Mahatma Gandhi उर्फ रोजगार योजना पर पहला ईनाम जीतने वाला निबंध

महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (Mahatma Gandhi National Employment Guarantee Scheme) पर आयोजित निबंध प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार निबंध इस प्रकार है-

महात्मा गांधी को एक वक्त तक सिर्फ महापुरुष माना जाता था, पर अब वह रोजगार योजना हो गये हैं। बहुत बड़ीवाली रोजगार योजना, तरह-तरह के लोगों को तरह-तरह के रोजगार देनेवाली रोजगार योजना (Employment scheme) । यह स्कीम लगायी गयी, तो कई सांसदों को इसके नाम पर रोजगार मिल गया, वो चुनकर आ गये।

करीब 100000 करोड़ रुपये से भी ऊपर के खर्चवाली इस रोजगार योजना में  सांसदों, छुटभईये नेताओं, फर्जी ठेकेदारों और कुछ असली मजदूरों (Real laborers) को रोजगार मिलता है।

सांसदों का रोजगार बना रहे, इसलिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना पर खर्च बढ़ाने का प्रस्ताव समय-समय पर आता रहता है।

महात्मा गांधी रोजगार स्कीम के फर्जीवाड़े को उजागर करने में लगे अखबारों और चैनलों को भी रोजगार मिलता है, महात्मा गांधी रोजगार स्कीम से। स्कीम ना होता, तो फर्जीवाड़ा ना होता, फर्जीवाड़ा ना होता, तो चैनल सन्नी लियोन की गासिप दिखाकर न्यूज चैनल को फ्यूज चैनल बना रहे होते। महात्मा गांधी रोजगार स्कीम के फर्जीवाड़े की न्यूज देकर न्यूज चैनल न्यूज में बने रहे, इसका श्रेय भी महात्मा गांधी रोजगार स्कीम को जाता है।

पर ऐसा नहीं है कि महात्मा गांधी से सिर्फ सरकारी पक्ष को ही रोजगार मिलता है। रोजगार देने के मामले में महात्मा गांधी सर्वपक्षीय हैं। विपक्षी पार्टी के सांसद वरुण गांधी ने हाल में बताया कि अगर गांधी नाम उनके नाम के आगे ना जुड़ा होता, तो वह कहीं पोस्टर लगा रहे होते या किसी नेता का जयकारा लगा रहे होते। गांधी नाम में इतना प्रताप है कि सही-सैट सांसदी तक का रोजगार मिल जाता है।

महात्मा गांधी के नाम पर चल रहे अस्तपालों, उनके नाम पर पल रहे एनजीओ, उनके नाम पर चल रहे विश्वविद्यालयों में एक सतत भंडारा चल रहा है, जहां बंदे, उनके चंपू अपनी  हैसियत और क्षमताओं के हिसाब खा-फैला रहे हैं।

महात्मा गांधी स्वर्ग में अपने नाम से चलनेवाले इतने रोजगारों को देखकर चकरायमान हो सकते हैं और अपने सहकर्मी पटेलजी से कहते पाये जा सकते हैं-मैं अब भारत-भूमि में रोजगार की थीम हो गया हूं, माना जाता था कभी स्वतंत्रता सेनानी, अब तो रोजगार की स्कीम हो गया हूं।

साभार – आलोक पुराणिक

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