न्यूज डेस्क (यथार्थ गोस्वामी): ममतामयी माँ दुर्गा बच्चों पर असीम कृपा करते हुए उन्हें अन्न, शाक और फलों से परिपूर्णता प्रदान करती है तो उनका शाकुम्भरी (Shakambhari) रूप सामने आता है। माँ दुर्गा के अन्य उग्र रूपों की तुलना में ये रूप शांत और सौम्य है। प्रत्येक वर्ष पौष माह की पूर्णिमा के दिन शाकुम्भरी जयन्ती मनाई जाती है। मान्यताओं के अनुसार धरती पर शाक, फल और अन्न का अभाव ना होने पाये। इसलिए माँ शाकुम्भरी ने अवतार लिया। इस दौरान उपासक पूर्ण विधि-विधान पूर्वक आराधना करके उन्हें प्रसन्न करने का यत्न करते है।
माँ की सहज़ कृपा से साधक कभी भी खाद्य संकट और अकाल से नहीं जूझता। छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल इलाकों (Tribal dominated areas) में इस पर्व को छेरता के नाम से भी जाना जाता है। फल और सब़्जियों की अधिष्ठात्री देवी माँ शाकुम्भरी अवतरण स्थल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में माना गया है। जहां माँ का शक्तिपीठ है। माँ को बनशंकरी और कनकदुर्गा नाम से भी जाना जाता है। देवी शाकुम्भरी राजस्थान के चौहानों की कुलदेवी मानी जाती है।
शाकुम्भरी जयन्ती का मुहूर्त
28 जनवरी, 2021, दिन बृहस्पतिवार
शाकुम्भरी पूर्णिमा का प्रारम्भ- 28 जनवरी, बृहस्पतिवार रात्रि 01 बजकर 17 मिनट से शाकुम्भरी पूर्णिमा की समाप्ति- 29 जनवरी, शुक्रवार रात्रि 12 बजकर 45 मिनट तक
माँ शाकुम्भरी की पूजा विधि
- उपासक ब्रह्ममुहूर्त में शैय्या त्याग स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत हो, माँ शाकम्भरी की मूर्ति का मानस स्मरण करते हुए पूजन संकल्प ले।
- साधक प्रात:काल में बनशंकरी मंत्रों का जाप करें।
- माँ शाकुम्भरी की प्रतिमा या छवि को ताज़े मौसमी फलों और सब़्जियों से सजाये।
- माँ शाकुम्भरी देवी के मंदिर जाये, अगर आसपास मंदिर ना हो तो दुर्गा मंदिर में जाकर माँ दुर्गा के शाकुम्भरी रूप की मानस आराधना करें
- माँ को शाक भाजी से बना प्रसाद भोग लगाये। प्रसाद की सात्विकता बनाये रखने के लिए प्याज़ और लहसुन के इस्तेमाल से बचे।
- सपरिवार माँ की आरती उतारे
- प्रसाद का वितरण प्रियजनों सहित जरूरतमंदों में करें।
- व्रतियों को माँ शाकुम्भरी की कथा और महात्मय अवश्य पढ़ना चाहिए।
माँ शाकुम्भरी की कथा
मान्यताओं के अनुसार एक बार दुर्गम नामक दैत्य ने अपनी आसुरी शक्तियों (Demonic powers) के बल पर पृथ्वी को अन्न जल और शाक रहित कर दिया। इस बीच 100 सालों तक वर्षा नहीं हुई। जिसके कारण भंयकर सूखा और अकाल पड़ा। लोग भूख से मरने लगे। जीवन की सभी संभावना है लगातार समाप्त होती जा रही थी। राक्षस ने ब्रह्मा जी के चारों वेदों का हरण कर लिया। स्थिति अत्यंत दुष्कर बनती चली गई। पृथ्वी श्रीविहीन हो गयी। लोग त्राहिमाम करते हुए मां दुर्गा का स्मरण करने लगे।
जिसके बाद मां दुर्गा का शाकुंभरी रूप अवतरित हुआ। जिनके असंख्य नेत्र थे। मां ने रूदन शुरू किया तो उनके आंसू निकलने से धरा पर विशाल जल प्रवाह हुआ। जिसमें उस दैत्य का भी अंत हो गया। मां की आंखों से निकले आंसूओं के जल से धरा अत्यंत उर्वरा हो गई। जिसमें पेड़, पौधे और अन्न पुष्पित पल्लवित होने लगा। जिससे मनुष्यों को क्षुधा शांत हुई। लोगों ने प्रसन्न होकर माँ की स्तुति और आराधना की उन्हें शाक-पात और फलों की भोग लगाया। जिसके बाद ये परम्परा अभी तक चली आ रही है।
माँ शाकुम्भरी का मंत्र
शाकंभरी नीलवर्णा नीलोत्पल विलोचना। मुष्टिंशिलीमुखापूर्णकमलंकमलालया।।