Katha: पराम्बा जगतजननी माँ सीता की शक्ति से इसलिये बचा रहा रावण

रामायण के प्रसंगों से महामाई जगतजननी पराम्बा माँ सीता की शक्ति से जुड़ी हुई एक कथा (Katha) सामने आती है। कथा कुछ इस प्रकार है-एक बार अयोध्या के राज भवन में भोजन परोसा जा रहा था। माता कौशल्या बड़े प्रेम से भोजन खिला रही थी।

माँ सीता ने सभी को खीर परोसना शुरू किया और भोजन शुरू होने ही वाला था कि ज़ोर से एक हवा का झोंका आया सभी ने अपनी अपनी पत्तलें सम्भाली सीता जी बड़े गौर से सब देख रही थी…

ठीक उसी समय राजा दशरथ जी की खीर पर एक छोटा सा घास का तिनका गिर गया जिसे माँ सीता जी ने देख लिया…

लेकिन अब खीर में हाथ कैसे डालें ये प्रश्न आ गया। माँ सीता जी ने दूर से ही उस तिनके को घूर कर देखा। वो जल कर राख की एक छोटी सा बिंदु बनकर रह गया। सीता जी ने सोचा अच्छा हुआ किसी ने नहीं देखा…

लेकिन राजा दशरथ माँ सीता (Maa Sita) जी के इस चमत्कार को देख रहे थे। फिर भी दशरथ जी चुप रहे और अपने कक्ष पहुँचकर माँ सीता जी को बुलवाया...

फिर उन्होंने सीताजी से कहा कि मैंने आज भोजन के समय आप के चमत्कार को देख लिया था...

आप साक्षात जगत जननी स्वरूपा हैं, लेकिन एक बात आप मेरी जरूर याद रखना...

आपने जिस नजर से आज उस तिनके को देखा था। उस नज़र से आप अपने शत्रु को भी कभी मत देखना...

इसीलिये माँ सीता जी के सामने जब भी रावण (Ravana) आता था तो वो उस घास के तिनके को उठाकर राजा दशरथ जी की बात याद कर लेती थीं...

तृण धर ओट कहत वैदेही...

सुमिरि अवधपति परम् सनेही...

यही है...उस तिनके का रहस्य...

इसलिये माता सीता जी चाहती तो रावण को उस जगह पर ही राख़ कर सकती थी, लेकिन राजा दशरथ जी को दिये वचन और भगवान श्रीराम को रावण-वध का श्रेय दिलाने हेतु वो शांत रही...

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