जम्मू कश्मीर से धारा 370 आने के बाद से ही उमर अब्दुल्ला को हिरासत में नजरबंद किया गया है। उमर अब्दुल्ला पर पब्लिक सिक्योरिटी एक्ट की धाराएं लगाई गई है। डोजियर्स के मुताबिक उन्हें घाटी में हालात बिगाड़ने और लोगों को भड़काने वाला बताया गया है। साथ ही यह भी लिखा गया है कि उनकी अपील पर अलगाववादी ताकतें घाटी में हिंसात्मक पर माहौल तैयार कर सकती हैं। जिससे जम्मू कश्मीर की शांति व्यवस्था को भारी खतरा हो सकता है। उनकी गिरफ्तारी को जायज ठहराने के लिए उन पर इंडियन पिनल कोड एक्ट 1973 की धारा 107 लगाई गई है। उनकी गिरफ्तारी को चुनौती देने के लिए सारा पायलट वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के माध्यम से एक याचिका दायर की थी।
याचिका की सुनवाई से न्यायमूर्ति एम.एम. शांतानागौडर ने खुद को अलग कर लिया है। गौरतलब है कि उमर अब्दुल्ला की रिहाई की मांग करने वाली याचिका की सुनवाई तीन जजों की न्यायिक बेंच कर रही है। जिसमें जस्टिस एन.वी. रामन्ना और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना भी शामिल है। याचिका की सुनवाई के दौरान ही न्यायमूर्ति एम.एम. शांतानागौडर ने बताया कि वह खुद को इस मामले की सुनवाई से अलग हो रहे है।
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हालांकि इसके पीछे उन्होनें किसी खास वजह का जिक्र नहीं किया। गौरतलब है कि बीते सोमवार को ही इस मामले से जुड़ी याचिका दायर की गयी थी। याचिका के मुताबिक उमर अब्दुल्ला की हिरासत गैरकानूनी ढंग से की गई है। साथ ही गिरफ्तारी को लेकर जिन कारणों का हवाला दिया गया है वह बेबुनियाद और खोखले हैं। भारतीय दंड संहिता का इस्तेमाल कहीं ना कहीं धारा 370 से जुड़े विरोध को दबाने के लिए किया जा रहा है।
गौरतलब है कोई भी न्यायाधीश लोकतंत्र द्वारा प्रदत न्यायिक शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए खुद को किसी भी मामले की सुनवाई से अलग कर सकता है। ऐसे में कुछ लोग इसके सियासी मायने भी निकाल सकते हैं। जहां तक सारा पायलट की याचिका की बात है उसकी सुनवाई अभी भी दो जजों द्वारा की जाएगी। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि उमर अब्दुल्ला का राजनीतिक अज्ञातवास कब खत्म होगा।