राधाकुंड, मथुरा (न.सं.): होली का त्योहार फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष की चतुदर्शी के दिन मनाया जाता है। साथ ही ये भारतीय कृषि परंपराओं में बदलाव का भी सूचक है। जहां पूरा माहौल फागुनी रंगों में रंग कर ग्रीष्म ऋतु का स्वागत करता है। होली का त्यौहार देशभर में तो मशहूर है ही लेकिन ब्रजमंडल में इसकी छटा ही निराली है। बरसाना,वृन्दावन,नंदगांव, मथुरा,दाऊ जी,जतीपुरा, सौंख,राल आदि क्षेत्रों में इसकी आलौकिक छटा देखी जा सकती है। जहाँ पेड़-पौधे, वन-उपवन, कुंड सभी इन्हीं रंगों में सराबोर रहते है। ठाकुर श्री बांकेबिहारी और श्रीमती राधारानी को ये त्यौहार अत्यन्त प्रिय है। जहाँ युगल सरकार अपनी अष्टसखियों और सखाओं के साथ अनन्त काल से होली खेलते आ रहे है।
होली पूजन का विधान
- होलिका के पास जाकर पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ मुख करके गौरी और गणेश का आह्वान करते हुए, ओम होलिकायै नम: मन्त्र से होलिका का, ओम प्रह्लादाय नम: से भक्त शिरोमणि प्रह्लाद का और ओम नृसिंहाय नम: से भगवान नृसिंह की आराधना करे।
- कच्चे सूत को होलिका के चारों तरफ 7 बार परिक्रमा करते हुए लपेटे। इसके बाद लोटे में भरे हुए शुद्ध जल व अन्य सभी सामग्रियों को एक-एक करके होलिका को समर्पित करें। गंध पुष्प का प्रयोग करते हुए पंचोपचार विधि से होलिका का पूजन करें। पूजन के बाद जल से अर्घ्य दें।
- नरसिंह भगवान का नाम लेते हुए पांच अनाज चढ़ाएं। इसके बाद अपना नाम लेकर अपना नाम, पिता का नाम और गोत्र का नाम लेते हुए चावल चढ़ाएं। घर के सदस्यों को तिलक लगाएं। इसके बाद होलिका में अग्नि लगाएं। परिक्रमा करें और हाथ जोड़कर नमन करें।
होली का मन्त्र
- अहकूटा भयत्रस्तै:कृता त्वं होलि बालिशै: अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम:
- ॐ नमो भगवते रुद्राय मृतार्क मध्ये संस्थिताय मम शरीरं अमृतं कुरु कुरु स्वाहा