँ Provincial Government की इमेरजेंसी मीटिंग चल रही थी!
जनरल नियाज़ी किसी तरह जान बचाकर भागा और उसने राष्ट्रपति याहया खान को सन्देश भेजा कि अब युद्धविराम की घोषणा कर देनी चाहिए!
नियाज़ी के युद्धविराम का संदेश लेकर अमरीकी अम्बेसडर भारतीय सेनाध्यक्ष मानेकशॉ के पास आया और बोला- पाकिस्तान युद्धविराम करना चाहता है! साथ में अपने कैदी सैनिकों की सुरक्षित रिहाई भी!
लेकिन भारत की प्रधानमंत्री को यह मंजूर नहीं था! वे एक ऐसा मिसाल कायम करना चाहती थीं, जिसे पूरी दुनिया देखे!
सैम मानेकशॉ ने कहा- युद्धविराम और सैनिकों के सुरक्षा की गारंटी हम तभी देंगे जब पाकिस्तानी आत्मसमर्पण करेंगे!
दिन तय हुआ 16 दिसम्बर!
लेकिन नियाज़ी तैयार नहीं था! भारतीय सेना के ले. जनरल जैकब को ढाका भेजा गया! वे सीधे पाकिस्तानी सेना के मुख्यालय में घुस गए और नियाज़ी के कमरे में जाकर उसको सरेंडर के कागजात पकड़ा दिए!
नियाज़ी ना नुकुर करने लगा!
जनरल जैकब ने दो टूक शब्दों में कहा- हम तुम्हे आधे घण्टे की मोहलत दे रहे हैं! Only 30 minutes!! उसके बाद हम फिर ढाका पर हमला बोल देंगे!
इतना बोलकर वह कमरे से बाहर निकल आये!
16 दिसम्बर 1971 को शाम साढ़े चार बजे भारतीय सेना पूर्वी कोर के चीफ लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने जनरल नियाजी ने कांपते हाथों से आत्मसमर्पण के कागजात पर दस्तखत किया!
दस्तखत के बाद नियाज़ी से उसकी पिस्तौल छीन ली गयी! .38mm की वह पिस्तौल इन्डियन मिलिट्री अकादेमी, देहरादून के संग्रहालय में आज भी सुरक्षित रखी हुई है!
ये पिस्तौल भारत के ट्रेनी आर्मी अफसरों को इस बात का एहसास दिलाती रहती है कि वे किस खतरनाक फ़ौज का हिस्सा बनने जा रहे हैं!
कुछ तस्वीरें इतिहास में दर्ज हो जाती हैं, जिनके सामने बैठकर वर्तमान गर्व से अपनी फोटू खिंचवाता है
(और हाँ! इंदिरा गांधी को इसके लिए आर्मी वाली वर्दी नहीं पहननी पड़ी थी)
साभार- कपिल देव