बंगाल (Bengal) के चुनाव में ममता की जीत पर बहुत ज्यादा मत इतराइए। उनके पास पिछले चुनाव में 211, इस वाले में दो अंक बढ़कर उसी नंबर पर है। यानि कि उन्होंने मोटा मोटी अपना जनाधार बचा रखा है।
जो बीजेपी का मजाक उड़ा रहे हैं, उन्हें अपनी राजनीतिक समझ पर विचार करना चाहिए। तीन सीटों से पांच साल में 77 सीट पर पहुंच जाना बड़ी बात है। इस उछाल पर तो अटल बिहारी और आडवाणी ने केंद्र में सरकार बना ली थी।
इसलिए अभी खेल शुरू हुआ है, जो निर्भर करेगा कि अगले साल क्या होगा यूपी में। अगर अगले साल यूपी में बीजेपी हारती है तो बंगाल में बीजेपी के कार्यकर्ताओं (BJP workers) को दौड़ा दौड़ा कर मारा जाएगा। अगर बीजेपी जीत गई दोबारा तब फिर तृणमूल के लिए परेशानी बढ़ेगी।
सबसे अधिक चिंता अगर किसी प्रकार की हो तो कांग्रेस और लेफ्ट के लिये है, जो पूरी तरह से बंगाल से साफ हो चुके हैं। कांग्रेस का तो छोड़ दीजिये। कांग्रेस की रणनीति है कि किसी तरह केंद्र में नंबर दो बना रहा जाये। बाद बाकी वो चाहती है कि बंगाल में ममता, बिहार में नीतीश, महाराष्ट्र में शिवसेना बनी रहें उन्हें फर्क नहीं पड़ता। धीरे धीरे केरल, पांडिचेरी और कर्नाटक स्थायी रूप से कांग्रेस के हाथ से निकल जाने वाले हैं।
लेफ्ट के लिये अब रास्ता कठिन है। बस केरल बचा है। यहां से और नीचे नहीं जा सकते। अभी भी समय है पार्टी के पोलित ब्यूरो को पूरी तरह बदल कर नये लोगों के हाथ में नेतृत्व दिया जाये, जो नई सोच के साथ आये। मार्क्स और लेनिन नहीं चलेगा। विचारधारा में नयापन चाहिए। न मिले नयापन तो थॉमस पिकेटी से सीख लीजिए। नई बातें। अमर्त्य सेन, रघुराम राजन हैं। बाज़ार अंतिम है। उसका विरोध आंख बंद कर करते रहने से नहीं होगा। इनोवेटिव होना पड़ेगा।
बाद बाकी प्रशांत किशोर (Prashant Kishore) की तारीफ में जमीन पर गिर गिर कर खुश होने वालों। ये आदमी राजनीति को जमीन से उठाकर पैसों की लग्गी बनाकर आसमान में खोंच रहा है। इसके दूरगामी परिणाम होंगे, जो आपको अभी समझ में नहीं आ रहा है। बंगाल में इस आदमी ने कुछ अनोखा नहीं किया है। आधुनिकीकरण (चुनाव प्रचार के) अलावा। ममता की सीटें ढाई सौ होती तो समझते कुछ किया कमाल का। खैर आप मुझे प्रशांत किशोर विरोधी मान कर खारिज कर सकते हैं, लेकिन ऐसे लोग लोकतंत्र का जितना नुकसान कर रहे हैं, वो हम सभी को कुछ सालों में समझ में आयेगा।
साभार – जय सुशील