संस्कृत के एक विद्वान आचार्य पंकज ने पहली बार मेरा ध्यान इस अल्ला (Allah) शब्द पर दिलाया था कि ये संस्कृत का शब्द है। उन्होंने इसके लिए मुझे संस्कृत डिक्शनरी शब्दकल्पद्रुम देखने की सलाह दिया। मैंने देखा तो बिल्कुल सही पाया। “असुरसंहारिणीं हुँ अल्लो रसुरमहमदरकं वरस्य अल्लो अल्लां इल्लल्लेति इल्लल्लः”।
यहां अल्ला स्त्रीवाची शब्द है। संभवत: दैवीय शक्ति के लिए प्रयुक्त किया गया है। लेकिन ये अल्ला शब्द हिब्रू में भी है। अलोहम, इलाह और अल्लाह। इलाह और अल्लाह शब्द अरबी में पहुंचते है लेकिन अलोहम यहूदियों के पास रह जाता है। आश्चर्य की बात ये है कि हिब्रू में अल्लाह या इलाह पुरुषवाची शब्द (Masculine words) है। यही अरब में भी है। अल्लाह पुरुषवाची शब्द है न कि स्त्रीवाची।
लेकिन यहां एक और आश्चर्य की बात ये है कि इस्लाम से पहले अल लात एक देवी के रूप में ही पूजी जाती है। मतलब ये कि अल् जैसे संस्कृत में स्त्रीवाची है वैसे ही अरबी में भी इस्लाम से पहले स्त्रीवाची शब्द था। तो फिर अल्लाह पुरुषवाची शब्द कैसे बना?
अब संस्कृत और हिन्दी साहित्य के एक और विद्वान डॉ प्रमोद दूबे का कहना है कि ये अल और अला जिस अलाकम सूत्र से पैदा होता है उसे पाणिनी ने दिया है। पाणिनी आज से 2400 साल पहले हुए। तो पाणिनी के बाद अगले एक हजार साल में ये शब्द हिब्रू देश (Hebrew country) होते हुए अरब पहुंचा? अगर ऐसा है तो क्या आज जिन्हें यहूदी कहा जाता है अतीत में ये खैबर के इस पार ही रहा करते थे। अगर यहूदियों के एक वर्ग में ये मान्यता है कि ईसामसीह को कश्मीर में दफनाया गया क्योंकि उनके पूर्वज यहीं से थे, तो गलत क्या कहते हैं?
खैर, ये कुछ ऐसे तार है जिन्हें जोड़ने की जरूरत है। शब्द संकेत होते हैं और यात्रा करनेवाले को सही जगह पहुंचा देते हैं। तो क्या संस्कृत का अल्ला शब्द ऐसा कोई तार जोड़ रहा है?
साभार- संजय तिवारी शांडिल्य