Maha-Kumbh Mela Vs Tablighi Jamaat: तबलीगी ज़मात से कम नहीं है, उत्तराखंड का ये कुंभ

न्यूज डेस्क: आज कुंभ मेला (Kumbh Mela) का पहला शाही स्नान था, टीवी में लोगों ने जमकर इसकी भव्यता देखी। नेशनल मीडिया खासतौर से इलैक्ट्रॉनिक मीडिया ने सेलेक्टिव नैरेटिव (Selective narrative) अख़्तियार करते हुए नागाओं की शोभायात्रा, पलकियां, अखाड़ों की बंदोबस्ती और स्नान व्यवस्था पर जमकर फोकस किया। इस दौरान नेशनल मीडिया को कोरोना प्रोटोकॉल्स की धज्ज़ियां उड़ती हुई तस्वीरों पर खब़रें बनाने के मामले में सांप सूंघता दिखा। स्नान के दौरान लोगों ने जमकर कोरोना नियमों का उल्लंघन किया। मास्क और सोशल डिस्टेसिंग का दूर-दूर तक कहीं कोई नामोनिशान नहीं दिखा।

घाट, बाज़ार, पार्किंग और हरिद्वार के कई प्रमुख इलाकों में प्रभावी कोरोना नियम नदारद दिखे। उत्तराखंड सरकार चाहे जितने दावे कर ले, पर सभी खोखले होते हुए दिखे। ऐसे में बड़ा सवाल उठता है कि, जिस मीडिया ने तबलीगी ज़मात के कार्यक्रम को जमकर छाती पीट पीटकर कोसा, क्या वो किसी समुदाय विशेष के खिलाफ प्रोपेगेंडा नीति थी? आखिर किस वज़ह से तबलीगी ज़मात के खिलाफ नैरेटिव तैयार किया गया? कुंभ के मामले में आखिर मीडिया की चुप्पी क्यों है? क्या मीडिया भी किसी अतिवादी एजेंडा (Extremist agenda) के तहत काम कर रहा है। इनके ज़वाब कुंभ से आती हुई तस्वीरें साफतौर पर दे रही है।

तबलीगी ज़मात के लोगों को महामारी फैलाने के नाम पर ज़मकर कोसा गया। कईयों को पकड़कर उनके खिलाफ महामारी अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर न्यायिक सुनवाई में झोंका गया। अब सवाल ये है कि क्या राज्य सरकार, केन्द्र सरकार और नेशनल मीडिया कुंभ में हिस्सा लेने वाले लोगों के खिलाफ वहीं नीति अपनाये? ज़वाब सीधा और सरल है नहीं और कभी नहीं। सोशल मीडिया पर लोग चीख़-चीख़ पूछ रहे है कि आखिर कोरोना वायरस बंगाल की चुनावी रैलियों में क्यों नहीं है? क्यों बड़ी भारी रैलियों ने मास्क और सोशल डिस्टेसिंग की बाध्यता नहीं है? प्रधानमंत्री नरेन्द्र का मंत्र दो गज़ की दूरी, मास्क भी है जरूरी कुंभ में क्या नदारद है? ज़वाब है सिलेक्टिव अप्रोच।

गौरतलब है कि तब्लीगी ज़मात का कार्यक्रम पिछले साल अप्रैल महीने के दौरान दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में हुआ। जब देश में रोजाना 500 कोरोना के केस आ रहे थे। तब्लीगी ज़मात के कार्यक्रम को करीब 5000 लोगों ने शिरकत की। मीडिया के बड़े धड़े ज़मातियों को कोसते हुए इसे कोरोना जिहाद नाम दिया और समुदाय विशेष को सुपर स्प्रेडर कहा। अब जबकि देश में रोजाना करीब एक लाख सत्तर कोरोना के मामले रोजाना सामने आ रहे है, कोरोना के दूसरी लहर अपने चरम पर है। ऐसे में कुंभ मेले में 20 लाख से ज़्यादा लोग कोरोना नियमों की धज़्जियां उड़ाते हुए शामिल हो रहे है, जिन्हें नेशनल मीडिया साधक, भक्त और उपासक कह रही है। मेले के नियुक्त आईजी ने खुद माना कि, वो कोरोना प्रोटोकॉल्स और सोशल डिस्टेसिंग का पालन कराने में नाकाम रहे है, साथ ही लोगों से सिर्फ अपील ही करके काम चला रहे है। ऐसे में बड़ी बात ये कि केन्द्र सरकार या राज्य सरकार ने इस आयोजन को इस रद्द करने की जहमत क्यों नहीं उठायी। लाखों लोगों की जान को जोख़िम में डालकर कट्टर एजेंडा और नैरेटिव पर कायम रहना कहा कि समझदारी है।

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