मैं लोकतांत्रिक हो सकता हूं पर आज की चुनावखोरी लोकहित के विरुद्ध है. जब दिख रहा हो कि भीड़ इकट्ठा करने का मतलब एक जानलेवा बीमारी को बांटना है तो ऐसा करना सिवाय देशद्रोह के कुछ नहीं. मैं पूरी ज़िम्मेदारी से ये बात लिख रहा हूं कि जिनके ऊपर गाइडलाइंस (Guideline) फॉलो कराने का ज़िम्मा था उन्होंने खुद उसे पूरी बेशर्मी से तोड़ा है. ये पद विरुद्ध कार्य है, उस शपथ के खिलाफ जो मंत्री बनते हुए ली गई थी.
सत्ता बस हमारे हाथ आ जाए, ठेके हमारे आदमियों को मिलने लगे, विधानसभाओं में हम किसी तरह सत्ता पक्ष की बेंच पर काबिज़ हो सकें सिवाय इसके कोई मकसद नहीं है और इस खेल में एक पार्टी नहीं सारी शामिल हैं. बीजेपी की चुनाव ज़िद पूरी नहीं हो सकती थी यदि कांग्रेस, लेफ्ट, डीएमके, ममता हाथ खड़ा करके कहते कि हम ऐसे नाज़ुक वक्त में अपने काडर को जनसेवा में लगाना चाहते हैं सो पार्टिसिपेट ही नहीं करेंगे. आप अकेले खेल लो. वो कह सकते थे कि लोक को बचा लें फिर तंत्र चलाएंगे.. लेकिन नहीं, इस खेल में सब बराबर उतरे हैं. ना कोई रैली से पीछे हटा और ना किसी ने चिंता करनी चाही कि आज से कम खराब हालात में लॉकडाउन लगाया था तो आज भीड़ बुलाना एकदम शीर्षासन करने जैसा है.
क्या तुक रह गया आज उन एहतियात का जो करोड़ों के विज्ञापन खर्च के हम और आपसे कराए गए. पीएम सीएम हाथ जोड़ जोड़कर लोगों को सेहत की दुहाई देकर घर में बैठने को कहते रहे तो आज क्या बदल गया जो वही हाथ जोड़कर घर से निकलने को कह रहे हैं? खुद वैक्सीन लगवाकर नेता रैलियों में बिना मास्क पहने घूम रहे हैं और फिर हाई लेवल मीटिंग (High level meeting) करके गाइडलाइंस जारी कर रहे हैं तो क्या ही नैतिकता रह गई. विधानसभा छोड़िए पंचायत तक के चुनाव कराए जा रहे हैं. जिन टीचर्स की ड्यूटी लगी है वो जान बख्शने की गुहार लगा रहे हैं और ये उन्हें नौकरी छीन लेने की धमकी देकर कोरोना के कुएं में धकेल रहे हैं.
आपको सच में लगता है कि ये चुनावबाज़ी ज़रूरी थी या फिर ये लोग किसी लोकतंत्र की फिक्र में आपसे जान की बाज़ी लगवा रहे हैं? अमूमन लोग चुनावी चर्चा करते हैं पर ध्यान से देखिए सोशल मीडिया पर अब वैसा घमासान नहीं है. बयानों पर सिर फुटौव्वल थम गई है. लोगों की बहुत रुचि चुनावी समीकरण (Election equation) में दिख नहीं रही. उसका जगह ऑक्सीज़न, प्लाज़्मा, रैमडेसिविर ने ले ली है. लोग सेवा कर रहे हैं, मांग रहे हैं, डर रहे हैं, दिल दहलाने वाले फोटो अपलोड कर रहे हैं. चैनल नेताओं की रैली अपने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर लाइव चलाते हैं. आज देख रहा था. हैरान हुआ कि एक लाइव के नीचे आज पब्लिक आपस में नहीं लड़ रही थी बल्कि नेताजी को मिलकर गरिया रही थी पर आपके चुने हुए मंत्री अब भी निश्चिंत हैं.
वो जानते हैं कि आज असंतोष भले हो पर आपके सूबे में चुनाव आते आते ही हालात बदल जाएंगे. आप ना भी भूले तो उनको मौसम बदलना आता ही है. ये उनकी स्किल है कि कैसे भी वोट आपसे हिंदू मुस्लिम के नाम पर डलवा ले. आप देखेंगे कि आप फिर से वही दोहराएंगे. अस्पताल की कमी का मुद्दा उठानेवाला आपको उस दिन फिर बोर लगेगा.