नई दिल्ली (यथार्थ गोस्वामी): भगवान सूर्य जब विचरण करते हुए एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं तो, इस ज्योतिषीय परिघटना का संक्रांति कहा जाता है। इसी क्रम में जब सूर्यनारायण मकर राशि में प्रविष्ट होते है तो उस मकर संक्रांति (Makar Sankranti) के नाम से जाना जाता है। हर वर्ष पौष माह में सूर्यनारायण दक्षिणायण से उत्तरायण की ओर अग्रसर होते है। इस अवसर पर ये त्यौहार मनाया जाता है। ये पर्व हर वर्ष 14 जनवरी को आता है। इस अवसर पर ध्यान-स्नान और दान अत्याधिक महत्त्तव है। इस साल जब भगवान सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेगें तो चार ग्रहों का विलक्षण संयोग बनेगा। सूर्यनारायण के साथ बुध, गुरु, चंद्रमा और शनि भी इस मौके पर उनके साथ शामिल रहेगें। इससे जातकों में इस पर्व पर विशेष आध्यात्मिक लाभ (Special spiritual benefit) मिलेगा।
भारत कृषि प्रधान देश है। ऐसे में मकर संक्रांति के बाद सूर्य का उतरायण में आने से फसले पकती है। शीत ऋतु का प्रकोप शांत होता। लोगों की कार्य संबंधी उत्पादकता में बढ़ोत्तरी होती है। इस दिन के बाद खरमास की भी समाप्ति होती है। जिसके बाद समस्त मांगलिक (शादी ब्याह, गृह प्रवेश, जनेऊ, और नामकरण इत्यादि) कार्य किये जा सकते है। इस त्यौहार को देश के अलग-अलग हिस्सों में कई नामों से जाना जाता है। तमिलनाडु में ताइ पोंगल/उझवर तिरुनल, गुजरात में उत्तरायण/ उत्तरायणी, जम्मू कश्मीर में शिशुर सेंक्रात, पंजाब में लोहड़ी और आसाम में भोगाली बिहु के नाम से जाना जाता है। उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार में इस त्यौहार को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है। इस दिन चूरा दही खाने और तिल खाने का विशेष मान्यता है।
मकर संक्रांति का शुभ मुहूर्त-
मकर संक्रांति 2020- 15 जनवरी
संक्रांति काल- 07:19 बजे पुण्यकाल-07:19 से मध्याह्न 12:31 बजे तक
महापुण्य काल- 07:19 से 09: 03 बजे तक
संक्रांति स्नान- ब्रह्म मुहूर्त या उषाकाल में कभी भी
इन दिन को लेकर कई कथायें प्रचलित है। इस दिन भीष्म पितामह ने देहत्याग किया था। भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न हो गंगा अवतरण पृथ्वी पर हुआ था। सूर्यदेव ने वैरभाव त्याग कर अपने पुत्र शनिदेव के घर (मकर राशि) पहुँचे थे। भगवान विष्णु ने असुरों को अन्त कर उन्हें मंदराचल पर्वत में दबा दिया था। ऐसे में इस अवसर पर गंगा स्नान कर दान दे। दान में विशेषतौर पर गर्म कपड़े, कंबल, तिल, अन्न, उदड़ की दाल और हल्दी दी जा सकती है। इस अवसर पर किये गये दान का पुण्य 1000 गुना अक्षय और अमोघदायी लाभ देता है। इस अवसर पर सूर्योपासना (Suryopasana) से साधकों को विशेष लाभ मिलता है। प्रात:काल किसी भी पवित्र नदी में स्नान कर भगवान सूर्य को ताम्रपात्र से अर्घ्य दे। ताम्रपात्र में लाल चंदन, अक्षत और गुड़ अवश्य डाले।