पीढ़ी दर पीढ़ी….
देश की Housing and Urban Affaires मंत्रालय ने पंडित बिरजू महाराज (Pandit Birju Maharaj) और उन जैसे 27 नामचीन कलाकारों (Famous Artists) को सरकारी बंगला खाली करने का फरमान सुना दिया है! कलाकार अपमानित महसूस कर रहे हैं और केंद्र की सरकार, उसकी मातृ व सिस्टर संस्थाएं जो भारतीय संस्कृति की कथित रक्षक बनी फिरती हैं…सबको सांप सूंघ गया है!
इसके पीछे एक वजह है! …और वो वजह है हम भारतीयों के अंदर सामाजिक, शैक्षिणक व सांस्कृतिक मूल्यों का लगातार होता पतन!!
यदि किसी पीढ़ी के बचपन और बुढ़ापे को निकाल दें तो अमूमन एक पीढ़ी की सक्रिय उम्र 40 साल मानी जाती है! इस सक्रिय उम्र का अधिकांश हिस्सा हायर सेकंडरी के बाद ग्रेजुएशन, शादी ब्याह, बाल बच्चे और भविष्य संवारने में निकल जाता है!
सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक समझ भी इसी सक्रिय उम्र में पल्लवित होते हैं!
1947 को हमें आजादी मिली! जिन लोगों ने गुलामी को झेला अथवा गुलामी व आजादी की दहलीज पर पैदा हुए होंगे उनकी सोच समाज और देश के प्रति क्या रही होगी?
इसका जवाब हमें मिलता है….
-हमारे उत्कृष्ट शिक्षण संस्थानों से…जहाँ कुशल शिक्षक उम्दा स्तर की शिक्षा देते हैं!
-हमारी स्वास्थ्य संस्थानों से…जहाँ उच्च स्तर के डॉक्टर, मेडिसन, लैब मौजूद हैं!
– हमारे सैन्य संस्थानों से….जहाँ काबिल अफसर अपने देश के नौजवानों को बेहतर प्रशिक्षण देते हैं!
-हमारे प्रशासनिक संकायों से…जहाँ अलग अलग विभागों की भर्तियां, प्रशिक्षण व नियुक्तियां होती हैं!
– हमारी कला व संस्कृति से….जहाँ एक से बढ़कर एक कीर्तिमान गढ़े जाते हैं!
-हमारे कल कारखानों, खेत खलिहानों से…जो देश को आत्मनिर्भर बनाते हैं!
-हमारी भाषा, बोली व लेखन से….जो हमें हमारी पहचान दिलाते हैं!
60-70 के दशक तक (जिसमे कुछ दौर 80 का भी रहा) देश में इन्ही विषयों पर सरकारें चुनी गयीं! …और उन सरकारों ने इन विषयों पर कार्य भी किये!
क्योंकि ये दौर उन वोटरों, नेताओं, प्रशासनिक अफसरों, शिक्षकों, सैन्य अफसरों का था जो साथ में अंग्रेजों की लाठियां खाये थे! जेल गए थे! यातनाएं सही थीं! उन्होंने अपने सपनों का भारत बनाया था!
आजादी के दौर वाली पीढ़ी तो स्वर्गवासी हो ली! जो पीढ़ी 60-70 के दशक में पैदा हुई है वह भी बूढी हो चली है! इनकी भाषा में, व्यवहार में आज भी थोड़ा बहुत सलीका दिख जाता है, जो इन्हें अपने पुरखों से मिला था!
जिस संस्कृति की हम आज दुहाई दे रहे हैं, उसे ढोकर यही पीढ़ी हमतक लाई थी!
अब जो पीढ़ी 80 के बाद पैदा हुई है, ये उसका समय चल रहा है! लेकिन यह पीढ़ी अपनी पिछली दो पीढ़ियों के सारे किये कराये पर पानी फेर रही है!
हम उनकी दी हुई सभी धरोहरों को एक एक कर के गंवा रहे हैं! कला, संस्कृति, शिक्षा, चयन प्रणाली, प्रशिक्षण, गुणवत्ता, भाषा, चरित्र, खेत, खलिहान, कुंवे, तालाब, बैंक, रेलवे सब कुछ!
ये सब हमें प्लेट में सजाकर मिला हुआ था! बस उसे संजोकर रखना था! लेकिन हम सब बर्बाद करने पर तुले हुए हैं! पंडित बिरजू महाराज and कम्पनी के साथ जो सुलूक हुआ है वह इसी सांस्कृतिक पतन की प्रक्रिया (Process of cultural decline) का हिस्सा है! उनके साथ राष्ट्रीय स्तर पर हो रहा है, और इस भजन गायिका के साथ स्थानीय स्तर पर हुआ था! सुलूक करने वाले हमारे अपने हैं! कला की बेइज्जती दोनों ही जगहों पर हो रही है! बस लेवल का फर्क है….नेशनल और लोकल!
.….और यही इस पीढ़ी की जमापूंजी है!
मूल्यहीन और चरित्रहीन!
To whosoever it may concern…
साभार- कपिल देव