Euro Cup का दूसरा दिन, डेनमार्क के क्रिस्तियान एरिकसन हुये बेहोश

सदमे और संघर्ष का सजीव-प्रसारण। एक महामारी ने यूरो कप (Euro Cup) को एक साल के लिए टाल दिया था। टूर्नामेंट शुरू होने के दूसरे ही दिन एक और मेडिकल-इमर्जेंसी ने फ़ुटबॉल-जगत को सन्न कर दिया है। ग्रुप बी के पहले मैच के दौरान 43वें मिनट में डेनमार्क के क्रिस्तियान एरिकसन सहसा अचेत होकर गिर पड़े।

ये ऐसी स्थिति थी, जिसके लिए कोई तैयार नहीं था। रैफ़री ने तुरंत सीटी बजाई, मेडिकल-स्टाफ़ दौड़ा हुआ आया, एरिकसन को वहीं- ऐन खेल के मैदान में- कार्डियोपल्मोनेरी ट्रीटमेंट (Cardiopulmonary Treatment) दिया गया। एरिकसन पूरी दुनिया की आंखों के सामने जीवन के लिए संघर्ष कर रहे थे और उनकी साँसें बचाने की हठात कोशिशों में जुटे खिलाड़ियों और मेडिकल स्टाफ़ के लिए धैर्य रखना मुश्किल साबित हो रहा था। डेनमार्क के खिलाड़ियों ने एक ह्यूमन चेन बनाकर एरिकसन को घेर लिया और प्रतिद्वंद्वी टीम फ़िनलैंड के प्रशंसकों ने स्टैंड्स से अपने फ़्लैग्स नीचे फेंक दिए, ताकि उनकी ओट से उपचार के दौरान एरिकसन को सबकी नज़रों से बचाया जा सके।

दुनिया के दूसरे सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय फ़ुटबॉल टूर्नामेंट के सजीव-प्रसारण के दौरान ये हुआ, जब करोड़ों आँखें इस दृश्य पर जमी थीं। अगर क्रिस्तियान एरिकसन अपने जीवन के अंतिम क्षणों में थे, तो उनके साथियों का पहला दायित्व था एक मनुष्य के रूप में उनकी निजता की रक्षा करना। वो हाई डेफ़िनेशन वाले मुस्तैद कैमरों और दर्शकों की खोजती हुई आँखों को कोई अवसर नहीं देना चाहते थे कि इस दृश्य को बाँध लें। वो मानव-श्रृंखला बनाकर खड़े हो गए, अपने साथी को अपनी पीठ सौंप दी, किंतु उनके चेहरे सदमे और अंदेशे से भरे थे।

थोड़ी देर बाद एक बेहतर ख़बर आई कि एरिकसन की चेतना लौट आई है। चेतना का लौट आना एक ऐसी घटना है, जिस पर अभी मनुष्य का वश नहीं है, ये अपने ही अनिर्वचनीय तर्कों से घटती है, क्योंकि चेतना को हम अभी तक समझ नहीं सके हैं। चंद मिनटों पहले फ़ुटबॉल खेल रहा अटैकिंग-मिडफ़ील्डर (Attacking Midfielder) अचानक कैसे अचेत होकर गिर पड़ा, क्या वह फिर से उस प्रत्यक्ष-सृष्टि में लौटेगा, जहाँ से हम उसको देखते थे और जिसे वह अपने परिप्रेक्ष्य से अवलोकता था, और अगर उसकी चेतना लौट आती है या नहीं लौटती है- तो दोनों ही स्थितियों में आपके पास इस घटना के साक्षी होने के अलावा और क्या विकल्प रहता है? अलबत्ता हमें यह मानना चाहिए कि कदाचित् एक कुशल मेडिकल-स्टाफ़ के त्वरित-निर्णयों ने एक मरते हुए फ़ुटबॉलर की जान बचा ली थी।

एरिकसन ने होश में आने के बाद अस्पताल से अपने साथियों के लिए संदेश भिजवाया कि खेल को पूरा करें। खेल स्थगित कर दिया गया था, वह फिर शुरू हुआ। किंतु डेनमार्क की टीम मनोवैज्ञानिक रूप से खेल के बाहर हो चुकी थी। अपना पहला मेजर-टूर्नामेंट खेल रहे फ़िनलैंड ने उसे 1-0 से हराकर ग्रुप बी में उलटफेर कर दिया और टूर्नामेंट के समीकरणों को बदल दिया- बशर्ते कोई भी अभी टूर्नामेंट के बारे में प्रकृतिस्थ होकर सोच पा रहा हो। डेनमार्क का गोलची एक आसान गोल को रोक नहीं सका और उनका सेंटर फ़ॉरवर्ड एक पेनल्टी किक को गोल में तब्दील नहीं कर सका। यह टीम 43वें मिनट में ही स्विच-ऑफ़ हो चुकी थी। अगर एरिकसन चंगे होकर लौटते हैं और डेनमार्क की वर्ल्ड टॉप-टेन रैंकिंग वाली टीम इस हार के कारण यूरो से बाहर हो जाती है- तो यूएफ़ा के अधिकारियों से पूछा जाएगा कि क्या खेल को उस स्थिति में पूरा करवाना इतना अनिवार्य था?

क्रिस्तियान एरिकसन यूरोप के सबसे रचनात्मक मिडफ़ील्डर्स में से एक हैं। वो 10 नम्बर की जर्सी पहनते हैं और प्लेमेकर की भूमिका निभाते हैं। जब वो टॉटेनहम में थे तो स्पर्स के सबसे क्रिएटिव और महत्वपूर्ण खिलाड़ी समझे जाते थे, लेकिन नॉर्थ लंदन में बिताए आठ सालों के दौरान वो एक भी ट्रॉफ़ी नहीं जीत सके थे। गए साल वो इंटर-मिलान चले आए थे, जहाँ पहले ही सीज़न में उन्होंने लीग-टाइटिल जीता।

ग्रुप बी के एक अन्य मैच में उनके इंटर-मिलान के साथी रोमेलो लुकाकु खेल रहे थे, जिन्होंने अपने दो गोल को इरिकसन को समर्पित किया। कल शायद नीदरलैंड्स के लिए खेलने वाले आयैक्स के उनके उत्तराधिकारी भी उन्हें आदरांजलि अर्पित करें। लेकिन अगर एरिकसन को कुछ हो जाता तो फ़ुटबॉल का ये समारोह अधर में लटक सकता था। महामारी के अवसाद से उभरने का यत्न कर रही दुनिया के लिए यह एक और बड़ा आघात होता- पहले ही अनेक खेल-आयोजन पैन्डेमिक के साये में रद्द या स्थगित किए जा चुके हैं।

यूरो कप के इस दूसरे दिन कुल तीन मैच खेले गए, जिसके बाद ग्रुप ए और बी की टीमों ने अपना पहला राउंड पूरा कर लिया। ग्रुप ए में इटली और बी में बेल्जियम तीन अंकों के साथ शीर्ष पर हैं। टर्की और रशिया ने अंक गँवाए हैं, जबकि वेल्स और स्विट्ज़रलैंड ने अंक साझा किए हैं। डेनमार्क की हार टूर्नामेंट का पहला उलटफेर है और कहा जा रहा है कि इस बार फ़िनलैंड की टीम छुपे रुस्तम के रूप में वही भूमिका निभा सकती है, जो पिछले यूरो कप में आइसलैंड ने निभाई थी। किंतु एरिकसन-घटना ने ना केवल विश्व की नम्बर वन रैंकिंग वाली बेल्जियम की शानदार शुरुआत, बल्कि समूचे टूर्नामेंट को ही निष्प्रभ कर दिया है। जिस उत्साह से फ़ुटबॉल-प्रेमियों ने इस आयोजन का स्वागत किया था, उस पर दूसरे ही दिन पलीता लग गया। मन खट्‌टे हो गए हैं।

ये टूर्नामेंट यहाँ से किस दिशा में जाएगा- ये बहुत कुछ अब क्रिस्तियान एरिकसन की भली सेहत पर निर्भर करेगा। वैसी किसी घटना के दोहराव की तो दूरगामी कल्पना भी नहीं की जा सकती। पोस्ट-पैन्डेमिक यूनिवर्स बहुत वल्नरेबल हो चुका है और उसके स्ट्रक्चर्स और इंस्टिट्यूशंस ख़ुद को सम्भालने और पहले वाली लय में लौटने की कोशिश कर रहे हैं। दम फूली हुई लड़खड़ाहट के बरअक़्स ये क़वायद आख़िर इतनी भी आसान साबित नहीं होने जा रही है- ये यूरो के दूसरे मैच-डे ने ज़ाहिर कर दिया है।

साभार - सुशोभित

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