न्यूज डेस्क (दिगान्त बरूआ): कोरोना के गंभीर मामलों के इलाज के लिए सबसे महत्वपूर्ण दवाओं में से एक मानी जाने वाली दवा रेमडेसिविर (Remdesivir) को जल्द ही लाइन ऑफ ट्रीटमेंट से हटाया जा सकता है। सर गंगा राम अस्पताल के अध्यक्ष डॉ डीएस राणा के मुताबिक इस पर विचार किया जा रहा है, क्योंकि अभी तक इलाज़ के दौरान मरीज़ों पर इसके कारगर असर से जुड़ा कोई सबूत नहीं मिल पाया है।
डॉ राणा ने कहा ने कहा कि, रेमडेसिविर के बारे में ऐसा कोई सबूत नहीं है, जो ये साबित करता हो कि ये कोरोना संक्रमण के इलाज़ में कारगर है। ऐसे में जो दवायें कोरोना के इलाज़ में काम नहीं आ रही है, उनके इस्तेमाल पर रोक लगनी चाहिये। उनका इस्तेमाल बंद करना बेहद जरूरी है। प्लाज्मा थेरेपी या रेमेडिसिविर की कारगर क्षमता को लेकर अभी तक कोई बुनियादी सबूत नहीं मिला है। ऐसे में इन सभी का इस्तेमाल बंद किया जा सकता है। अभी सिर्फ तीन दवाएं काम कर रही हैं।
इससे पहले भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने अपने नए संशोधित दिशानिर्देशों में कोविड-19 के इलाज के लिये परम्परिक प्लाज्मा थेरेपी को हटाने की सलाह दी। देश में बढ़ते कोरोना संक्रमण मामलों के साथ प्लाज्मा डोनर की मांग में तेजी देखी जा रही है। कई मेडिकल विशेषज्ञों ने यहां तक दावा किया कि कोरोना रोगियों में प्लाज्मा थेरेपी किसी तरह कारगर नहीं है।
रेमेडिसविर पेटेंट दवा है, जिसका पेटेंट अमेरिकी कंपनी गिलियड लाइफ साइंसेज (Gilead Life Sciences) के पास है। इस अमेरिकी कंपनी ने सात भारतीय दवा कंपनियों – सिप्ला, डॉ रेड्डीज लैब, हेटेरो, जुबिलेंट फार्मा, माइलान, सिनजीन और ज़ायडस कैडिला को इसके निर्माण से जुड़ा स्वैच्छिक लाइसेंस दिया है। इस बीच दिल्ली के अस्पतालों ने दूसरी लहर के दौरान COVID-19 से उबरने वाले लोगों में ब्लैक फंगस के मामले या म्यूकोर्मिकोसिस (Mucormycosis) की बढ़ती तादाद देखी जा रही है। डॉक्टर और चिकित्सा विशेषज्ञों इसके पीछे बिना डॉक्टरी सलाह के स्टेरॉयड के इस्तेमाल को बड़ी वज़ह मान रहे है।