न्यूज डेस्क (यथार्थ गोस्वामी): हिन्दू मान्यताओं में प्रत्येक वर्ष मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव जयंती (Kaal Bhairav Jayanti)/ काल भैरव अष्टमी मनाये जाने का स्थापित विधान है। काल भैरव भगवान शिव का ही अंश है। इन्हें काशी का कोतवाल, श्मशान देव और तंत्र विधान का सर्वोच्च देव माना जाता है। इस साल कालभैरव जयन्ती आगामी 7 दिसम्बर को है। सद्गुरू जग्गी वासुदेव के अनुसार किसी भी मनुष्य की मृत्यु के दौरान भगवान काल भैरव ही मनुष्य को भैरवी यातना (Bhairavi Yatna) देते है। जिसके अन्तर्गत मनुष्य अपना पूरा जीवन चक्र कुछ ही क्षणों में देखता है, जिससे उसे आत्मिक पीड़ा का अनुभव होता है। भगवान कालभैरव की कृपा प्राप्त करने वाला उपासक भैरवी यातना से बचा सकता है।
यदि कोई उपासक/साधक भैरव तंत्रोक्त, बटुक भैरव कवच, काल भैरव स्तोत्र, और बटुक भैरव ब्रह्म कवच आदि का नियमित रूप से विधि-विधान पूर्वक पाठ करता है तो काला जादू (Black Magic), ऐन्द्रजालिक बाधा और समस्त पैशाचिक समस्याओं का समाधान हो जाता है। जातक मंगल दोष और राहु-केतु को शांत करने के लिए खासतौर से कालभैरव आराधना अमोघ मानी जाती है। भगवान काल भैरव श्मशान के देवता है। इसलिए उनकी आराधना के लिए रात्रि 12 बजे से 3 बजे का समय माना जाता है। इनकी सवारी काला कुत्ता है साथ ही इन्हें चमेली की फूल अत्यन्त प्रिय है। भोग में भगवान काल भैरव को विशेष रूप से उदड़ की दाल का बड़ा, गुड़ और मदिरा भोग लगायी जाती है।
काल भैरव सिद्धि मंत्र
“ह्रीं बटुकाय अपुधरायणं कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं।”
“ओम ह्रीं वम वटुकरसा आपुद्दुर्धका वतुकाया ह्रीं”
“ओम ह्रीं ह्रीं ह्रौं ह्रीं ह्रौं क्षाम क्षिप्रपलाय काल भैरवाय नमः”
काल भैरव अष्टमी पूजन विधान
- कालभैरव अष्टमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर साधक भगवान भैरव की आराधना और व्रत का मानस संकल्प ले।
- माँ पार्वती, भगवान पशुपतिनाथ और काल भैरव की संयुक्त आराधना करे। धूप-दीप, गंध, पुष्प और मिष्ठान अर्पित करते हुए भगवान काल भैरव की उत्पत्ति का श्रवण करें।
- सपरिवार रतजगा करते हुए समर्थ आचार्यों की उपस्थिति में काल भैरव के अष्ट रूपों का ध्यान कर अर्धरात्रि में उनके मंत्रों का जाप करें।
- कुत्तों खासतौर से काले कुत्ते को इस दिन दूध और मिठाई का भोग लगाये। इससे व्रत और अन्य धार्मिक कृत्यों का समस्त पुण्य सुलभ होता है।
- रात्रि में इन समस्त उपायों को पूर्ण करने के बाद शंख, घंटियों और ढोल की मांगलिक ध्वनि के बीच भगवान काल भैरव की आरती करे और व्रत का उद्यापन की ओर ले जाये।
भगवान काल भैरव की उत्पत्ति कथा
काल भैरव भगवान शिव का ही रौद्र रूप है। एक बार त्रिमूर्तियों (शिव-ब्रह्मा-विष्णु) में शक्ति, सामर्थ्य और वर्चस्व को लेकर चर्चा चल रही थी। इस बीच भगवान शिव ब्रह्मा की किसी बात से रूष्ट हो गये। गुस्से में उनके माथे से महा काल भैरव की उत्पत्ति हुई। जिन्होनें अपने नाखून की मदद से ब्रह्मा का पांचवा सिर काट दिया। जिसके कारण काल भैरव पर ब्रह्म हत्या का पाप लगा। जिसका निराकरण करना किसी के वश में ना था। भगवान शिव ने काल भैरव को आदेश दिया कि ब्रह्म का कटा सिर लेकर वो समस्त पृथ्वी पर विचरण करे। जहां ब्रह्मा का सिर स्वत: उनके हाथ से छूटकर गिर जायेगा। वहां ब्रह्म हत्या के पाप से उन्हें मुक्ति मिल जायेगी। इसी क्रम में काल भैरव ब्रह्मा का कटा सिर लेकर पृथ्वी पर घूमने लगे। काशी में पहुँचकर उनके हाथ से ब्रह्मा का सिर छूट गया और उन्हें ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिल गयी। जिसके बाद वो काशी के कोतवाल और अधिष्ठात्र देवता के रूप में स्थापित हो गये। काशी विश्वनाथ के दर्शन से पहले भैरव की आराधना अनिवार्य मानी गयी है।