उरुग्वे के पूर्व राष्ट्रपति पेपे मुजिका (Pepe Mujica) वे हमारे दौर के सबसे सम्मानित राजनेताओं में शुमार हैं। पिछले साल ही वे सार्वजनिक जीवन से मुक्त हुए हैं। उनके जीवन की कहानी अद्भुत है। जब वे राष्ट्रपति थे, तो अपने साधारण घर में रहते थे और वेतन व अन्य सुविधाएँ नहीं लेते थे। इस कारण उन्हें ‘दुनिया का सबसे ग़रीब राष्ट्रपति’ भी कहा गया, हालांकि वे कहते थे कि उनके पास उनकी ज़रूरत से अधिक है, सो वे ग़रीब नहीं हैं।
सत्तर के दशक के शुरू में उरुग्वे की सैनिक तानाशाही ने नौ मार्क्सवादी विद्रोहियों (Marxist rebels) को जेल से अपहरण कर अलग-अलग जगहों पर सालों तक क़ैद रखा था। उन्हें गोल कमरों में अकेले रखा जाता था। वे अपने परिवार से नहीं मिल सकते थे और न ही पहरेदारों से बात कर सकते थे। उन्हें दिन, महीने और साल का कोई अहसास न था, बस बालों में सफ़ेदी आ रही थी और शरीर गलता जा रहा था। कोशिश यह थी कि इन्हें पागल बना दिया जाए।
बारह सालों की इस यातना का अंत 1985 में हुआ और ये लोग बाहर आ गए। इनमें पेपे मुजिका भी थे, जो बाद में उरुग्वे के राष्ट्रपति बने। रोज़ेनकोफ़ साहित्यकार और पत्रकार हुए। हूदोब्रो देश के रक्षा मंत्री हुए। अन्य साथियों ने भी सार्वजनिक जीवन में बहुत योगदान दिया और देश के लिए बहुत आदरणीय रहे।
उरुग्वे के नामी फ़िल्मकार अल्वारो ब्रेकनर ने 12 सालों की कालकोठरी में इनकी ज़िंदगी पर मार्मिक फ़िल्म बनायी है- A Twelve-Year Night। इसे नेटफ़्लिक्स पर देखा जा सकता है। इसमें दिखाया गया है कि भयानक यातना (Terrible torture) से जूझते हुए और मानसिक संतुलन बरक़रार रखते हुए इन क्रांतिकारियों ने कैसे क़ैद काटी। फिर भी इनके मन में कोई बदले की भावना नहीं रही थी और बाहर आकर फिर से वे देश में न्याय और अधिकारों की लड़ाई में शामिल हो गए।