न्यूज़ डेस्क (शौर्य यादव): इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने समलैंगिकता (Homosexuality) के आधार पर नौकरी से निकाले जाने का फैसला खारिज करते हुए अभूतपूर्व निर्णय सुनाया। कोर्ट ने माना कि लैंगिक उन्मुखीकरण (Sexual orientation) के आधार पर किसी को भी नौकरी से बाहर करना और नौकरी के दौरान भेदभाव करना गलत है। ये सर्वोच्च न्यायालय के उन निर्देशों के उल्ट है जो नवतेज सिंह जौहार केस में जारी किये गये थे।
कोर्ट ने माना कि समलैंगिकता किसी भी व्यक्ति का निजी मसला है। ऐसे में उसकी निजता का हनन नहीं किया जा सकता। उच्च न्यायालय ने ये बात बुलंदशहर में तैनात होमगार्ड को सेवा से बाहर करने की याचिका की सुनवाई के दौरान कहा। साथ ही नौकरी से निकाले के कमाडेंट जनरल होमगार्ड के फरमान पर फटकार लगाते हुए उसे निरस्त करने की बात कही। याचिकाकर्ता के मामले की सुनवाई जस्टिस सुनीता अग्रवाल कर रही थी। जिसे जिला कमांडेंट होमगार्ड में साल 2019 में जून के दौरान नौकरी से बाहर कर दिया।
डिस्ट्रिक्ट कमांडेंट होमगार्ड (District Commandant Home Guard) ने ये विभागीय कार्रवाई एक वीडियो वायरल होने के बाद की। जिसमें याचिकाकर्ता होमगार्ड अपने एक साथी के साथ दिखाई दिया था। कमांडेंट की ओर से कोर्ट में दाखिल जवाब़ में कहा गया कि याचिकाकर्ता होमगार्ड गलत तरीके से सेक्सुअल एक्टिविटी में इंवॉल्व था। जिसके कारण उसे नौकरी से निकाला गया।मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने स्पष्ट किया कि, किसी भी व्यक्ति का किसी के साथ किसी भी तौर (लेस्बियन या गे) पर रहनादोनों का निजी मामला है। जो भी लोग इसे अपराध मांनते है। वो उस व्यक्ति की प्राइवेसी का हनन कर रहा है।
कोर्ट ने कहा कि जिस तरह एक आम व्यक्ति का आकर्षण किसी के प्रति भी हो सकता है। अगर वो अपने लगाव का सार्वजनिक प्रदर्शन करें तो ये अशोभनीयता के दायरे में नहीं आता। साथ ही इससे कानून व्यवस्था को कोई खतरा नहीं होता। ऐसे में नौकरी से निकाला जाना गलत फैसला है। इसे वापस ले लिया जाये।