आपने अक्सर देखा होगा कि पश्चिमी मीडिया भारत के खिलाफ प्रोपेगेंडा चलाने का एक भी मौका नहीं छोड़ता। कोविड-19 हो, किसान आंदोलन हो, चीन के साथ सीमा विवाद हो या भारत में कोई दंगा हो, पश्चिमी मीडिया ने हमेशा भारत की छवि खराब करने की पूरी कोशिश की है। और ये सब निष्पक्ष पत्रकारिता और धर्मनिरपेक्षता के नाम पर होता है।
आप सोच रहे होंगे कि इस तरह के एजेंडे वाले लोग ओछी पत्रकारिता करते हुए अपने न्यूजरूम में कहां से पहुंचते हैं। हमें इसका सबूत तब मिला जब अमेरिका के लोकप्रिय समाचार पत्र न्यूयॉर्क टाइम्स (New York Times) ने भारत में स्थित अपने दक्षिण एशिया संवाददाता के लिए वैकेंसी निकाली। उस वैकेंसी में अखबार ने साफ कर दिया कि उसे मोदी विरोधी और भारत विरोधी विचारधारा वाले पत्रकारों की जरूरत है। अब आप समझ ही गए होंगे कि न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे अखबार भारत में ही मौजूद ‘टुकड़े-टुकड़े’ गैंग के पत्रकारों का सबसे बड़ा अड्डा कैसे बन जाते हैं।
न्यूयॉर्क टाइम्स ने 1 जुलाई को दक्षिण एशिया संवाददाता के लिए एक वैकेंसी निकाली थी, जिसमें अखबार ने बताया था कि इस नौकरी के लिए जिस व्यक्ति का चयन होगा उसे दिल्ली में काम करना होगा। साथ ही कंपनी ने इसमें जॉब की पूरी जानकारी भी दी। यानि ये बताया कि इस नौकरी के लिये सही उम्मीदवार कौन हो सकता है और उस उम्मीदवार में क्या गुण होने चाहिए? इसमें क्या लिखा है, हम आपको तीन बिंदुओं में बताते हैं।
पहले अंक में न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा कि- भारत का भविष्य अब मुश्किलों के चौराहे पर खड़ा है। नरेन्द्र मोदी भारत में हिंदू बहुसंख्यक पर केंद्रित एक आत्मनिर्भर, बाहुबली राष्ट्रवाद की वकालत कर रहे हैं। ये दृष्टि उन्हें आधुनिक भारत के संस्थापकों के अंतर-धार्मिक, बहुसांस्कृतिक लक्ष्यों के साथ खड़ा करती है।
ये बातें किसी लेख में नहीं लिखी गई हैं, बल्कि ये सब इस नौकरी विवरण में लिखा गया है। इसमें ये अखबार आगे लिखता है कि भारत में मीडिया की आजादी और अभिव्यक्ति की आजादी को कमजोर करने का काम किया जा रहा है, जो भारत के भविष्य पर गंभीर सवाल खड़ा करता है।
हालांकि ये पहली बार नहीं है जब द न्यूयॉर्क टाइम्स ने भारत के बारे में इस तरह के विचार व्यक्त किये हैं। इस अखबार का इतिहास भारत के बारे में गलत सूचनाओं से भरा पड़ा है। आइये हम आपको इसके बारे में दो मिसालों के जरिये बताते हैं।
पहला उदाहरण न्यूयॉर्क टाइम्स द्वारा कोरोना वायरस के दौरान की गई रिपोर्टिंग है। अप्रैल और मई के महीनों में जब भारत वायरस की दूसरी लहर से जूझ रहा था, इस अखबार ने अपने पहले पन्ने पर देश के श्मशान घाटों पर चिता जलाने की खब़र छापी थी। जबकि पिछले साल जब अमेरिका में इस वायरस से मरने वालों की तादाद एक लाख तक पहुंच गई थी, तब इस अखबार ने ऐसी कोई तस्वीर नहीं छापी और मृतकों के सम्मान में अखबार के पहले पन्ने पर उनके नाम छपवाये गए थे।
इतना ही नहीं जब इस साल अमेरिका में कोरोना से मरने वालों की संख्या पांच लाख पहुंच गई, तब भी इस अखबार में सामूहिक कब्रों की तस्वीरें नहीं थीं। अब इस पश्चिमी अखबार को भारत में ऐसे पत्रकार चाहिए, जो चिता जलाने जैसी तस्वीरें लेकर उन पर रिपोर्टिंग कर सकें।
एक अन्य उदाहरण सितंबर साल 2014 में न्यूयॉर्क टाइम्स में एक कार्टून प्रकाशित किया गया। उस वक़्त भारतीय वैज्ञानिकों ने मंगल मिशन लॉन्च (Mars mission launch) किया था, जिसके तहत अंतरिक्ष यान को मंगल की कक्षा में भेजा गया था। ये भारत के लिये बहुत बड़ी उपलब्धि थी लेकिन इस अखबार ने इस कार्टून के माध्यम से दिखाया कि एलीट स्पेस क्लब में कुछ गोरे लोग बैठे हैं और बाहर एक गरीब भारतीय किसान अपनी गाय के साथ खड़ा है और इस क्लब में शामिल होना चाहता है। यानि इस अखबार ने भारत के मंगल मिशन की उपलब्धि का मजाक भी उड़ाया।
न्यूयॉर्क टाइम्स अखबार अक्सर भारत को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भाषण देता रहा है, लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या ये अखबार खुद अपने कर्मचारियों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है? तो इस सवाल का जवाब है.. नहीं। ये अखबार इस विषय पर प्रचार तो करता है लेकिन खुद इसका अमल नहीं करता। इसके भी दो मिसालें हम आपको बताते है।
पहला उदाहरण प्रसिद्ध अमेरिकी पत्रकार जेम्स बेनेट (American journalist James Bennett) का है - जो एक साल पहले तक न्यूयॉर्क टाइम्स के संपादक थे। लेकिन साल 2020 में उन्हें नौकरी छोड़ने के लिये सिर्फ इसलिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि उन्होंने एनवाईटी के संपादकीय पृष्ठ पर रिपब्लिकन पार्टी के सांसद द्वारा लिखित एक लेख प्रकाशित किया था, जिसमें वो अमेरिका में नस्लीय भेदभाव के खिलाफ चल रहे आंदोलन से निपटने की मांग कर रहे थे। यानि इस अखबार ने अपने एजेंडे को जिंदा रखने के लिए एक बड़े पत्रकार को नौकरी छोड़ने पर मजबूर कर दिया।
दूसरा उदाहरण बारी वीस का हैं, जो एक प्रमुख अमेरिकी पत्रकार और लेखक हैं - जैसे जेम्स बेनेट। उन्हें न्यूयॉर्क टाइम्स ने नौकरी छोड़ने के लिये मजबूर किया। उनके त्यागपत्र में इस अखबार को लेकर कई चौंकाने वाली बातें लिखी गयी हैं। लिखा है कि जो लोग न्यूयॉर्क टाइम्स की विचारधारा से सहमत हैं, वहीं इस पश्चिमी अखबार में काम कर सकते हैं। इस अखबार में अन्य विचारधाराओं के लिये कोई जगह नहीं है।
संक्षेप में इस नौकरी विवरण को पढ़ने के बाद ऐसा लगता है कि इस पश्चिमी अखबार को भारत में ऐसे पत्रकार की जरूरत है
- जो देशद्रोही हो
- जो मोदी विरोधी हो?
- हिंदुत्व का मखौल उड़ाने में महारत हासिल हो।
- जो दुष्प्रचार फैलाने में माहिर हो
- और सबसे अहम बात जो एजेंडा/दुष्प्रचार चलाना जानता हो
और इन सभी काबिलियतों के साथ भले ही वो क्रिमिनल हो, द न्यूयॉर्क टाइम्स में उसकी नौकरी पक्की हो सकती है।
न्यूयॉर्क टाइम्स इस नौकरी विवरण में कहता है कि भारत की विविधता (Diversity Of India) की एकता खतरे में है। लेकिन ये अखबार अपने आप में कितना सच है, ये आपको भी आज समझना चाहिये। इस समाचार पत्र में केवल 33 प्रतिशत कर्मचारी ही अश्वेत हैं और इसमें भी सिर्फ 5 फीसदी अश्वेत ही महत्वपूर्ण पदों पर हैं। इसके अलावा एशियाई मूल (Asian origin) के सिर्फ 12 फीसदी कर्मचारी ही इस अखबार में काम करते हैं।
ISIS के नक्शे कदमों पर चलता New York Times
आइये हम आपको एक और उदाहरण बताते है,
ये बात साल 2014 की है, जब आतंकी संगठन ISIS ने इराक और सीरिया के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया था और उस समय ISIS को नए लड़ाकों की जरूरत थी। इसी जरूरत को देखते हुए ISIS ने संगठन में भर्ती के लिये नौकरियां निकाली और इन नौकरियों के लिए शर्तें कुछ इस तरह थीं।
- उम्मीदवार को इस्लाम को छोड़कर सभी धर्मों का विरोध होना चाहिए
- शांति विरोधी होना चाहिये
- बम बनाने का तरीका पता होना चाहिये
- जिहाद में आस्था होनी चाहिये
- काफिरों से सख़्त नफरत करनी चाहिये
और इन सभी काबिलियतों के साथ अगर व्यक्ति शिक्षित है तो ISIS उन्हें नौकरी देने के लिए तैयार था। दिलचस्प बात ये है कि आईएसआईएस द्वारा की गयी नौकरी की भर्ती की पश्चिमी मीडिया ने भारी आलोचना की और इस विचार को खतरनाक करार दिया।