Transgender महिला के हक़ में आया केरल हाईकोर्ट का फैसला, बनना चाहती है एनसीसी कैडेट

न्यूज डेस्क (प्रियंवदा गोप): केरल उच्च न्यायालय ने बीते सोमवार एक ट्रांसजेंडर (Transgender) महिला के हक़ में अभूतपूर्व फैसला सुनाया। महिला भारतीय सशस्त्र बलों की युवा शाखा राष्ट्रीय कैडेट कोर में शामिल होना चाह रही थी लेकिन सेक्सुअल झुकाव (Sexual orientation) के कारण महिला को दाखिला लेने में नीतिगत दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। इसी वज़ह से उसने अदालत का रूख़ किया। फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि एनसीसी अधिनियम में तीसरे लिंग को मान्यता नहीं दी गयी है लेकिन बिना किसी ठोस बुनियाद पर ट्रांसजेंडरों को एनसीसी ने दाखिला देने से रोका नहीं जा सकता।

केरल हाईकोर्ट हीना हनीफा द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें एनसीसी अधिनियम की एक विशेष धारा को न्यायिक चुनौती दी गयी थी। जिसके मुताबिक सिर्फ पुरुषों और महिलाओं को ही कैडेट कोर में दाखिल देने की बात कही गयी है। न्यायमूर्ति अनु शिवरामन ने ये फैसला ट्रांसजेंडर महिला हीना हनीफा की याचिका पर सुनाया। महिला ने राष्ट्रीय कैडेट कोर अधिनियम 1948 की धारा 6 को चुनौती को कोर्ट में चैलेंज किया था। अपने लैगिंक झुकाव को देखते हुए हनीफा ने एनसीसी में दाखिले के लिए महिला कैटेगिरी के तहत आवेदन दिया था। गौरतलब है कि एनसीसी में ट्रांसजेडरों के लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं है।

फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति अनु शिवरामन की सिंगल बेंच ने कहा कि, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 2019 इस लैगिंक पहचान के लोगों को अधिकारिक मान्यता देता है। 2019 के इस अधिनियम के विशिष्ट प्रावधानों के मद्देनजर ट्रांसजेंडर को न सिर्फ लैगिंक पहचान (Gender identity) हासिल करने का हक़ है बल्कि वो खुद का भी लिंग निर्धारित करने का अधिकार रखता है। वो ये खुद तय कर सकता है कि वो महिला है या पुरूष।

न्यायमूर्ति अनु शिवरामन ने आगे कहा कि एनसीसी में दाखिले से इंकार करना अपरिहार्य है। याचिकाकर्ता अपने आवेदन के आधार पर चयन प्रक्रिया में भाग लेने का हकदार होगा। अगर वो कामयाब रहती है तो उसे एनसीसी यूनिट में एनरोल किया जाएगा। फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने एनसीसी को अपने नामांकन मानदंडों में संशोधन करने का निर्देश दिया और साथ ही ट्रांसजेंडरों को कैडेट कोर में दाखिला देने के लिए पात्रता मापदंड़ो में जरूरी प्रावधान शामिल करने की मंजूरी भी। कोर्ट ने कहा कि एनसीसी एक्ट में एनरोलमेंट से जुड़े बदलाव 6 महीने के भीतर हो जाने चाहिए।

जन्म के समय याचिकाकर्ता की लैंगिक पहचान पुरूष के तौर पर निर्धारित की गयी थी। उसने दो बार सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी करवाकर केरल सरकार की ट्रांसजेंडर पॉलिसी, 2015 के तहत ट्रांसजेंडर पहचान पत्र हासिल किया था। कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा कि एनसीसी अधिनियम की धारा 6 पूरी तरह असंवैधानिक है। याचिकाकर्ता ने अदालत मामले में दखल देने की गुज़ारिश की थी। जिसके बाद उसे इसी साल अंतरिम राहत के तौर पर एनसीसी में एनरोल करने की मंजूरी मिल गयी है।

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