नई दिल्ली (शौर्य यादव): तीन केन्द्रीय कृषि कानून को रद्द करने की मांग को लेकर किसानों का प्रदर्शन (Farmers Protest) अब देश की सीमाओं से बाहर निकलता दिख रहा है। सत्ता पक्ष कांग्रेस सहित कनाडा के प्रधानमंत्री पर ट्रूडो पर इससे सियासी लाभ (Political advantage) लेने के आरोप लगा रहा है। बीते शनिवार को वॉशिंगटन में भारतीय दूतावास के सामने इस प्रदर्शन की एक अलग ही तस्वीरे देखने को मिली। जहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रतिमा को तोड़कर खालिस्तान झंडे लहराये गये।
उग्र भीड़ ने हाथों में बैनर-पोस्टर लिए हुए बापू की प्रतिमा का घेराव किया। जिसके बाद खालिस्तानी झंडे फहराते हुए नारे लगाये गये। इस बीच राष्ट्रपिता की प्रतिमा का खंड़ित कर दिया गया। घटना की जानकारी भारतीय दूतावास के उच्चाधिकारियों ने मेट्रोपॉलिटन पुलिस (Metropolitan police) से कर दी है। इसके साथ ही किसान आंदोलन मामले का पूर्ण से अन्तर्राष्ट्रीयकरण हो गया। इससे पहले ब्रिटेन और कनाडा में किसान आंदोलन की आंच पहुँच चुकी है। यूएन के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस भी किसान के हक में बयान जारी कर चुके है। खंड़ित प्रतिमा का अनावरण को साल 2008 में अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था।
इधर दिल्ली-जयपुर और दिल्ली-आगरा बॉर्डर पर खास बंदोबस्त के इंतज़ाम किये गये है। जिसके तहत बहु स्तरीय बैरिकेटिंग की गयी है। दिल्ली-हरियाणा-उत्तर प्रदेश पुलिस के आलाधिकारी खुद ज़मीनी हालातों के जायज लेते दिखे। पुलिस और प्रशासन के लिए कल का दिन बड़ी चुनौती साबित होने वाला है। कल दिल्ली लगी सभी सीमाओं पर किसान अपनी सक्रियता बढ़ा देगें। इस बीच आरपीएसएफ (RPSF) ने खास तैयारियों का खाका तैयार कर लिया है। संभवत: किसान रेल रूट को भी बाधित कर सकते है।
खब़र ये भी है कि आंदोलनरत यूनियनों के प्रतिनिधि भूख हड़ताल पर भी बैठेगें। जल्द ही महिलाओं का बड़ा समूह आंदोलन की तरफ रूख़ कर सकता है। जिसके लिए उनके खाने-पीने और रूकने के खास इंतजाम किये जा रहे है। मोदी सरकार के लिए मौजूदा आंदोलन बड़ी किरकिरी बना रहा है। जिसकी धमक सात समंदर पार अमेरिकी में देखी गयी। जिस तरह की तस्वीरें सामने आ रही है, उसे देखकर लगता है कि किसानों की आड़ में चरमपंथी, खालिस्तानी और उग्र वामपंथी ताकतें (Extremist, Khalistani and radical left forces) केन्द्र सरकार के खिलाफ मुखर हो रही है।