गौरांग चक्रवर्ती का दूसरा नाम मिथुन चक्रवर्ती (Mithun Chakraborty)। 1982 की डिस्को डांसर का जिम्मी। इस जिम्मी की शोहरत ऐसी थी कि सोवियत यूनियन में राजकपूर के बाद सबसे ज़्यादा इसी का चेहरा पहचाना गया। वो भारत का पहला डिस्को डांसर था। पुणे की FTII का प्रोडक्ट होने से पहले मिथुन नक्सली थे। अपने भाई की एक्सीडेंट में मौत के बाद उन्हें परिवार के पास लौटना पड़ा वरना वो नक्सल आंदोलन की राह पर निकल ही चुके थे। 1976 में मिथुन को मृगया में एक्टिंग का मौका मिला और पहली ही फिल्म के बाद उनकी झोली में बेस्ट एक्टर का नेशनल अवॉर्ड था। 80 का पूरा दशक मिथुनमय था। शोहरत उनकी सोवियत यूनियन (Soviet Union) तक पहुंची और 1986 में वो देश के सबसे ज्यादा टैक्स देनेवाले शख्स बन गए।
1989 में तो उनकी 19 फिल्म बाज़ार में थीं और एक-दूसरे के कलेक्शन के लिए ही चुनौती बन गईं। मिथुन हिंदी फिल्मों के अलावा दूसरी भाषाओं में भी फिल्में कर रहे थे। इतना सारा काम करते हुए 90 के दशक में उनको थकान होने लगी। नतीजतन वो ऊटी चले गए और वहां एक शानदार होटल बनवाया। मुंबई के शोर से बचने के लिए उन्होंने ऐलान कर दिया कि जो फिल्में ऊटी या आसपास शूट होंगी वो उनमें ही काम करेंगे और डिस्काउंट भी देंगे। इस ऐलान ने कम बजट वालों को एक मौका दे दिया और उसके बाद हमारी पीढ़ी ने उनकी वो फिल्में देखीं जो बजट में बेहद कमज़ोर थीं लेकिन मिथुन की वजह से शानदार बिज़नेस कर रही थीं। 1995 की एक फिल्म जल्लाद में उन्हें फिल्मफेयर की ओर से बेस्ट विलेन का अवॉर्ड भी मिल गया।
नायक से लेकर खलनायक तक मिथुन ने कोई भी रोल नहीं छोड़ा था। गरीब से लेकर अमीर, सताये हुए पात्र से लेकर सताने वाले तक, बदला लेनेवाले से लेकर हंसोड़ तक के रोल में वो हिट रहे। उन्होंने अंधाधुंध फिल्में साइन कर डाली। हालत ये थी कि खुद तो वो 1995 से 1999 तक देश के सबसे बड़े टैक्सपेयर थे लेकिन उनकी एक फिल्म का बिज़नेस दूसरी फिल्म का बिज़नेस काट रहा था। प्रोड्यूसर्स को इस समस्या का समाधान नज़र ही नहीं आ रहा था। मिथुन ही मिथुन के लिए चुनौती बन सकते थे। बाकी सब दूसरे नंबर थे। छोटे बजट वालों के लिए मिथुन तारनहार थे। दूसरी तरफ कल तक नक्सली रहे मिथुन ने होटल्स की पूरी चेन ही खोल डाली। ऊटी से शुरू हुआ सफर मधुमलाई, दार्जिलिंग, कोलकाता तक चला गया था। इसके अलावा मिथुन्स ड्रीम फैक्ट्री (Mithun’s Dream Factory) नाम का उनका प्रोडक्शन हाउस फिल्में बना रहा था जिसके अपने दर्शक थे।
90 के आखिर तक आते-आते उन्होंने बंगाली फिल्मों में ही काम करना शुरू कर दिया मगर जब उनका कम बैक हिंदी में हुआ तो उन्होंने गुरू जैसी फिल्म भी दी। इसके अलावा वो हर साल इक्का-दुक्का हिंदी फिल्में करते ही रहे हैं। वीर, गोलमाल-3, हाउसफुल-2, ओह माई गॉड, खिलाड़ी 786 के अलावा उन्होंने बेटे मिमोह के साथ भी फिल्म की। मिथुन को खास उनकी खास तरह की फिल्में ही नहीं बनाती बल्कि इसके इतर किए गए काम भी हैं। जिस सिंटा को आज इंडस्ट्री जानती है वो दिलीप कुमार और सुनील दत्त के साथ मिलकर मिथुन ने ही बनाई थी। टीवी पर भी उनकी उपस्थिति पिछले कई सालों से बनी हुई है। बंगाली दर्शकों के ज़हन पर तो मिथुन 35 सालों से हावी हैं। बिग बॉस का बांग्ला वर्ज़न वही होस्ट करते हैं।
तृणमूल कांग्रेस ने मिथुन को 2014 में राज्यसभा भेजा लेकिन 2016 में उन्होंने इस्तीफा दे दिया। वैसे लोगों को कम ही जानकारी है कि प्रणव मुखर्जी को राष्ट्रपति पद के लिए ममता का समर्थन उन्होंने ही जुटाया था। सारिका के साथ मिथुन की मुहब्बत हमेशा चर्चा में रही। 1979 में मिथुन ने शादी सारिका से नहीं हेलेना ल्यूक से की। इसके बाद योगिता बाली उनकी पत्नी बनीं। 80 के दशक तक आते -आते श्रीदेवी उनसे प्यार कर बैठीं। अफवाहें उड़ने लगी कि दोनों ने गुपचुप शादी कर ली है। बाद में मिथुन ने इन अफवाहों की पुष्टि कर दी। वो शादी भी अपने अंत तक पहुंच ही गई और मिथुन फिर से योगिता बाली के साथ थे।
आज मिथुन दा 71 साल के हैं। ज़िंदगी के तमाम उतार चढ़ावों के साथ उन्होंने राजनीति का भी एक चक्र पूरा जी लिया। धुर वामपंथी से होते हुए वो 2014 में टीएमसी के सहारे राज्यसभा चले गए थे। संसद में उन्होंने तीन बार से ज़्यादा चेहरा नहीं दिखाया। फिर 2016 में शारदा चिटफंड स्कीम में उनका नाम आया। ईडी ने तलब कर लिया। अचानक मिथुन को अहसास हुआ कि उनकी सेहत ख़राब है तो एक ही साथ सांसदी, टीएमसी, सियासत सबको छोड़ दिया। अब वो दक्षिणपंथी भाजपा के “कोबरा” बनकर लौटे हैं। चर्चा ये है कि पहले एक अन्य दिग्गज को बल्लेबाज़ी करनी थी मगर उसने सेहत का हवाला दे दिया तो उनकी जगह मिथुन दा उतरे हैं। ये तो पता नहीं कि मिथुन सिर्फ प्रचार करेंगे या चुनाव भी लड़ेंगे लेकिन राजनीति में उनकी गहरी रुचि होने के बावजूद निष्क्रियता बहुत चर्चित रही है। देखें कि ये वाला डिस्को कब तक चलता है।