नई दिल्ली (गंधर्विका वत्स): कोरोना महामारी ने देश के हर तबके पर अपना सीधा असर डाला। जिसकी वज़ह से दिहाड़ी मजदूरों से लेकर कारोबारियों तक की कमर टूट गयी। अमीर हो या गरीब और छोटा हो या बड़ा सब कोरोना के भयावह मंजर से खौफज़दा हुए। कोरोना महामारी की पहली और दूसरी लहर की चपेट में आकर देश दुनिया के लाखों लोगों ने अपनी जान गवां दी। जिसका असर ये हुआ कि लोगों ने भावनात्मक दायरे को खो दिया।
लोग एक दूसरे के सुख-दुख में शामिल होने से बचते रहे। इसी बेरहम माहौल के बीच कुछ लोग और संस्थाओं ने सामने आ कर आम लोगों की मदद की, उनके सुख दुख के भागीदार बनें। कुछ इसी तर्ज पर फरिश्ता बनकर उभरी संस्था निर्मल तारा फाउंडेशन। संस्था के संस्थापक सुशील कुमार की अगुवाई में जरूरतमंदों और हशिये पर जी रहे लोगों की मदद के लिये बड़ी मुहिम की शुरूआत की गयी।
जब कोरोना महामारी के प्रसार की रोकथाम के लिए देशव्यापी लॉक डाउन की घोषणा हुई तब भारी तादाद में प्रवासी मजदूरों ने महानगरों से गांवों की ओर पलायन किया। इन्हीं हालातों को देखते हुए सुशील कुमार और उनके स्वयंसेवक साथियों ने दिल्ली, बिहार और पूर्वांचल के कई इलाकों में मदद और राहत कार्यों की कमान संभाली। दिल्ली के अस्पतालों में भोजन वितरण, सूदूर बिहार के गांवों में सैनिटाइजेशन किट (Sanitization Kit) बांटना और पूर्वांचल के कई पिछड़े इलाकों में कोरोना जागरूकता मुहिम समेत कई बड़े कामों को अंज़ाम दिया निर्मल तारा फाउंडेशन (Nirmal Tara Foundation -NTF) ने।
ट्रैडीं न्यूज से खास बातचीत करते हुए सुशील कुमार ओझा ने बताया कि-केंद्र सरकार ने कोरोना की पहली लहर के मद्देनजर जब पूरे देश मे लॉक डाउन की घोषणा की, तब महानगरों से गांवों की तरफ पलायन कर रहे मजदूरों के हालात हमें काफी दयनीय दिखे, तभी हमने इस मामले में कुछ ठोस कदम उठाने का रोडमैप तैयार किया। हमने देखा कि शहरों से रातोंरात अपने गावों के लिये निकले मजदूरों की समस्याओं ने गांव पहुचने के बाद भी उनका पीछा नहीं छोड़ा। अपने घर पहुंचने के बावजूद भी मजदूरों के पास इतने संसाधन नही थे कि जिनसे वो दो वक़्त की रोटी तक खा सकें।
आगे एनटीएफ संस्थापक सुशील ओझा (NTF founder Sushil Ojha) ने बताया कि- देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान किसी हाथ मे काम नहीं था, घर मे खाने पीने का सामान तक नहीं था। ऐसे में शहरों से गांव आये मजदूरों की समस्याओं में लगातार इज़ाफा होता जा रहा था। हमने अपने सीमित संसाधनों के साथ गाँव लौटे मजदूरों को खाना खिलाने का काम शुरू किया जो कि कुछ दिनों तक चला, ये काफी मुश्किल काम था क्योंकि भोजन वितरण करने के दौरान अनावश्यक भीड़ कोरोना संक्रमण बढ़ने का सब़ब हो सकती थी। इसलिये हमने जरूरतमंद परिवारों को सूखा राशन बांटने का काम तय किया जिससे लाभार्थी अपनी सहूलियत से अपने घर पर ही सुरक्षित रह कर भोजन पकाये और खाये।
आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवारों के दिव्यांग बच्चों के लिये स्वास्थ्य एवं शिक्षा के लिए काम करने वाले निर्मल तारा फाउंडेशन ने कोरोना संक्रमण काल में न सिर्फ जरूरतमंदों के लिये खाने की व्यवस्था की बल्कि संस्था की टीम ने गाँव-गाँव जाकर मास्क वितरण और कोरोना से बचाव के लिए जागरूकता अभियान भी चलाया। जिसकी वज़ह से कई ग्रामीण इलाके वक़्त रहते जागरूक हुए और उन पर कोरोना की दूसरी लहर बेहद कम असर हुआ हुआ।
इतना ही नहीं कोरोना की दूसरी संक्रमण के दौरान जब राजधानी दिल्ली में हाहाकार मचा हुआ था, तब भी संस्था ने कोरोना पीड़ितों की बढ़-चढ़ कर सेवा की। दिल्ली के अस्पतालों के बाहर इलाज के लिये दर-दर भटक रहे हज़ारों कोरोना पीड़ितों और उनके परिजनों के लिये खाने की व्यवस्था की।
एनटीएफ अध्यक्षा प्रीति भारद्वाज बताती हैं कि- दिल्ली में कोरोना संक्रमण की रफ्तार इतनी तेज थी कि जनता को सोचने समझने का मौका ही नहीं मिला। अप्रैल के दूसरे हफ्ते में ही कोरोना ने पूरी दिल्ली को अपनी जद में ले लिया। अस्पतालों के बाहर लोगों की लंबी-लंबी लाइनें भूख प्यास से बेसुध इलाज के लिए दिन रात जद्दोजहद करती रही। हमने महसूस किया कि कोरोना पीड़ितों के सामने एक समस्या भोजन की थी, कई परिवार ऐसे थे जिनके सभी सदस्य बीमार थे। हमारी टीम के लगभग सभी सदस्य कोरोना संक्रमित हो चुके थे। ऐसे में हमने राहत कार्य काफी दरी से शुरू किये।
प्रीति भारद्वाज ने आगे बताया कि- हमने अस्पतालों में कोरोना पीड़ितों के परिवारजनों को खाने के पैकेट और पानी बांटने का फैसला किया। हमारी टीम ने अलग अलग अस्पतालों के बाहर जा कर जरूरतमंद लोगों को खाना खिलाने का काम किया। इसके अलावा कई ऐसे परिवारों की भी मदद की जो लॉक डाउन की वजह से मुश्किल दौर से गुजर रहे थे।
निर्मल तारा फाउंडेशन के सदस्यों ने ट्रैडीं न्यूज को बताया कि, जल्द ही महामारी के हालात सामान्य होने पर आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के उन बच्चों तक मेडिकल मदद पहुँचाने की कोशिश की जायेगी जो कि अलग-अलग किस्म की दिव्यांगता से जूझ रहे है। ऐसे बच्चों को विशेषज्ञ डॉक्टरों तक पहुँचाकर उनका बेहतर इलाज एनटीएफ सुनिश्चित करेगा ताकि ऐसे बच्चे सामान्य ज़िन्दगी जी सके। इस मुहिम की शुरू दिल्ली, बिहार और उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल इलाके (Purvanchal Region) से की जा चुकी है।