न्यूज डेस्क (यर्थाथ गोस्वामी): वैशाख मास कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) कहा जाता है। इस व्रत का संपूर्ण भक्ति भाव और विधि विधान से पालन कर भक्त अपने जीवन में आयी विपरीत स्थितियों को बदल सकते है। साथ ही इसके मंगलकारी प्रभाव से सुख संपत्ति और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही कुल को यशस्वी संतानों की प्राप्ति होती है। वरुथिनी एकादशी के व्रत को करने से कन्यादान और ब्राह्मणों को दिये दान से मिले पुण्यफल की तुलना में हज़ार गुना ज़्यादा पुण्य और यश की प्राप्ति होती है।
बरुथिनी एकादशी के मंगलमय मुहूर्त
अभिजित मुहूर्त- 11:39 पूर्वाह्न से 12:32 अपराह्न
विजय मुहूर्त- 02:18 मध्याह्न से 03:11 मध्याह्न
गोधूलि मुहूर्त- 06:31 सांयकाल से 06:55 सांयकाल
बरुथिनी एकादशी व्रत पारण समय
8 मई दिन शनिवार उषाकाल 05:35:17 से प्रात:काल 08:16:17 तक। ध्यान रहे व्रत के पारायण का कुल समय मात्र 2 घंटे 41 मिनट ही है।
वरुथिनी एकादशी की कथा
स्थापित पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान पशुपतिनाथ शिव (Lord Pashupatinath Shiva) ने अत्यंत कुपित (Extremely angry) होकर भगवान ब्रह्मा का पांच मस्तक काट दिया। जिसके कारण उन्हें शाप लगा। शाप और पाप से मुक्ति के लिए उन्होंने विधि विधान पूर्वक शेषशैय्यी भगवान विष्णु के मंगलकारी रूप का स्मरण करते हुए, वरुथिनी एकादशी के व्रत का पालन किया। इस एकादशी के व्रत प्रभाव से भगवान भोलेनाथ का पाप मोचन हो गया। वैदिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत का श्री प्रभाव कई असंख्य तपों के समान है।
वरुथिनी एकादशी का व्रत विधान
- ब्रह्म मुहूर्त में शैय्या त्याग कर स्नान आदि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर शुभ्रावस्त्र धारण कर ग्राम देवता, कुलदेवता, वंश रक्षिणी देवी और धरती मां का स्मरण करते हुए एकादशी का मानस संकल्प लें।
- घर में स्थापित मंदिर के सामने अन्नवेदी बनायें। उसमें 7 किस्म के अनाज रखें। वेदी के ऊपर कलश की स्थापना करें। इस पर अशोक या आम के पांच पत्ते लगायें।
- वेदी के सामने भगवान विष्णु का श्री विग्रह या छवि स्थापित करें, उन्हें पितांबरी ओढ़ायें। विष्णु चालीसा और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
- उन्हें नैवेद्य, धूप, दीप, गंध, गौरस, तुलसीदल, मौसमी फल और पीले फूल अर्पित करें। धूप और दीप से प्रभु की आरती उतारें
- संध्या बेला में भगवान विष्णु की आरती उतारने के पश्चात फलाहार ग्रहण करें। रात्रि जागरण करते हुए भजन कीर्तन करें।
- अगले दिन सुबह यथासंभव ब्राह्मणों को भोजन करा कर यथाशक्ति दान दक्षिणा दे, इसके बाद भोजन कर व्रत का पारण करें।
- एकादशी वाले दिन राहुकाल और यमगण्ड में आराधना करने से बचें।