नई दिल्ली (शौर्य यादव): जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाये जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते गुरुवार (24 जून 2021) को पहली बार दिल्ली में जम्मू-कश्मीर के नेताओं के साथ बैठक (J&K All Party Meet) की। ये मुलाकात करीब साढ़े तीन घंटे तक चली। बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा गृह मंत्री अमित शाह, जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा और जम्मू-कश्मीर की 8 पार्टियों के 14 नेताओं ने हिस्सा लिया।
बैठक में नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और पीडीपी पार्टी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती भी शामिल हुए। बैठक में सभी नेताओं को बोलने का मौका मिला और प्रधानमंत्री मोदी ने सभी के सुझावों को बहुत ध्यान से सुना। प्रधानमंत्री ने जम्मू-कश्मीर के नेताओं से कहा कि भले ही मतभेद हों, लेकिन साथ मिलकर हमें दिल्ली से कश्मीर की दूरी ही नहीं बल्कि दिल से कश्मीर की दूरी को भी खत्म करना है उन्होंने ये भी कहा कि अनुच्छेद 370 ऐतिहासिक गलती है और हमें इसे सुधारना चाहिये।
इस बैठक में जो अहम बात सामने आई है, वो ये है कि जम्मू-कश्मीर में पहले परिसीमन होगा और फिर चुनाव होंगे। इसके बाद इसे पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जायेगा। यानि पहले परिसीमन (Delimitation) फिर चुनाव और फिर पूर्ण राज्य का दर्जा। गृह मंत्री ने बैठक में मौजूद जम्मू-कश्मीर के नेताओं को आश्वासन दिया कि सभी राजनीतिक दल परिसीमन की प्रक्रिया में हिस्सा लेंगे।
परिसीमन का अर्थ है सीमाओं का निर्धारण, अर्थात किसी राज्य के विधानसभा या लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का निर्धारण करना। संविधान के अनुच्छेद 82 के अनुसार सरकार हर दस साल में एक परिसीमन आयोग का गठन कर सकती है और जनसंख्या के आधार पर नई विधानसभा या लोकसभा सीटों की सीमा तय कर सकती है और केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर में सबसे पहले ये काम करना चाहती है।
प्रधानमंत्री ने ये भी कहा कि साथ बैठना और बात करना लोकतंत्र की ताकत है और हमारी प्राथमिकता जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत करना है। प्रधानमंत्री मोदी के मुताबिक जम्मू-कश्मीर की कमान युवाओं को देनी चाहिये।
बैठक के बाद कश्मीरी नेताओं के बयान सुनने के बाद दो बातें सामने आयी। पहली तो उनकी भाषा में पाकिस्तान के हित की बात ज्यादा होती है और दूसरी बात ये सभी नेता परिसीमन का विरोध कर रहे हैं।
J&K All Party Meet में लिये परिसीमन के फैसले के ज़मीनी मायने
परिसीमन का अर्थ है लोकसभा या विधानसभा की सीटों की सीमाओं का पुनर्निर्धारण (redrawing of boundaries)। पिछली बार लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन साल 1971 में किया गया था। जबकि जम्मू और कश्मीर में विधान सभा का परिसीमन वर्ष 1995 में हुआ था। 1996 से जम्मू और कश्मीर में उसी परिसीमन के आधार चुनाव हो रहे हैं।
अब समझें की जम्मू-कश्मीर में नये सिरे से परिसीमन क्यों जरूरी है। केंद्र शासित प्रदेश दो क्षेत्रों, जम्मू और कश्मीर में विभाजित है। 2011 की जनगणना के अनुसार जम्मू-कश्मीर की कुल जनसंख्या लगभग 1.25 करोड़ है। इसमें 85 लाख मुसलमान और 35 लाख हिंदू और 2.3 लाख सिख हैं।
जम्मू-कश्मीर की आबादी को अलग से देखें तो जम्मू की आबादी 53.50 लाख है। यहां विधानसभा की कुल सीटें 37 हैं। कश्मीर की कुल आबादी 68.94 लाख है, जबकि यहां विधानसभा की 46 सीटें हैं।
5 अगस्त 2019 को गृह मंत्री अमित शाह ने अनुच्छेद 370 को हटाते हुए ऐलान किया था कि जम्मू और कश्मीर में परिसीमन होगा और 7 विधानसभा सीटों को जम्मू क्षेत्र में जोड़ा जायेगा। अगर ऐसा होता है तो जम्मू में सीटों की संख्या 37 से बढ़कर 44 हो जाएगी और कश्मीर में सीटों की संख्या 46 रह जायेगी। जम्मू में हिंदुओं की बड़ी आबादी है। ऐसे में विधानसभा में हिंदू आबादी को अधिक प्रतिनिधित्व मिलेगा और मुमकिन है कि जम्मू-कश्मीर में कोई हिंदू पहली बार मुख्यमंत्री भी बन सकता है।