न्यूज डेस्क (शौर्य यादव): विवाहेत्तर संबंध (Extra Marital Affair) और लिव इन रिलेशनशिप भारतीय समाज का विवादस्पद मुद्दा रहे है। अक्सर लोग इन मुद्दों पर बात करने से बचते है। साथ ही इन्हें हिकारत भरी नज़रों से देखा जाता है। इसी के मद्देनज़र इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप कोल लेकर एक अहम फैसला सुनाया। जिसके मुताबिक अगर शादीशुदा महिला अपने पति को छोड़कर गैरमर्द के साथ पति-पत्नी की तरह रह रही हो तो, उसे लिव इन रिलेशनशिप नहीं माना जायेगा। साथ ही उस पुरूष को भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के तहत अपराधी भी घोषित किया जा सकता है।
अदालत ने माना कि, विवाहेत्तर संबंध किसी भी रूप में लिव इन रिलेशनशिप का हिस्सा नहीं हो सकते। ऐसे मामलों में पुरूष पार्टनर भारतीय दंड संहिता की धारा 494/495 के तहत सीधे दोषी होगा। ऐसे कपल्स को कानून किसी भी सूरत में न्यायिक संरक्षण नहीं दे सकता। इन्हें संरक्षण देने का सीधा मतलब होगा कि, अपराधी को संरक्षण देना। न्यायालय संरक्षण देनी की अपनी ताकत का इस्तेमाल कानून के इतर जाकर नहीं कर सकता। कोर्ट ने साफ किया कि, अगर कोई शादीशुदा औरत धर्म बदलकर लिव इन रिलेशनशिप में रहती है तो ये क्राइम की श्रेणी में आता है। साथ ही पुरूष पार्टनर अवैध संबंध बनाने के तहत अपराधी माना जायेगा। ऐसे तालुक्कात कानूनी तौर पर नाजायज़ माने जायेगें।
जस्टिस एसपी केशरवानी और जस्टिस डॉ. वाईके श्रीवास्तव की न्यायिक खंडपीठ (Judicial bench) ने फैसला सुनाते हुए कहा कि, न्यायिक आधारों पर जो लोग शादी नहीं कर सकते। उनका एक या एक से ज़्यादा पार्टनर्रस के साथ शारीरिक संबंध बनाना और लिव इन रिलेशनशिप में रहना सीधे तौर पर अपराध की श्रेणी में माना जायेगा। साथ ही न्यायालय किसी भी कीमत पर इन लोगों को न्यायिक संरक्षण नहीं दे सकता। न्यायिक खंडपीठ ने ये फैसला उत्तर प्रदेश हाथरस के सासनी थानाक्षेत्र के निवासी अरविंद और आशा देवी की याचिका को खाऱिज करते हुए सुनाया। याचिकाकर्ताओं ने न्यायालय से पेरोगेटिव लीगल राइट और ज्युडिशियल प्रोटेक्शन (Perogative legal right and judicial protection) की मांग की थी।
याचिका से जुड़ा मामला कुछ ऐसा है कि, हाथरस में आशा देवी की शादी महेश चंद्र से हुई। दोनों की बीच डिवोर्स नहीं हुआ। इसी आशा देवी अपनी पति को छोड़कर गैरमर्द अरविंद के साथ पति-पत्नी की तरह रहने लगी। आशा ने गुहार लगाते हुए कहा कि वो अपनी मर्जी से अरविंद के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रही हैं। ऐसे में कोर्ट उनके परिवारवालों (सुसराल पक्ष व अन्य संबंधी) से सुरक्षा उन्हें (दोनों याचिकाकर्ताओं से) मुहैया करवाये। इस मामले को कोर्ट ने अपराध मानते हुए याचिकाकर्ताओं (Petitioner) की याचिका को खाऱिज कर दिया।