न्यूज़ डेस्क (शौर्य यादव): राजधानी दिल्ली (Delhi) में कोरोना कहर लगातार बरकरार है। सोशल मीडिया पर राजधानीवासी ऑक्सीजन सिलिंडर, वेटींलेटर, आईसीयू बेड्स और भर्ती होने के लिये लगातार गुहार लगा रहे है। कई मरीजों को अस्पताल के गेट से वापस लौटाया जा रहा है। जिनको भर्ती ले लिया गया है, वॉर्ड में उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। कई तो अस्पताल के गेट के पर ही भर्ती होने के इंतज़ार में दमतोड़ रहे है। कई तस्वीरें तो बेहद दर्दनाक है। लोग भारी भरकम ऑक्सीजन सिलिंडर ढो रहे है, इस आस में की ज़िन्दगी बच जाये। निगमबोध घाट और पंचकुईया रोड श्मशान घाट लाशों से पटे हुए है। दिल्ली का आसमान चिंताओं के धुंये की राख से भरा हुआ है। ये सभी तस्वीरें दिल्ली सरकार की नाकाम और दोमुंहे चेहरे को बताने के लिये काफी है।
अपनी नाकामी छिपाने के लिये अब केजरीवाल सरकार आंकड़ों से खेल रही है। आम आदमी पार्टी को लगता है कि आंकड़ों की बाजीगरी से दिल्ली वालों की आंखों में धूल झोंकी जा सकती है। इस चक्कर में ट्विटर पर मुख्यमंत्री कार्यालय के आधिकारिक हैंड़ल से आंकड़े जारी किये गये जिसमें दिल्ली सरकार खुद एक्पोज़ हो गयी। दिये गये आंकड़े बीते 12 दिनों के है जिसमें प्रतिदिन के हिसाब से कुल संक्रमित मामलों, कुल टेस्टों की तादाद, टेस्टिंग दर में बदलाव और संक्रमण की दर का विवरण दिया गया है।
इन आंकड़ों में साफ देखा जा सकता है कि, किस कदर दिल्ली की जनता को बेवकूफ बनाया जा रहा है। संक्रमण से जुड़ों ज़मीनी हालातों को छिपाया जा रहा है ताकि अपनी पीठ थपथपाकर यूपी विधानसभा चुनावों की तैयारी की जाये। आंकड़ों पर ध्यान दे तो साफ देखा जा सकता है कि जिस रफ्तार के साथ कोरोना संक्रमण बढ़़े उसके मद्देनज़र टेस्ट करने की दर को घटाया गया ताकि हालातों को सामान्य दिखाया जा सके।
11 अप्रैल को कुल 1,14,288 लोगों का कोरोना टेस्ट किया गया, जिसके नतीज़े में कुल 10,774 लोगों संक्रमण की चपेट में पाये गये। बीते 12 दिनों के दौरान मात्र 5 बार टेस्टिंग दर को बढ़ाया गया और 6 बार घटाया गया। आसान शब्दों में समझे तो केजरीवाल सरकार अब इस जुगत में लगी हुई है कि कम से कम कोरोना टेस्ट किये जाये ताकि कम लोग ही कोरोना संक्रमित मिले। जिससे गलत पॉजिटिविटी रेट (Incorrect positivity rate) जनता के सामने पेश कर वाहवाही लूटी जा सके। असल ज़मीनी हालात आंकड़ों से कोसों दूर है।
उदहारण के तौर पर समझिये इस गणित को: अगर दिल्ली में 11 अप्रैल को 1,14,288 लोगों का टेस्ट किया गये, जिसमें 9.43 फीसदी पॉजिविटी रेट 10,774 पॉजिटिव मामले सामने आये। अब देखने वाले बात ये है कि जैसे-जैसे पॉजिटिविटी रेट बढ़ने लगा तो केजरीवाल सरकार ने टेस्ट करने की रफ्तार तुरन्त घटा दी। दिल्ली सरकार द्वारा दिये आंकड़ों के मुताबिक यदि 22 अप्रैल को भी दिल्ली सरकार 1,14,288 टेस्ट करती तो ऐसे में 36.24 फीसदी पॉजिविटी रेट के हिसाब से बीते 24 घंटों के दौरान यानि गुरुवार को 26,169 मामलों की जगह 41,417 मामले सामने आ सकते थे। जो कि अपने आप में बेहद डरावने वाले आंकड़े है।
ऐसे में दिल्ली सरकार लगातार टेस्ट की रफ्तार घटाकर क्या साबित करना चाह रही है। आंकड़े चीख-चीखकर पोल खोल रहे है। जब कोरोना के केस लगातार बढ़ रहे है तो इंफेक्शन ट्रैक और ट्रैस (Infection track and trace) करने के लिये टेस्ट की रफ्तार दिल्ली सरकार क्यों कम कर रही है?
रोजाना संक्रमित होने वाले लोगों को देखते हुए दिल्ली सरकार ने ठीक उल्ट कदम उठाते हुए सीधे टेस्टिंग रेट को घटा दिया। आंकड़े से खेलकर हकीकत नहीं बदली जा सकती है। मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा जारी आंकड़ें दिल्ली सरकार की खोखली व्यवस्था की पोल खोल रहे है। कड़वी सच्चाई तो ये है कि दिल्ली के हालात महाराष्ट्र से भी बेहद खराब स्थिति में है। अगर टेस्ट की रफ्तार को सही ढंग से बढ़ाया जाये तो नंगी हकीकत सबके सामने आ जायेगी। इसके अलावा दिल्ली सरकार रोजाना अखबारों और टीवी में करोड़ों रूपये के विज्ञापन देकर जनता को बरगलाने का काम अच्छे से कर रही है। अब इस मुद्दे पर सवाल जनता को पूछना है।