नई दिल्ली (शौर्य यादव): साल 1950 में संयुक्त राष्ट्र संघ की अगुवाई में 10 दिसम्बर को मानवाधिकार दिवस (Human Rights Day) घोषित किया गया। इस दिन की पृष्ठभूमि को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने साल 1948 में मानव अधिकारों की सार्वभौमिक औपचारिक घोषणा कर तैयार कर दिया था। इस साल संयुक्त राष्ट्र महासचिव, एंतोनियो गुटेरेस ने वीडियो संदेश जारी कर कोविड महामारी का सामना करने, लैंगिक समानता, जनभागीदारी, सतत् विकासात्मक अवधारणा (Sustainable development concept) और क्लाइमेट जस्टिस को मानवाधिकारों का प्रमुख पक्ष करार दिया।
ये वे मूलभूत अधिकार है, जिनसे नस्ल, जाति, राष्ट्रीयता, धर्म, लिंग आदि किसी भी कारक के आधार पर इंसान को वंचित नहीं किया जा सकता है। इन अधिकारों के मूल में आजादी, समानता और सम्मानपूर्वक जीवनयापन करने का अधिकार है। इन्हीं बातों के बुनियाद बनाते हुए हमारे देश में साल 1993 के 12 अक्टूबर को राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन किया गया। इन अधिकारों को भारत में 28 सितंबर 1993 में वैधानिक मान्यता (Legal recognition) मिली। मानवाधिकारों में उल्लेखित अधिकारों को भारतीय संविधान के भारतीय संविधान के भाग-तीन के तहत मूलभूत अधिकारों में सम्मिलित किया गया है।
इन अधिकारों का हनन करने वालों के खिलाफ अदालती सज़ा के कड़े प्रावधान निर्धारित किये गये है। यदि कोई राजकीय कर्मचारी इरादतन मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है तो उसकी पदोन्नति और पेंशन को रोका जा सकता है। साथ ही इसके उल्लंघन की रिपोर्ट उसके सीआर में जमा हो जाती है, जिससे उसका करियर ट्रैक रिकॉर्ड तक खराब हो सकता है। मानवाधिकारों के संरक्षण और सशक्त क्रियान्वयन के लिए भारत में स्वायत्त संस्थान (Autonomous institute) राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग मजबूती से काम करता है। साथ ही राज्यों में राज्य मानवाधिकार आयोग इस काम की बागडोर संभालता है।
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ह्यूमन राइट्स वॉच (Human rights watch) नामक संगठन मानवाधिकारों की निगरानी करने का काम करता है। भारत में मानवाधिकारों को लेकर अक्सर शहरी और शिक्षित लोगों में औसतन जागरूकता देखी गयी है। ग्रामीण, आदिवासी और दलित समुदाय में मानवाधिकारों के प्रति चेतना का अभाव देखा गया है। कई बार मानवाधिकार विवादस्पद विषय की श्रेणी में रहा है। खासतौर से कश्मीर घाटी में जहां कश्मीरी आवाम़ और सुरक्षा बलों के बीच मानवाधिकार उल्लंघन का मुद्दा टीवी डिबेट्स का ज्वलंत मुद्दा रहा है। भले ही कुछ लोग मानवाधिकारों का गलत इस्तेमाल करते हो। लेकिन बड़ी आबादी को ये गरिमामय जीवन जीने के अवसर सुनिश्चित कराता है।