सिर्फ गहने उतारें
मुनि विश्वाचित्र (Muni Vishwachitra) गहन साधना, तपस्या में लीन थे। इंद्रलोक में हड़कंप मच लिया। विकट साधना चली, ऊपर इंद्र की नींद उड़ने लगी, हाय हाय मुनि विश्वाचित्र तप करके कहीं मेरा सिंहासन ना खेंच ले। इंद्र सोचने लगे कि कैसे मुनि से निपटा जाये। इंद्र को पुरानी तकनीकें, पुरानी चालें याद आयीं। फौरन सुंदरी-अप्सरा स्टाक रजिस्टर (Apsara Stock Register) देखकर नये डांस में निपुण अप्सराओं को नीचे रवाना किया।
सुंदरियां चल निकलीं, और मुनि चित्रामित्र को तरह-तरह से नृत्य करके रिझाने के उपक्रम में लग गयीं।
नृत्य, गायन, तरह-तरह से करने के पश्चात भी मुनि पिघले नहीं। अप्सराएं परेशान हुईं।
एक वरिष्ठ अप्सरा बोली-कैसा खूसट मुनि है। वृद्ध मुनियों को फुसलाना तो सबसे आसान होता है। बल्कि उन्हे तो फुसलाना ही नहीं होता। वो तो खुद ही फुसले-फिसले बैठे होते हैं। हमें तो बस आने की सूचना देनी होती है। यह मुनि चित्रामित्र कैसे हैं, समझ नहीं आ रहे हैं। इधर ट्रेंड बदल गया है, तुम देखो, सुंदरियों के साथ रमण के उत्सुकों में वृद्धों की तादाद बहुत ज्यादा हो गयी है। नौजवान इस तरह के चक्करों में कम ही फंस रहे हैं। पर ये बूढ़े मुनिवर हमारे जाल में क्यों ना फंस रहे हैं। आखिर इनका खेल क्या है।
टेंशन फैल गया अप्सराओं के खेमे में।
एक अप्सरा मुनि चित्रामित्र के सामने आकर कतई मादक मुद्रा में बैठ गयी। मुनि ध्यान देंगे, ऐसा अप्सरा ने सोचा।
मुनि आप आदेश करें, मैं आपकी सेवार्थ प्रस्तुत हूं-अप्सरा ने मधुर स्वर में ऐसा कहा।
मुनिवर ने ऐसी मादक आवाज सुनकर नेत्र खोले, अप्सरा को लगा उसका रुप-सौंदर्य काम कर गया।
मुनि आप आदेश करें, आपके आदेश का इंतजार कर रही हीं मैं-अप्सरा ने कहा।
मुनि ने कहा-हे स्वर्ण आभूषणों से लदी-फदी सुंदरी तू सिर्फ अपने स्वर्णाभूषण उतार कर रख जा।
अप्सरा ने चकित होकर पूछा-हे मुनिवर आप पर्याप्त वृद्ध प्रतीत होते हैं। ऐसी उम्र में तो प्रणय याचना बहुत नार्मल बात होती है। आपके मन में मुझ जैसी सुंदरी को देखकर भी प्रणय का भाव जागृत ना हो रहा है। ऐसा कैसे संभव है।
मुनि ने कहा-हे अप्सरे, आटा सैंतीस रुपये किलो हो लिया है। टमाटर अस्सी रुपये किलो हो लिया है, प्याज गिरकर भी सत्तर रुपये किलो बिक रहा है। मारे महंगाई के पेट में कुछ भी ना गया, तू प्रणय की बात करती है।
अप्सरा को धक्का लगा, जैसे उसके सौंदर्य का अपमान हुआ हो, वह बोली-हे मुनि, कैसी बातें करते हैं। मेरा सौंदर्य तो सबको सब कुछ भुला देता है।
मुनि ने अप्सरा को डांटा-भूख की प्रतीती तुझे कभी ना हुई है, इसलिए तू रुप-गर्विता हुई है। गेहूं से ज्यादा सुंदर कुछ भी नहीं है और प्याज के शिल्प से ज्यादा रुचिकर शिल्प मुझे कुछ नहीं दिखायी पड़ रहा है। सुंदरी तू अपने स्वर्णाभूषण उतारकर निकल ले, अपने सौंदर्य को तू अपने साथ ही वापस ले जा।
अप्सरा ने चकित होकर पूछा-आप मेरे स्वर्णाभूषणों (Gold jewelery) का क्या करेंगे मुनिवर।
मुनि ने बताया-सोने के भाव करीब पचास हजार रुपये प्रति दस ग्राम चल रहे हैं, यही भाव कुछ दिनों में आलू टमाटर के हो जायेंगे। सोना बेचकर सब्जी खरीदूंगा माता।
अप्सरा बोली-आपने मुझे माता कहा फिर भी आप मेरे शरीर के स्वर्णाभूषण मांग रहे हैं और कह रहे हैं कि स्वर्णाभूषण रखकर चली जा।
मुनि ने स्पष्ट किया-आजकल नया चलन यही है कि माता के गहने संपत्ति अंदर करके उसे जाने को कह दिया जाता है। मैं तो तेरे साथ मातृवत व्यवहार ही कर रहा हूं।
अप्सरा सन्न रह गयी। चुपके से सोने के गहने उतारकर मुनि के पास रख दिये और बाकी की अप्सराओं को भी निर्देश दिये कि सोने के गहने उतारकर मुनि को पेश किये जायें, ताकि उनकी सब्जी-आटे का जुगाड़ हो जाये।
इस तरह मुनि की तपस्या भंग करके और मुनि से मातृवत व्यवहार (Motherly behavior) पाकर तमाम अप्सराएं वापस स्वर्ग लौट गयीं और इंद्र को रिपोर्ट किया-मिशन कंपलीटेड।
साभार – आलोक पुराणिक