न्यूज डेस्क (शौर्य यादव): जनता दल यूनाइटेड की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान सीएम नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने बड़ा बयान देकर, एनडीए कुनबे में फूट की संभावनाओं पर मुहर लगा दी है। उन्होनें कहा कि- मुझे अब सीएम पद पर काब़िज नहीं रहना है। ये एनडीए गठबंधन (NDA alliance) के विवेक पर है, वो जिसे चाहे बिहार का मुख्यमंत्री बना दे। मुझे इससे विशेष फर्क नहीं पड़ता है। अब किसी भी पद का मोह नहीं रहा। उनके इस बयान से बिहार समेत राजधानी दिल्ली के सियासी गलियारे में माहौल काफी गर्मा गया है।
बैठक के दौरान उन्होनें आगे कहा कि- बिहार विधानसभा चुनावों के नतीज़ों के बाद मैनें ये मंशा गठबंधन के सामने जतायी थी, लेकिन बेहद दबाव के चलते मुझे सीएम पद का कार्यभार संभालना पड़ा। हम व्यक्तिगत स्वार्थ की भावना से काम नहीं करते है। इसी कारण आज तक किसी तरह का कोई समझौता नहीं किया।
हाल ही में अरुणाचल में जनता दल यूनाइटेड के छह विधायक पार्टी का दामन छोड़कर, भाजपा में शामिल हुए और एक जदयू में बना रहा। इसी बात का जिक्र करते हुए उन्होनें कहा कि- अरुणाचल में सात में से 6 विधायकों ने पार्टी का साथ छोड़ दिया। और एक विधायक पार्टी में बना रहा। ये जदयू की ताकत है। हमें उन लोगों के बीच जाना है। जो ईमान के पक्के होने के फलसफे के साथ चलते है। जिस तरह से नफरती माहौल खड़ा किया जा रहा है, हम इसके सख़्त खिलाफ है। सभी के हितों के बारे में सोचना होगा। सोशल मीडिया के द्वारा लोगों को बरगलाया जा रहा है। सोशल मीडिया अच्छी बातों को सोशल मीडिया के द्वारा फैलाया जाना चाहिए। सामाजिक मतभेदों का उन्मूलन (Eradication of social differences) होना चाहिए।
जदयू राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी खुद को अलग करते हुए उन्होनें कहा कि- मैं पार्टी का साथ नहीं छोड़ रहा हूँ। व्यस्तता की वज़ह से ये दायित्त्व छोड़ना पड़ रहा है। अब समय है कि पार्टी के संगठनात्मक ढ़ांचे का विस्तार हो। जिससे हम दूसरे राज्यों में भी अपनी मौजूदगी दर्ज करवा सके। मैंने ये फैसला काफी सोच समझकर लिया है। बैठक के बाद जदयू के प्रधान महासचिव केसी त्यागी (JDU Principal General Secretary KC Tyagi) मीडिया से मुखातिब हुए और अरूणाचल वाले प्रकरण पर कहा कि- भाजपा ने ये अच्छा नहीं किया। इस पर हमें काफी खेद है। गठबंधन धर्म बनाये रखने के लिए ये अशुभ संकेत है।
अब जेडीयू अध्यक्ष पद की कमान अब आरपीसी सिंह के पास है। इस वाकये से अब एनडीए की सहयोगी पार्टियों में गलत संदेश जाने के पूरे आसार है। शिवसेना और शिरोमणि अकाली दल (Shiromani Akali Dal) ने जब से एनडीए का दामन छोड़ा है। तब से ही गठबंधन सहयोगियों में विचार विमर्श का दौर जोरों पर है। अरूणाचल प्रदेश वाले प्रकरण के बाद तो एनडीए कुनबे में भाजपा की विश्वसनीयता को लेकर गंभीर सवाल उठे है। कहीं ना कहीं ये राजनीति लक्षण एनडीए में आती दरारों के तो नहीं?