नई दिल्ली (शौर्य यादव): महामारी को मात देने के लिए आज से टीकाकरण अभियान (Vaccination campaign) की शुरुआत हो गई। इसका आगाज मोबाइल पर आने वाली कॉलर ट्यून बदलने के साथ किया गया। इस अभियान का उद्घाटन पीएम मोदी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग कर किया। इस मुहिम के शुरुआती दौर में करीब तीन करोड़ स्वास्थ्य कर्मियों का टीकाकरण किया जाएगा। इस कार्यक्रम और टीकाकरण से जुड़ी तैयारियों की समीक्षा परिवार कल्याण एवं स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन शर्मा की अगुवाई में बीते शुक्रवार को कर ली गई थी। ये दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान है। जिसकी देखरेख लगातार स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव निगरानी में किया जा रहा है। साथ ही लगातार स्वास्थ्य सचिव द्वारा इस काम के लिए जरूरी दिशा निर्देश भी जारी किए जा रहे हैं। पूरे देश भर में जिला अस्पतालों और प्राथमिक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (Primary Community Health Centers) का चयन कर, उन्हें टीकाकरण केंद्र के रूप में विकसित किया गया है। राजधानी दिल्ली में राजीव गांधी कैंसर इंस्टिट्यूट को टीका स्टोरेज यूनिट के रूप में तैयार किया गया है। इसके साथ ही कलावती सरन हॉस्पिटल (Kalavati Saran Hospital) में भी टीकाकरण से जुड़ी सभी तैयारियां पूरी कर ली गई है। टीकाकरण के लिए जरूरी मोबाइल ऐप कोविन को ड्राई रन के दौरान अच्छी तरह परखा गया है।
टीकाकरण अभियान के उद्धाटन के दौरान पीएम मोदी ने कहीं ये अहम् बातें
- आज वो वैज्ञानिक, वैक्सीन रिसर्च से जुड़े अनेकों लोग विशेष प्रशंसा के हकदार हैं, जो बीते कई महीनों से कोरोना के खिलाफ वैक्सीन बनाने में जुटे थे। आमतौर पर एक वैक्सीन बनाने में बरसों लग जाते हैं। लेकिन इतने कम समय में एक नहीं, दो मेड इन इंडिया वैक्सीन तैयार हुई हैं।
- मैं ये बात फिर याद दिलाना चाहता हूं कि कोरोना वैक्सीन की 2 डोज लगनी बहुत जरूरी है। पहली और दूसरी डोज के बीच, लगभग एक महीने का अंतराल भी रखा जाएगा। दूसरी डोज़ लगने के 2 हफ्ते बाद ही आपके शरीर में कोरोना के विरुद्ध ज़रूरी शक्ति विकसित हो पाएगी।
- इतिहास में इस प्रकार का और इतने बड़े स्तर का टीकाकरण अभियान पहले कभी नहीं चलाया गया है। दुनिया के 100 से भी ज्यादा ऐसे देश हैं जिनकी जनसंख्या 3 करोड़ से कम है। और भारत वैक्सीनेशन के अपने पहले चरण में ही 3 करोड़ लोगों का टीकाकरण कर रहा है।
- दूसरे चरण में हमें इसको 30 करोड़ की संख्या तक ले जाना है। जो बुजुर्ग हैं, जो गंभीर बीमारी से ग्रस्त हैं, उन्हें इस चरण में टीका लगेगा। आप कल्पना कर सकते हैं, 30 करोड़ की आबादी से ऊपर के दुनिया के सिर्फ तीन ही देश हैं- खुद भारत, चीन और अमेरिका
- भारत के वैक्सीन वैज्ञानिक, हमारा मेडिकल सिस्टम, भारत की प्रक्रिया की पूरे विश्व में बहुत विश्वसनीयता है। हमने ये विश्वास अपने ट्रैक रिकॉर्ड से हासिल किया है।
- कोरोना से हमारी लड़ाई आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता की रही है। इस मुश्किल लड़ाई से लड़ने के लिए हम अपने आत्मविश्वास को कमजोर नहीं पड़ने देंगे, ये प्रण हर भारतीय में दिखा।
- कोरोना काल में हमारे कई साथी ऐसे रहे जो बीमार होकर अस्पताल गए तो लौटे ही नहीं। संकट के उसी समय में, निराशा के उसी वातावरण में, कोई आशा का भी संचार कर रहा था, हमें बचाने के लिए अपने प्राणों को संकट में डाल रहा था। ये लोग थे हमारे डॉक्टर, नर्स, पैरामेडिकल स्टाफ, एंबुलेंस ड्राइवर, आशा वर्कर, सफाई कर्मचारी, पुलिस और दूसरे फ्रंटलाइन वर्कर्स।
- मास्क, 2 गज की दूरी और साफ सफाई ये टीके के दौरान भी और बाद में भी जरूरी रहेंगे। टीका लग गया तो इसका अर्थ ये नहीं कि आप बचाव के दूसरे तरीके छोड़ दें। अब हमें नया प्रण लेना है – दवाई भी, कड़ाई भी।
- भारत की वैक्सीन, हमारी उत्पादन क्षमता पूरी मानवता के हित में काम आए, ये हमारी प्रतिबद्धता है। ये टीकाकरण अभियान अभी लंबा चलेगा, हमें जन जन के जीवन को बचाने में योगदान देने का मौका मिला है।
- हर हिंदुस्तानी इस बात का गर्व करेगा की दुनिया भर के करीब 60% बच्चों को जो जीवन रक्षक टीके लगते हैं, वो भारत में ही बनते हैं। भारत की सख्त वैज्ञानिक प्रक्रियाओं से होकर ही गुजरते हैं।
- उन्होंने एक-एक जीवन को बचाने के लिए अपना जीवन आहुत कर दिया। इसलिए आज कोरोना का पहला टीका स्वास्थ सेवा से जुड़ लोगों को लगाकर एक तरह से समाज अपना ऋण चुका रहा है। ये टीका उन सभी साथियों के प्रति कृतज्ञ राष्ट्र की आदरांजली भी है।
- हमारे डॉक्टर्स, नर्स, पैरामेडिकल स्टाफ, एम्बुलेंस ड्राइवर, आशा वर्कर, सफाई कर्मचारी, पुलिस कर्मी और फ्रंटलाइन वर्कर्स, इन्होंने मानवता के प्रति अपने दायित्व को प्राथमिकता दी। इनमें से अधिकांश तब अपने बच्चों, अपने परिवार से दूर रहे।
- आज जब हमने वैक्सीन बना ली है, तब भी भारत की तरफ दुनिया आशा और उम्मीद की नजरों से देख रही है। जैसे जैसे हमारा टीकाकरण अभियान आगे बढ़ेगा, दुनिया के अनेक देशों को हमारे अनुभव का लाभ मिलेगा।
- DRDO, इसरो और फौज से लेकर किसान और श्रमिक तक सभी एक संकल्प के साथ कैसे काम कर सकते हैं ये भारत ने दिखाया है। 2 गज की दूरी और मास्क है जरूरी, पर फोकस करने वालों में भी भारत अग्रणी देशों में रहा।
- भारत ने इस महामारी से जिस प्रकार से मुकाबला किया उसका लोहा आज पूरी दुनिया मान रही है। केंद्र और राज्य सरकारें, स्थानीय निकाय, हर सरकारी संस्थान, सामाजिक संस्थाएं, कैसे एकजुट होकर बेहतर काम कर सकते हैं, ये उदाहरण भी भारत ने दुनिया के सामने रखा।
- एक देश में जब भारतीयों को टेस्ट करने के लिए मशीनें कम पड़ रहीं थीं तो भारत ने पूरी लैब भेज दी थी ताकि वहां से भारत आ रहे लोगों को टेस्टिंग की दिक्कत ना हो।
- ऐसे समय में जब कुछ देशों ने अपने नागरिकों को चीन में बढ़ते कोरोना के बीच छोड़ दिया था, तब भारत, चीन में फंसे हर भारतीय को वापस लेकर आया। और सिर्फ भारत के ही नहीं, हम कई दूसरे देशों के नागरिकों को भी वहां से वापस निकालकर लाए।
- जनता कर्फ्यू, कोरोना के विरुद्ध हमारे समाज के संयम और अनुशासन का भी परीक्षण था, जिसमें हर देशवासी सफल हुआ। जनता कर्फ्यू ने देश को मनोवैज्ञानिक रूप से लॉकडाउन के लिए तैयार किया।
- 17 जनवरी, 2020 वो तारीख थी, जब भारत ने अपनी पहली एडवायजरी जारी कर दी थी। भारत दुनिया के उन पहले देशों में से था जिसने अपने एयरपोर्ट्स पर यात्रियों की स्क्रीनिंग शुरू कर दी थी।
- भारत ने 24 घंटे सतर्क रहते हुए, हर घटनाक्रम पर नजर रखते हुए, सही समय पर सही फैसले लिए। 30 जनवरी को भारत में कोरोना का पहला मामला मिला, लेकिन इसके दो सप्ताह से भी पहले भारत एक हाई लेवल कमेटी बना चुका था।
- हम दूसरों के काम आएं, ये निश्वार्थ भाव हमारे भीतर रहना चाहिए। राष्ट्र सिर्फ मिट्टी, पानी, कंकड़, पत्थर से नहीं बनता। बल्कि राष्ट्र का मतलब होता है हमारे लोग।
- संकट कितना भी बड़ा क्यों न हो, देश वासियों ने कभी आत्मविश्वास खोया नहीं। जब भारत में कोरेाना पहुंचा तब देश में कोरोना टेस्टिंग की एक ही लैब थी, हमने अपने सामर्थ्य पर विश्वास रखा और आज 2,300 से ज्यादा नेटवर्क हमारे पास है।
- भारत की वैक्सीन ऐसी तकनीक पर बनाई गई है जो भारत में tried और tested है। ये वैक्सीन स्टोरेज से लेकर transportation तक भारतीय स्थितियों और परिस्थितियों के अनुकूल हैं। यही वैक्सीन भारत को कोरोना के खिलाफ लड़ाई में निर्णायक जीत दिलाएगी।
- भारतीय वैक्सीन विदेशी वैक्सीन की तुलना में बहुत सस्ती हैं और इनका उपयोग भी उतना ही आसान है। विदेश में तो कुछ वैक्सीन ऐसी हैं जिसकी एक डोज 5,000 हजार रुपये तक में हैं और जिसे -70 डिग्री तापमान में फ्रीज में रखना होता है।
- कोरोना से हमारी लड़ाई आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता की रही है। इस मुश्किल लड़ाई से लड़ने के लिए हम अपने आत्मविश्वास को कमजोर नहीं पड़ने देंगे, ये प्रण हर भारतीय में दिखा।
- हमारे वैज्ञानिक और विशेषज्ञ जब दोनों मेड इन इंडिया वैक्सीन की सुरक्षा और प्रभाव को लेकर आश्वस्त हुए, तभी उन्होंने इसके इमरजेंसी उपयोग की अनुमति दी। इसलिए देशवासियों को किसी भी तरह के प्रोपेगेंडा, अफवाहें और दुष्प्रचार से बचकर रहना है।
- मैं ये बात फिर याद दिलाना चाहता हूं कि कोरोना वैक्सीन की दो डोज लगनी बहुत जरूरी है। पहली और दूसरी डोज के बीच, लगभग एक महीने का अंतराल भी रखा जाएगा। दूसरी डोज़ लगने के 2 हफ्ते बाद ही आपके शरीर में कोरोना के विरुद्ध ज़रूरी शक्ति विकसित हो पाएगी।