Munshi Premchand, शतरंज के खिलाड़ी और बर्बाद होता मुल्क

शतरंज के खिलाड़ी….

1924 में मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) ने रजवाड़ों पर कटाक्ष करते हुए यह कहानी लिखी थी! इसका लब्बोलुआब ये था कि देश रजवाड़ों की विलासिता की वजह से गुलाम हो गया! नाच-गाना, शराब और तमाम ऐसे दिखावों में रजवाड़े इस कदर उलझे रहे कि देश की एक के बाद दूसरी और दूसरी के बाद तीसरी रियासत….और ऐसा करते करते पूरे देश पर अंग्रेजों की हुकूमत हो गयी!

ये बात सच भी है कि देश रजवाड़ों के दौर में गुलाम हुआ! लेकिन आजादी हमें मिली आम जनता के संघर्ष से जिनमें बड़ी संख्या में किसानों, सैनिकों, मजदूरों, छात्रों की भागीदारी थी! …और इनका नेतृत्व कोई रजवाड़ा नहीं बल्कि देश के कुछ बुद्धिजीवी कर रहे थे!

रजवाड़ों की खुमारी तो तब टूटी जब अंग्रेजों ने कई तरह के एक्ट लगाकर, टैक्स न देने पर, संतान न होने पर इनकी रियासतों पर न सिर्फ कब्जा करना शुरू किया बल्कि बेदखल कर के इनकी पेंशन निर्धारित करने लग गये! अधिकांश रियासतें तो अपने अस्तित्व के लिए अंग्रेजों के विरोध में खड़ी हुई थीं!

1857 का गदर  “रजवाड़ा विद्रोह” नहीं, “सिपाही विद्रोह” के नाम से जाना जाता है…जिसका बिगुल किसी रजवाड़े ने नहीं बल्कि साधारण से एक सिपाही ने फूंका था!

अंग्रेज मुट्ठीभर थे और रियासतें तमाम! लेकिन रजवाड़े यहाँ भी अपनी एकजुटता नहीं दिखा पाये और “सिपाही विद्रोह” निर्ममता से कुचल दिया गया!

…और इसके साथ ही देश अगले 90 और सालों के लिए गुलाम हो गया!

फिर लड़ाई की बागडोर जनता ने अपने हाथ में ली!

– उस जनता ने, जिसके खेतों में क्या उगेगा ये अंग्रेज तय कर रहे थे!

– उस जनता ने, जिसके बेटों को गिरमिटिया मजदूर बनाकर दूसरे देशों में भेजा जा रहा था!

– उस जनता ने, जिसके साथ चमड़ी के रंग को लेकर भेदभाव किया जा रहा था!

– उस जनता ने, जिसके पढ़े लिखे बच्चों को सिविल सर्विस में नहीं बैठने दिया जाता था!

– उस जनता ने, जिसके घरेलू उद्योग को उसके ही सामने खतम किया जा रहा था!

– उस जनता ने जिसकी बेटियों को देश के सबसे बड़े चकलाघर पर बिठाया जा रहा था!

लाखों की संख्या में लोगों ने लाठियां खायीं! जेल गए! यातनाएं सहीं!  कुछ को फांसी भी हुई!

लेकिन इस संघर्ष में भी 90 साल लग गए!

अंग्रेजों के पहले व्यापारिक जहाज (Merchant ship) के भारतीय सीमा में घुसते ही यदि रजवाड़े सतर्क हो गए होते तो आज देश का इतिहास भूगोल कुछ और होता!

लेकिन रजवाड़े अपनी बारी का इंतजार करते रहे….जो एक न एक दिन आनी ही थी!

इसकी सजा रजवाड़ों को मिलनी ही थी! अंग्रेजों के जाने के साथ साथ रजवाड़ों का देश में विलय कर दिया गया! उनकी जमीनें छीन ली गयीं! ….और उन्हें एक आम नागरिक बनाकर छोड़ दिया गया!

रजवाड़े दो जगह मात खाये!

1- अंग्रेजों के सामने और…

2- लोकतंत्र के सामने

अंग्रजों के सामने मात खाकर भी उनकी पहचान बनी रही! लेकिन लोकतंत्र तो उनकी पहचान तक खा गया!

17वीं सदी की गलती की सजा रजवाड़ों को 20वीं सदी में जाकर मिली!

फ़िलहाल देश में लोकतंत्र है! लेकिन दुनिया का दूसरा सबसे अमीर इंसान इसी देश का है!

अधिग्रहण आज भी हो रहा है! जमीनें, जंगल, नदियों, इंसानों पर कब्जा आज भी किया जा रहा है! समूहों में बंटकर सब एक दूसरे को बर्बाद होते हुए देख रहे है और अपनी अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं…जो एक न एक दिन होनी ही है!

हिन्दू मुसलमान के बर्बाद होने का इंतजार कर रहा है और  मुसलमान हिन्दू के!

बिहार का आदिवासी (Tribal of Bihar) छतीसगढ़ के आदिवासी को बर्बाद होते हुए देख  रहा है और पंजाब का किसान महाराष्ट्र के!

सवर्ण दलित को बर्बाद होते हुए देख रहा है और दलित महादलित के!

स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया के खाताधारक PMC बैंक के खाताधारकों को बर्बाद होते देख रहे हैं और PMC वाले लक्ष्मी विलास बैंक के खाताधारकों को!

किंगफिशर एयरलाइन्स के कर्मचारी यूपी के शिक्षकों को बर्बाद होते देख रहे हैं और बिहार के छात्र बंगाली शरणार्थियों को!

लोहार कुम्हार को बर्बाद होते देख रहा है और दिहाड़ी मजदूर MSME सेक्टर को!

लेकिन एकजुटता कहीं नहीं है!

सब अफीम खाकर शतरंज खेलने में व्यस्त हैं और बर्बादी दहलीज पर खड़ी है! फर्क सिर्फ इतना है कि इस बार दोनों लोग अपने हैं!

बर्बाद करने वाले भी!

बर्बाद होने वाले भी!

साभार- कपिल देव

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