उड़ीसा प्रान्त में जगन्नाथ पुरी में एक भक्त रहते थे, श्री माधव दास जी अकेले रहते थे। कोई संसार से इनका कोई लेना देना नहीं था। अकेले बैठे बैठे भजन किया करते थे, नित्य प्रति श्री जगन्नाथ प्रभु (Lord Jagannath) का दर्शन करते थे और उन्हीं को अपना सखा मानते थे, प्रभु के साथ खेलते थे।
प्रभु इनके साथ अनेक लीलायें किया करते थे। प्रभु इनको चोरी करना भी सिखाते थे भक्त माधव दास जी अपनी मस्ती में मग्न रहते थे। एक बार माधव दास जी को अतिसार (उल्टी-दस्त) का रोग हो गया। वो इतने दुर्बल हो गये कि उठ-बैठ नहीं सकते थे, पर जब तक इनसे बना ये अपना कार्य स्वयं करते थे और सेवा किसी से लेते भी नहीं थे।
कोई कहे महाराज जी हम कर दे आपकी सेवा तो कहते नहीं मेरे तो एक जगन्नाथ ही है, वहीं मेरी रक्षा करेंगे। ऐसी दशा में जब उनका रोग बढ़ गया वो उठने बैठने में भी असमर्थ हो गये। तब श्री जगन्नाथजी स्वयं सेवक बनकर इनके घर पहुंचे और माधव दास जी (Madhav Das ji) को कहा कि हम आपकी सेवा कर दे।
क्यूंकि उनका इतना रोग बढ़ गया था कि उन्हें पता भी नहीं चलता था कि कब मल मूत्र त्याग देते थे। वस्त्र गंदे हो जाते थे। उन वस्त्रों को जगन्नाथ भगवान अपने हाथों से साफ करते थे, उनके पूरे शरीर को साफ करते थे, उनको स्वच्छ करते थे। कोई अपना भी इतनी सेवा नहीं कर सके, जितनी जगन्नाथ भगवान ने भक्त माधव दास जी की सेवा की।
जब माधवदासजी को होश आया, तब उन्होंने तुरंत पहचान लिया की ये तो मेरे प्रभु ही हैं।
एक दिन श्री माधवदासजी ने पूछ लिया प्रभु से –
“प्रभु आप तो त्रिभुवन के मालिक हो, स्वामी हो, आप मेरी सेवा कर रहे हो आप चाहते तो मेरा ये रोग भी तो दूर कर सकते थे, रोग दूर कर देते तो ये सब करना नही पड़ता”
ठाकुरजी कहते है देखो माधव! मुझसे भक्तों का कष्ट नहीं सहा जाता, इसी कारण तुम्हारी सेवा मैंने स्वयं की। जो प्रारब्द्ध (Destined) होता है उसे तो भोगना ही पड़ता है।
अगर उसको इस जन्म में काटोगे तो नहीं पर उसको भोगने के लिए फिर तुम्हें अगला जन्म लेना पड़ेगा और मैं नही चाहता की मेरे भक्त को ज़रा से प्रारब्द्ध के कारण अगला जन्म फिर लेना पड़े। इसीलिए मैंने तुम्हारी सेवा की लेकिन अगर फिर भी तुम कह रहे हो तो भक्त की बात भी नही टाल सकता।
भक्तों के सहायक बन उनको प्रारब्द्ध के दुखों से, कष्टों से सहज ही पार कर देते है प्रभु। अब तुम्हारे प्रारब्द्ध में ये 15 दिन का रोग और बचा है, इसलिए 15 दिन का रोग तू मुझे दे दे। 15 दिन का वो रोग जगन्नाथ प्रभु ने माधवदास जी से ले लिया।
वो तो हो गयी तब की बात पर भक्त वत्सलता देखो आज भी वर्ष में एक बार जगन्नाथ भगवान को स्नान कराया जाता है (जिसे स्नान यात्रा कहते है) स्नान यात्रा करने के बाद हर साल 15 दिन के लिए जगन्नाथ भगवान आज भी बीमार पड़ते है।
15 दिन के लिये मंदिर बंद कर दिया जाता है। कभी भी जगनाथ भगवान की रसोई बंद नही होती पर इन 15 दिन के लिये उनकी रसोई बंद कर दी जाती है। भगवान को 56 भोग नहीं खिलाया जाता (बीमार हो तो परहेज़ तो रखना पड़ेगा)
15 दिन जगन्नाथ भगवान को काढ़ो का भोग लगता है। इस दौरान भगवान को आयुर्वेदिक काढ़े का भोग लगाया जाता है। जगन्नाथ धाम मंदिर में तो भगवान की बीमारी की जांच करने के लिये हर दिन वैद्य भी आते हैं।
काढ़े के अलावा फलों का रस भी दिया जाता है। साथ ही रोज शीतल लेप भी लगाया जाता है। बीमार के दौरान उन्हें फलों का रस, छेना का भोग लगाया जाता है और रात में सोने से पहले मीठा दूध अर्पित किया जाता है। भगवान जगन्नाथ बीमार होने के बाद 15 दिनों तक आराम करते है। आराम के लिए 15 दिन तक मंदिरों पट भी बंद कर दिये जाते है और उनकी सेवा की जाती है। ताकि वे जल्दी ठीक हो जायें। जिस दिन वे पूरी तरह से ठीक होते है उस दिन जगन्नाथ यात्रा निकलती है, जिसके दर्शन हेतु असंख्य भक्त उमड़ते है।