J&K: घाटी में सिक्योरिटी फोर्सेस का मोबाइलाइजेशन, क्या मायने है इसके

J&K: घाटी में तेजी से होता पैरामिलिट्री फोर्सेस (Para-military forces) का डिपलॉयमेंट और वायुसेना (Air Force) की तैनाती कई समीकरण अख्तियार करती नज़र आ रही है। इस कवायद से घाटी की आवाम़ भी सन्न है, आखिर हालातों में इतनी उथल-पुथल क्यों है। सुरक्षा (Security) नजरिये से देखा जाये तो महीना अगस्त का चल रहा है। ऐसे में हर साल मिलिटेंट इन्फिलट्रेशन (Militant Infiltration) के इनपुट्स सुरक्षा एजेन्सियों को मिलते रहते है। अमरनाथ यात्रा (Amarnath Yatra) चल रही है। ईद का त्यौहार भी आने वाला है, हर साल के पैटर्न पर नज़र डाले तो नमाज़ अता करने के बाद सुरक्षा बलों पर छिट-पुट पत्थरबाज़ी की घटनायें होती रही है।

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सामरिक और रणनीतिक कोण कुछ और ही बयां करते दिख रहे है। तस्वीर के ये रंग इस्लामाबाद और वाशिंगटन गलियारे से निकलते दिख रहे है। इस कवायद से पहले इमरान खान और बाज़वा सहित आईएसआई के खुफिया अधिकारियों की ट्रम्प से मुलाकात काफी कुछ नयी बानगी बुनती दिख रही रहे है। दुनिया जानती है पाकिस्तान के सामरिक तरकश में जितने भी शस्त्र है, वो सभी अमेरिकी देन है। अभी पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था वेंटीलेटर पर है। दूसरी तरफ हिन्दुस्तान एस-400 डिफेंस सिस्टम की खरीद रूस से कर रहा है। जिससे अमेरिका खासा नाराज़ है। इमरान खान व्हाइट हाउस से मदद की काफी उम्मीद लगाये बैठे है।

पाकिस्तानी हुक्मरान अंदरखाने चाह रहे है कि, घाटी में आंतकियों के लोकल नेटवर्क का इस्तेमाल करते हुए एक लंबी प्रॉक्सी वॉर छेड़ी जाये। जिससे अमेरिकी कंपनियां वाज़िब दामों पर हथियार हिन्दुस्तानी बाज़ारों खपा सके। जिसका कुछ प्रतिशत हिस्सा मदद के तौर पर पाकिस्तानी कटोरे में डाल दिया जाये। इस कवायद से पाकिस्तानी हुक्मरानों को ये फायदा भी दिख रहा है कि हिंदुस्तान को बातचीत के लिए घुटने टेकवाये जा सकते है। अगर ये जमा-घटा कामयाब हो गयी तो इसकी माइलेज ट्रम्प और इमरान खान दोनों को ही मिलेगी।

ट्म्प (Trump) की छवि ग्लोबल लेवल पर मूढ़ी विदूषक से ज़्यादा कुछ नहीं है। ये खुद उनके देश के नागरिकों का मानना है। अगले साल अमेरिका में चुनाव दस्तक दे रहे है। अपनी छवि का चमकाने के लिए ट्रम्प कुछ ऐसा करना चाहते है कि, अमेरिकी जनता के बीच वो फिर से चहेते बन जाये। ईरान के साथ तनातनी और चीनी माल के आयात पर लगाया गया भारी कर उनकी हताशा को दिखाता है।

वो कुछ ऐसे विवादस्पद मुद्दे तलाश रहे है जिसमें हस्तक्षेप करके वो सुर्खियां बटोरे। ट्रम्प को अगले साल चुनावी मैदान में उतरना है, जिसमें शायद उनका मुकाबला फिर से बर्नी सैंडर्स से हो, उनका सामना करने के लिए कुछ तो होना ही चाहिए जिसके दम पर वो अपने राष्ट्रपति कार्यकाल की श्रेष्ठता साबित कर सके। इसके लिए कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता के लिए दिया गया, उनका बयान उन्हें काफी पॉलिटिकल माइलेज दिला सकता है। ये बात अलग है कि अमेरिकी अधिकारियों ने उनके मध्यस्थता वाले बयान के लिए खेद जाहिर किया। अमेरिकी जनता अब “मेक अमेरिका ग्रेट अगेन” (Make America Great Again) के झांसे में नहीं आने वाली। 

घाटी में एम-24 अमेरिकी स्नाइपर वेपन सिस्टम का मिलना काफी कुछ बयान करता है आखिर पर्दे के पीछे क्या खेल चल रहा है। आंतकियों के लोल मॉड्यूल को एक्टिव करके किन्हें फायदा पहुँचाने की कोशिश की जा रही है। कुछ रणनीतिक पंड़ित ये भविष्यवाणी कर रहे है कि, ये 35-ए को खत्म करने की शुरूआती कवायद है, क्योंकि जिस तरह से मोदी सरकार ने राज्यसभा में तीन तलाक बिल पारित कराया है, उससे उनका सियासी और रणनीतिक कद साफ हो गया है।

मिलिट्री इंटेलीजेंस के इनपुट्स, अर्ध सैनिक बलों का फ्लैग मार्च, वायुसेना की पेट्रोलिंग, अलगाववदियों पर कसता शिंकजा और राज्यसभा में पास हुआ यूपीपीए ये सभी संकेत 35-ए के सफाये की ओर इशारा करते नज़र आ रहे है। अगर घाटी में तनाव और हिंसा के हालात बनते है तो, उसे तुरन्त ही संभालने के लिए सुरक्षा बल एक्टिव हो जाये इसके पुख्ता इंतजमात् किये गये है। कश्मीर में हो रही सैन्य हलचलों का ये अन्दाज़ा मात्र है। तस्वीर आने वाले दिनों साफ हो जायेगी आखिर अमित शाह ने अपनी ताकत वहाँ क्यों झोंक रखी है।

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