“collateral damage”
Cambridge डिक्शनरी के मुताबिक- During a war, the unintentional deaths and injuries of people who are not soldiers, and damage that is caused to their homes, hospitals, schools, etc.
मतलब युध्द के दौरान सैनिकों और उनके साजो सामान के अलावा जो भी नुकसान होता है उसे collateral damage की श्रेणी में डाल दिया जाता है!
हिंदी में इसे संपार्श्विक क्षति या सामूहिक क्षति कहते हैं!
मसलन, यदि आपका घर किसी सैन्य प्रतिष्ठान के बगल में है और वहां बम गिरने से आपको कोई नुकसान होता है तो आपका नुकसान collateral damage की श्रेणी में जायेगा और सेना का नुकसान सरकारी खाते में!
उसी प्रकार यदि आप या आपके परिवार का सदस्य किसी दंगाग्रस्त इलाके में पुलिस या अर्धसैनिक बलों की गोली का शिकार हो जाते हैं तो ये नुकसान भी collateral damage ही माना जायेगा! इसमें पुलिस या अर्धसैनिक बलों पर कोई केस नहीं बनेगा!
हमारे देश की स्वास्थ्य व्यवस्था आजकल कुछ इसी तरह के डैमेज की शिकार हुई है!
WHO का मानक कहता है कि 1 हजार व्यक्ति पर एक रजिस्टर्ड मेडिकल ग्रेजुएट होना चाहिए! भारत सरकार का डाटा कहता है कि ये लक्ष्य हमने 2017 में ही हासिल कर लिया है!
हमारे देश में 479 मेडिकल संस्थान हैं जो हर साल 60 हजार से भी ज्यादा मेडिकल ग्रेजुएट निकालने की क्षमता रखते हैं! प्राइवेट संस्थान अभी अलग हैं!
हेल्थ चूंकि राज्य का विषय है तो हर राज्य को ये अधिकार दिया गया है कि वे अपने यहाँ डॉक्टरों, नर्सों, हेल्थ वर्करों, अस्पतालों, एम्बुलेंसों की संख्या में इजाफा करें ताकि प्रत्येक नागरिक को बेहतर स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध हो सके और इन सेवाओं पर अतिरिक्त भार न पड़े!
इसके अतिरिक्त रेड क्रॉस जैसी संस्थाएं भी विकासशील देशों में स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करती हैं! देश के ही कई NGOs, कई स्वयंसेवी संस्थाएं भी इस नेक काम में लगे हुए हैं! जो क्राउड फंडिंग (Crowd funding) से लेकर रक्तदान व कई छोटी मोटी बीमारियों के लिए कैम्प्स वगैरह आयोजित करते हैं! दवाएं, एम्बुलेन्स वगैरह मुहैया कराते हैं!
लेकिन इस कोरोना काल में हम क्या देख रहे हैं? कहीं हज हाउस तो कहीं स्टेडियम तो कहीं स्कूल कॉलेज की बिल्डिंगों को कोविड सेंटर के तौर पर प्रयोग में लाया जा रहा है!
ऑक्सीजन, एम्बुलेन्स, अस्पतालों में बेड, जरुरी दवाओं व इंजेक्शन के लिए लोग पत्रकारों, सांसदों, विधायकों और सबसे ज्यादा सोशल मीडिया पर गुहार लगा रहे हैं! कुछ की मदद हो पा रही है और कुछ इलाज के अभाव में दम तोड़ दे रहे हैं!
कारण क्या है इन सबके पीछे? सरकार कह रही है हमारे यहाँ डॉक्टरों की कमी नहीं है! अस्पताल भी जरूरत भर के हैं ही! दवाओं से लेकर वैक्सीन वगैरह सब हम बना ही रहे हैं! फिर दिक्कत कहाँ आ रही है?
दिक्कत आ रही है सरकार की नीति और नीयत में!
स्वास्थ्य सुविधाओं को इन्होंने किराना का सामान बना दिया है!
आपको याद होगा कि जब देश में आलू प्याज के दाम आसमान छूने लगते हैं तो कुछ राजनीतिक पार्टियां अपना स्टॉल लगाकर लोगों को कुछ दिन तक सस्ती दरों पर आलू प्याज बेचने लगती हैं!
देश में इस वक्त यही हो रहा है!
सरकारी नौकरियों के लिए, राशन कार्ड बनवाने के लिए, रेलवे में कन्फर्म टिकट पाने के लिए, ट्रैफिक पुलिस से गाड़ी छुड़वाने के लिये जनता जिस प्रकार इधर उधर सिफारिशें लगवाती हैं, वही आज ऑक्सीजन, बेड, ICU इंजेक्शन वगैरह के साथ हो रहा है!
डॉक्टरों और अस्पतालों को छोड़कर बाकी उन सभी लोगों के पास ये सुविधाएँ उपलब्ध हैं, जिनका इससे दूर दूर तक वास्ता नहीं है!
बेड किसको मिलेगा ये अस्पताल के अधीक्षक की बजाय लोकल विधायक (Local legislator) का कोई पंटर तय कर रहा है! इंजेक्शन कोई और लेकर बैठा है! अस्पतालों के पास ऑक्सीजन सिलिंडर नहीं हैं, लेकिन एक ट्वीट पर कोई दूसरा आदमी लेकर हाजिर हो जा रहा है!
ये कोई नहीं पूछने वाला…कि भाई/बहन! तू ये सब कहाँ से जुगाड़ कर रहा/रही है? ये सुविधा तो अस्पतालों के पास होनी चाहिए!!
इसी से कालाबाजारी भी बढ़ रही है! सौ गुने दामों पर लोग सेवाएं बेच रहे हैं! …और ये सब हो रहा है केंद्र और राज्य सरकारों की नाक के नीचे! क्यों?
क्योंकि इन्होंने समय रहते कोई ठोस कानून नहीं बनाए! सरकारें बनाने गिराने, बेवजह के मुद्दों पर सदनों में हल्ला करने, वाक आउट और मसखरी करने में ये लोग इतने मसगूल हो गए कि जीवनरक्षक सुविधाओं के लिए कानून ही बनाना भूल गए!
आज एक ठोस कानून होता तो ऑक्सीजन तो दूर की बात….एक पेरासिटामोल तक कोई बेवजह जेब में लेकर नहीं घूम पाता!
हमारी संसद व विधानसभाओं की कार्यवाही का एक एक मिनट लाखों रूपये का पड़ता है! दुःख तब होता है जब हमारे देश के नीति नियंता इस कीमती वक्त को जनकल्याण की नीतियां बनाने की बजाय, शेरो शायरी और मसखरी में जाया करते हैं!
जिसका नतीजा है कि आज हजारों मरीज, जिन्होंने कई गुना कीमत पर एक इंजेक्शन ख़रीदा और वो सिर्फ और सिर्फ नमक का घोल निकला!
इन एक लाख इंजेक्शन्स में कुछ इंजेक्शन्स कांग्रेस समर्थकों को लगे होंगे तो कुछ बीजेपी समर्थकों को! कुछ लेफ्ट वालों को ठोंके गये होंगे तो कुछ राइट वालों को! कुछ इंजेक्शन उनके हिस्से भी आये होंगे जो तटस्थ रहते हैं!
डैमेज तो सबको हुआ न!!!
इसी को Collateral damage कहते हैं!
अब आप जिम्मेदार तलाशते रहिये!
साभार – कपिल देव